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जानिए यहाँ लगता है दूल्हों का मेला , विदेश से देखने आते थे लोग

मेले का नाम सुनते ही आपके मन में झूले, ढेर सारे सामानों से सजी दुकानें, खाने-पीने के स्टॉल आदि दिमाग में आते हैं। कई जगहों पर पशुओं का मेला भी लगता है। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि बिहार का मिथिला क्षेत्र में दूल्हों का भी मेला सजता है।

यह देश का इकलौता ऐसा मेला है, जहां दूल्हों की नुमाइश होती रही। मिथिला की सांस्कृतिक और सामाजिक परंपरा की बड़ी पहचान रहा यह मेला अब दम तोड़ रहा है। अब न दूल्हों का मेला सजता है और न ही वर-वधु पक्ष के लोगों का हुजूम ही उमड़ता है। 713 साल पुराना यह मेला आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहा है। आलम यह है कि मधुबनी के सरौठ सभागाछी में लगने वाले दूल्हों के इस मेले में बीते 11 सालों से कोई शादी तय नहीं हुई है।

आज भी यहां हर साल सभा लगती है। पंडित से लेकर नाई तक जुटते हैं। पंजिकार पंजी बनाते हैं, लेकिन अब न तो दूल्हों का मेला सजता है और न ही उन्हें पसंद करने को लड़की पक्ष वाले उमड़ते हैं। इस साल भी दो दिन पहले खत्म हुए 9 दिनों के सभा गाछी आयोजन में लोगों ने सिर्फ पंजी बनवाई, आयोजन समिति ने इसे बचाने के लिए बैठकें कीं, पर यहां इस साल भी एक भी शादी तय नहीं हुई।

सौराठ सभा में देश-विदेश के पंडितों एवं विद्वानों का जमावड़ा लगता था। विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ होता था। शास्त्रार्थ से अगले साल होने वाले लग्न, कृषि, बारिश और मिथिला क्षेत्र में धार्मिक, शिक्षा से जुड़े विषयों पर सर्वमान्य मत निकलता था, उसे मिथिलावासी स्वीकार करते थे। पंजी प्रथा की शुरुआत सौराठ के राजा हरिसिंह देव 1310 ई. में की थी। सौराठ सभा के लिए दरभंगा महाराज ने 22 बीघा जमीन उपलब्ध कराई थी।

40 साल पहले तक सौराठ सभा दर्शनीय स्थल के रूप में पहचाना जाता था। जानकार बताते हैं कि विश्व में एकमात्र दूल्हा चुनाव की मंडी सौराठ सभा थी। हजारों की संख्या में विवाह संबंध तय करने के लिए एक से बढ़कर एक विद्वान वर यहां पहुंचते थे। आज भी मिथिला के ब्राह्मणों में परिवार की पहले की पीढ़ियों में ऐसे लोग मिल जाएंगे जिनका विवाह संबंध सौराठ सभा से हुआ था।

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