राजस्थान में कोटा के जेके लोन अस्पताल में पिछले एक महीने में 77 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है. केवल 48 घंटों में ही इस अस्पताल में 10 बच्चों की मौत हो चुकी है. लेकिन इतनी मौत का कारण क्या है? इस सवाल का जवाब अस्पताल प्रशासन अभी तक नहीं दे पाया है. इसके बावजूद अस्पताल के लिए यह आंकड़े नॉर्मल हैं. मामला बढ़ता देख देर रात राज्य सरकार ने अधीक्षक डॉ. एचएल मीणा को भी पद से हटा दिया है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा, “एक भी मौत होना दुर्भाग्यपूर्ण है. हर हॉस्पिटल में मौत होती है, हम इसमें जांच कर रहे हैं.”
दरअसल 77 बच्चों की मौत का मामला मीडिया में सामने आने के बाद राज्य सरकार की नींद टूटी तब जाकर सीएम गहलोत ने शनिवार को एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित की और उनसे 48 घंटों में रिपोर्ट देने को कहा है. इससे पहले शुक्रवार को गहलोत ने राज्य के चिकित्सा शिक्षा सचिव वैभव गालरिया को भी कोटा भेजा था. इसके बाद गालरिया ने अस्पताल पहुंच कर काफी लंबी बैठक ली और अस्पताल का जायजा भी लिया.
वैभव गालरिया ने मीडिया से बात करते हुए उपकरणों की खराबी और वायरल संबंधी मामलों को स्वीकार करते हुए कहा कि इनके निराकरण के लिए प्लान तैयार किया गया है. खबरों की मानें तो अस्पताल में संक्रमण और अन्य कई कारणों से पिछले 3 साल में 2376 नवजातों की मौत हो चुकी है.
हालांकि अपनी रिपोर्ट में अस्पताल की तरफ से सफाई दी गई कि पिछले दो दिन में जिन 10 बच्चों की मौत हुई है उनकी हालत काफी नाजुक थी और वे सभी वेंटिलेटर पर थे. अस्पताल ने यह भी दावा किया कि 23 और 24 दिसंबर को जिन 5 नवजात शिशुओं की मौत हुई वे सिर्फ एक दिन के थे और भर्ती करने के कुछ ही घंटों के अंदर उन्होंने आखिरी सांस ली. रिपोर्ट में कहा गया है कि वे हाइपॉक्सिक इस्केमिक इंसेफ्लोपैथी से पीड़ित थे. इस हालत में नवजात के दिमाग में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन नहीं पहुंच पाती है.
एक ही अस्पताल में इतने नवजात बच्चों की मौत के मामले में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिख कर चिंता जताई है. उन्होंने पत्र में लिखा, “जेकेलोन अस्पताल में 48 घंटे में 10 बच्चों की मौत हो गई. वहीं, प्रति वर्ष 800 से 900 नवजात शिशुओं एवं 200 से 250 बड़े बच्चों की मौत हम सबके लिए दुःखद और चौंकाने वाली है.”