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विधि विश्वविद्यालय और मानवाधिकार आयोग के तत्वाधान में “डिजिटल ह्यूमन राइट्स” विषय पर व्याख्यान आयोजित

लखनऊ। डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ और उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग के तत्वाधान में “डिजिटल ह्यूमन राइट्स” के अंतरविषय पहलुओं पर विशेष व्याख्यान की श्रृंखला में बतौर मुख्य वक्ता डॉ अलका सिंह ने इसके साहित्यिक पक्ष पर चर्चा की।

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उन्होंने बताया कि भाषा और साहित्य का आमेलन समाजिक और आर्थिक व्यवस्थाओं का एक व्यापक स्वरूप है। साहित्य में एक तरफ जहां राजनीतिक पहलू की वैश्विक चर्चा है वही विधिक पहलुओं को भी बखूबी समझा और उकेरा गया है।व्यक्ति के आसपास का परिवेश एवं संस्कृति और तत्पश्चात व्यक्ति का स्वयं से और समाज से जो संवाद हो रहा है वह इंटरनेट के अनेक माध्यमों द्वारा सामूहिक संवाद की आवाज है।

विधि विश्वविद्यालय -मानवाधिकार आयोग - डिजिटल ह्यूमन राइट्स

डॉ अलका सिंह ने इंटरनेट की दुनिया को “नेटवर्क ऑफ नेटवर्क्स” की संज्ञा देते हुए “राइट टू प्राइवेसी” “राइट टू फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन” के संदर्भ में डिजिटाइज़ड इमेजिंग, “सर्विलांस टेक्नोलॉजी” एवं “इमोशन रिकॉग्निशन सिस्टम” पर विस्तृत चर्चा की। डॉ अलका सिंह ने इस व्याख्यान में 22 फरवरी 2023 को 1 साल पूरा हो रहे यूक्रेन और रशिया युद्ध को संदर्भित करते हुए “मीडिया फ्रीडम रैपिड रिस्पांस” फोरम से संबंधित यूक्रेन की 1 मार्च 2023 को होने वाली वेबीनार का भी जिक्र किया।

उन्होंने बताया कि प्रेस एवं मीडिया संवाद पर पक्षपाती हमले हुए हैं, अतः मीडिया कर्मी एवं पत्रकारों द्वारा समाज और देश और दुनिया को खबरों से रूबरू कराते समय उनके मानवाधिकारों की रक्षा हेतु प्रत्येक व्यक्ति को संवेदनशील होना चाहिए। उन्होंने यूरोपियन यूनियन एवं निजी कंपनियों द्वारा “टैक्स चोरी” की चर्चा करते हुए बताया कि किस प्रकार किसी व्यक्ति द्वारा मीडिया के डायरेक्ट माध्यम से पब्लिक इंटरेस्ट में किया गया कार्य उचित है चाहे वह “एंपलॉयर-एम्पलाई रिलेशनशिप” को धोखाधड़ी की श्रेणी में ही रखा जाए।

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डॉ अलका सिंह ने कहा कि “ह्यूमन राइट्स इन डिजिटल एरा” की चर्चा अकादमिक कक्षाओं, रिसर्च एवं औपचारिक क्लासरूम्स टीचिंग में “इंगेजड लिटरेचर” के तौर पर होनी चाहिए। उन्होंने “लक्स लक्जमबर्ग” केस की चर्चा करते हुए कहा कि इसका साहित्य एवं सिनेमा में भी बखूबी फिल्मांकन किया गया है। “एडवांस टेक्नोलॉजी” “इमोशन रिकॉग्निशन सिस्टम” न केवल इमीग्रेशन अपितु अच्छे कार्यकर्ता एवं सज्जनता परखने हेतु अनेक चुनौतियों को जन्म देता है।

उन्होंने फ्रेंच फिलॉस्फर जॉन पौल सारत्रे का जिक्र करते हुए डिजिटल ह्यूमन राइट्स लिटरेचर को ऑनलाइन संवादों, उनको पढ़ने और समझने के दौरान पनपने वाली कई चुनौतियों को संदर्भित किया।

उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया के साहित्यकार और साहित्य समाज में हो रहे मानवाधिकार विषयों पर टेक्नोलॉजिकल प्रयोगो और प्रयासों को बखूबी प्रस्तुत कर रहे हैं, जहां संवेदनशील मानवाधिकार पक्ष फिल्मों के माध्यम से भी सामूहिक संवादों को समझने एवं उनके समक्ष आवाज उठाने में भी सक्षम है।

इस चर्चा में प्रोजेक्ट डायरेक्टर्स, डॉ अमनदीप सिंह, डॉ विकास भाटी समेत विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के संरक्षक विश्व विद्यालय के कुलपति प्रो सुबीर भटनागर, उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बालाकृष्णा नारायण एवं विभागाध्यक्ष डॉ एपी सिंह रहे।

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