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अशफ़ाक़ उल्ला के जन्मदिन  पर “क्रांतिकारी आंदोलन और अशफाकउल्ला” विषय पर व्याख्यान का आयोजन 

लखनऊ। “आजादी के अमृत महोत्सव” की श्रृंखला के अंतर्गत इतिहास विभाग द्वारा आज 22 अक्टुबर 2022 को अशफ़ाक़ उल्ला के जन्म दिन के अवसर पर “क्रांतिकारी आंदोलन और अशफाकउल्ला” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का आरम्भ परम्परा के अनुसार माँ सरस्वती की वंदना के साथ किया गया। सर्व प्रथम B.A. प्रथम सेमेस्टर के छात्र नीतेश कुमार ने अशफाक उल्ला का जीवन परिचय देते हुए कहा कि अशफ़ाक़ उल्ला का जन्म 22 अक्टुबर 1900 में उत्तर प्रदेश के शाहजहाँ पुर में स्टेशन के पास कदनखेर के जलालपुर मुहल्ले में हुआ था। ये देखने में सुंदर और मजबूत कद-काठी के व्यक्ति थे।

बचपन से तैरने, घुड़सवारी, और बंदूक चलाने का शौक था। उनके बड़े भाई रियासत उल्ला खां क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। उनके भाई बिस्मिल के बहादुरी के किस्से सुनाया करते थे। अशफ़ाक़ उल्ला की उनसे मिलने की इच्छा थी पर उनकी पहली मुलाकात असहयोग आंदोलन के दौरान जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये तब हुई।

B.A. प्रथम सेमेस्टर के छात्र पीयूष शुक्ला ने बताया कि अशफाक उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका पूरा नाम अशफाक उल्ला खां वारसी हसरत था। वे ‘हसरत’ नाम से कविता लिखते थे। राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला दोनों ही कविताएँ लिखी करते थे अत: दोनों में जुगलबंदी होती थी। बी.ए. तृतीय सेमेस्टर की छात्रा मानवी ने बताया कि चौरा चौरी कांड के बाद जब महात्मा गॉंधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो हजारों की संख्या में युवा स्वयम् को ठगा सा समझने लगे और क्रांतिकारी विचार धारा की ओर आकर्षित हुए। अशफ़ाक़ उल्ला भी शाहजहाँ पुर के प्रतिष्ठित क्रांतिकारी प. राम प्रसाद बिस्मिल से जुड़ गये।। 1924 में हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएसन का गठन किया। अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने तथा हथियार खरीदने के लिए धन की जरूरत थी। अत: शाहजहाँ पुर में 8 अगस्त 1925 में एक बैठक बुलाई गई यहाँ सरकारी धन लूटने की योजना बनाई गई। जिसमें सहारन पुर -लखनऊ 8 डॉउन पैसेन्जर से जाने वाले सरकारी धन को लूटने की योजना बनाई।

9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी नामक गाँव के पास ट्रेन रोक कर धन लूट लिया गया इसे ‘काकोरी कांड ‘के नाम से जाना गया। इस कांड में बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला, चन्द्र शेखर आजाद, सचिद्र बख़्शी, ठाकुर रौशन सिंह, मुकुंद लाल इत्यादि क्रांतिकारी शामिल थे। एक महीने की कड़ी मेहनत के बाद सभी क्रांतिकारी पकड़ लिए गये। अशफ़ाक़ उल्ला भागने में सफल रहे। अशफ़ाक़ बनारस चले गये। एक कम्पनी में नौकरी कर ली ,अपने वेतन से क्रांतिकारियों की आर्थिक सहायता करने लगे। क्रांतिकारी लाला हरदयाल विदेश जाना चाहते थे। उनकी आर्थिक सहायता के लिए अशफ़ाक़ दिल्ली आये वहाँ उनके पठान मित्र ने ईनाम के लालच में उनकी सूचना दे दी। अशफ़ाक़ गिरफ्तार कर लिए गये। जेल में अनेक यातना दी गई, सरकारी गवाह बनाने की कोशिश की गई पर अंग्रेजी सरकार सफल नहीं हुई। अंत में 19 दिसम्बर 1927 में अशफ़ाक़ उल्ला को फांसी दी गई।

मुख्य वक्ता प्रो. गीता रानी शिक्षा शास्त्र विभाग बीएसएनवी पीजी कॉलेज, चारबागलखनऊ ने अपने व्याख्यान में क्रांतिकारियों की निष्ठा, त्याग व उत्साह के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा अंग्रेजों का आना आसान था पर उन्हें देश से भगाना मुश्किल था। क्रांतिकारियों ने साहस नहीं छोड़ा,उन्हें कोई मंच नहीं मिला,अपना रास्ता खुद निकाला। आपने यह भी बताया कि अशफ़ाक़ उल्ला हिंदू एकता के प्रबल समर्थक थे।

एक बार शाहजहाँ पुर में हिंदू और मुसलमान आपस में झगड़ गए, आपस में मारपीट भी की। मुस्लिम मंदिर को नुकसान पहुँचाना चाहते थे, उस समय अशफ़ाक़ आर्य समाज के मंदिर में बैठे थे, अशफ़ाक़ ने गरजते हुए पिस्तौल तान कर कहा “मैं भी कट्टर मुसलमान हूँ लेकिन इस मंदिर की एक एक ईट मुझे प्यारी है, मेरे लिए मंदिर मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने मंदिर की ओर आँख उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि मंदिर की ओर देखे। आज के परिवेश में इसी जज्बे की जरूरत है। अंत में प्रोफ़ेसर नीलिमा गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्य क्रम क्रम की समाप्ति की।

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