Breaking News

दीन-दुखियों एवं आदिवासियों की महान लेखिका थी महाश्वेता देवी

लाल बिहारी लाल

पानी की तरह श्वेत जो हर रंगो में समाहित हो जाता है उसी के अनुरुप ता-उम्र दीन दुखियों के लिए तत्पर खासकर आदिवासी एंव पिछड़ों के लिए देवी के रुप में काम करने वाली शख्सियत का नाम है महाश्वेता देवी। इनका जन्म तत्कालिन ईस्ट बंगाल के ढाका शहर में 14 जनवरी 1926 को हुआ था। वर्तमान में ढ़ाका बंगलादेश की राजधानी है।

इनके पिता मनीष घटक भी कवि एंव उपन्यासकार थे। उनकी माता धारित्री भी लेखिका एवं समाजसेविका थी। इनकी प्रारंभिक शिक्षा ढ़ाका में ही हुई। भारत विभाजन के समय इनका परिवार पश्चिंम बंगाल में आकर बस गया सन 1939-44 तक कोलकाता में इनके पिता जी को सात बार घर बदलना पड़ा। वर्ष 1942 में सारे घऱ का काम-काज करते हुए मैट्रीक की परीक्षा पास की। उसी वर्ष 1942 में अग्रैजो भारत छोड़ो आन्दोलन से काफी प्रभावित हुई।

1943 में आकाल पड़ा तो वह अपने सहयोगियों के साथ इसमें काफी बढ़चढ़कर पीडितो को सहयोग किया। बाल्यकाल में ही पारिवारिक दायित्व का निर्वहन करते हुए सन 1944 में कोलकाता के आसुतोष कालेज से इंटरमीजियट की परीक्षा पास की। पारिवारिक दायित्वों का वहन छोटी बहन ने संभाल लिया तो बाद में आपने विश्वभारती शांति निकेतन से अंग्रैजी विषय में सन 1946 में स्नातक प्रतिष्ठा(बी.ए.) पास किया। इसी बीच वहां देश के संपादक सागरमय घोष आते जाते थे तो उन्होने महाश्वेता को देश में लिखने के लिए कहा देश में उनकी तीन कहानिया प्रकाशित हुई प्रत्येक कहनी के लिए पारिश्रमिक के रुप मे 10 रु. मिले।

कोलकाता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोतर (एम.ए.)करने के बाद शिक्षक एवं पत्रकार के रुप में अपना जीवन शुरु किया। तदुपरान्त कोलकाता विश्वविद्यालय में अंग्रेजी व्याख्याता के रुप में नौकरी भी किया ।सन 1984 मे लेखन पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए सेवानिवृति भी ले ली। महाश्वेता जी ने कम उम्र में ही लेखनी को गह लिया। इन्हें साहित्य विरासत में मिला था क्योंकि इनकी दादी माँ एवं माँ विभिन्न किताबे एंव पत्र-पत्रिकायें पढ़ने के दिया करती थी और समय समय पर उन्हे क्रास चेकिंग भी किया करती थी।इसके अलावे पिता जी के पुस्तकालय से भी कई किताबे पढ़ती थी। इनकी प्रारंभिक रचनायें कविता के रुप में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्राथमिकता से छपने लगी। इनकी पहली रचना सन 1956 में झांसी की रानी है।

झाँसी की रानी के लिए देश के संर्दभित क्षेत्रों (बुंदेल खंड के क्षेत्रों में-सागर, जबलपुर, पूना, इंदौर, ललितपुर के जंगलो, झांसी ग्वालियर, कालपी आदी) में दौरा करने के बाद लिखी थी। इसके उपरान्त इन्होने कहा था कि अब मैं उपन्यासकार औऱ कथाकार बन सकती हूँ। फिर 1957 में उपन्यास “नाटी” आई। पिछले चालीस वर्षों में छोटी-छोटी कहानियों के बीस संग्रह और लगभग सौ के करीब उपन्यास प्रकाशित हो चुके है। इनकी सभी मूल रचनाये बंगला में थी जिसका अंग्रैजी एवं हिन्दी रुपानतरण (अनुवाद) किया गया है। इनकी रचना 1084 की माँ पर पहलाज निहलानी ने फिल्म भी बनाया है।इस फिल्म से जया बच्चन ने पुन 17 साल बाद फिल्मों में वापसी की थी।

इनके समाजिक सरकोकार एवं अद्वीतीय लेखन के लिए विभिन्न पुरस्कार भी मिले हैं। इनका रचनाओ में सामंती ताकतों के शोषण ,उत्पीड़न,छल-कपट के विरुद्ध पीडितो एवं शोषितों का संघर्ष अनवरत जारी रहता है। आदिवासियो के सशस्त्र विद्रोह की महागाथा “अरण्य अधिकार” के लिए इन्हें सन 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री,1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1997 में रेमन मैग्सेसे अवार्ड और 2006 में पद्म विभूषण सम्मान मिला। इन्होने लेखन के साथ-साथ आदिवासियों के लिए भी काफी काम किया। खास कर पश्चिम बंगाल के “लोधास” औऱ “शबर” जनजातियों के लिए काम किया। इस महान उपन्यासकार का निधन 28 जुलाई 2016 को कोलकाता में हुई।

About Samar Saleel

Check Also

अहंकार जीवन को समाप्ति की ओर ले जाता है- पण्डित उत्तम तिवारी

अयोध्या। अमानीगंज क्षेत्र के पूरे कटैया भादी में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन ...