लोकसभा 2014 के चुनाव के बाद चर्चा होने लगी थी कि बहन कु0 मायावती Mayawati हाशिए पर आ गई हैं, पान की दुकानों और होटलों पर बसपा के भविष्य को लेकर चर्चाएं होने लगीं, स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे विश्वसनीय तक सब भागने लगे, छुटभैया नेता तो ऐसे भागे जैसे डूबते जहाज से चूहे उतर कर भागते हैं।
Mayawati का सपा को समर्थन भाजपा के लिए बनी चुनौती
2014 चुनाव के बाद से मायावती प्रत्येक घटनाक्रम पर पूरी नजर बनाये हुए सब कुछ शांति से देख रही थी। एक तरफ विपक्ष का अट्टाहास तो दूसरी तरफ अपनों का धोखा, लेकिन बहन जी का धैर्य और राजनीतिक कुशलता और राजनीति में उनके अनुभव के दम पर एक तरफ अपने धोखेबाजों को सबक सिखाने की चुनौती तो दूसरी तरफ भाजपा के रथ को रोकने की चुनौती को बहन जी ने बखूबी हासिल किए। बहन जी के एक दूरदर्शी कदम ने सारा पासा ही पलट दिया। गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में सपा को समर्थन देने की घोषणा कर एक ही तीर से कई निशाने साधे। सर्वप्रथम तो जो धोखेबाज सपा की राह पर थे उनके कदम ठिठक गए, अब बसपा से गठबंधन होने के उपरांत उनकी सपा में सौदेबाजी एकदम धराशाई हो गई तो दूसरे भाजपा की राह रोककर प्रदेश की राजनीति में बहन जी ने अपनी अहमियत बताई।
शायद इसी का परिणाम है कि अब सपा किसी भी कीमत पर उनको साथ लेकर चलना चाहती है, अखिलेश यादव जी कम सीटें लेकर भी लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन करने को आतुर हैं, ऐसे में बसपा की दसों ऊंगलियां घी में हैं।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं
इधर बहन जी का बयान चर्चा में आना कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं होगा यही दर्शाता है कि भाजपा की राह बहन जी सब जगह नहीं रोकेंगी। बसपा और कांग्रेस का अलग अलग लड़ना भाजपा के लिए ही फायदे का सौदा साबित होगा। भविष्य के लिए भी यह अच्छा संकेत है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद जब मुख्यमंत्री बनने की बात आएगी तो बहन जी के पास दो विकल्प होंगे। सपा और भाजपा में जो उनके साथ आएगा, उसके साथ बहन जी सरकार बनाने को स्वतंत्र होंगी जबकि अखिलेश यादव विकल्पहीन हो जाएंगे।