Breaking News

मिडिल क्लास: दुश्वारियों ने जीना किया मुश्किल!

आज इस महामारी काल में सबसे बड़ी चुनौती मिडिल क्लास के लिए है। महामारी के चलते कई लोगों को अपनी नौकरी खोनी पड़ीं। जिससे उनके पास आर्थिक संकट उत्पन्न होने लगा है। इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना के संकट काल में केंद्र व राज्य की सरकारों ने प्रवासी श्रमिकों और गरीब परिवारों का भरपूर ख़्याल रखा। लेकिन इन सबके बीच इस मिडिल क्लास की किसी ने कोई सुध नहीं ली। एक चर्चा के दौरान खुद भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती लोअर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास के लिए आने वाली है। रघुराम ने कहा- “फूड, स्वास्थ्य और शिक्षा पर कई राज्यों ने अच्छा काम किया है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती लोअर मिडल क्लास और मिडल क्लास के लिए है। इस वर्ग के पास महामारी काल में बामुश्किल ही अच्छे जॉब होंगे।’ उन्होंने कहा कि आंकड़े चिंता पैदा करने वाले हैं। संकटकाल में करीब 10 करोड़ लोग वर्कफोर्स से बाहर हो जाएंंगे, जिसके लिए हमें बड़े कदम उठाने होंगे। लॉकडाउन के बाद अब सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी इस वर्ग के बेरोजगार हो चुके लोगों के लिए रोजगार व व्यापार उपलब्ध करवाना होगा। इसके लिए कुशलता से प्रबंधन की योजना बनानी होगी। लोगों की जीविका को खोलना जरूरी है, जिसके लिए काफी काम करना होगा। यहां ध्यान देने वाली बात ये कि यह वही मिडिल क्लास है जिसने अपनी गाढ़ी कमाई से देश के विकास में अपनी इनकम से टैक्स के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

अब जबकि महामारी में लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे व्यापार, उद्योग और नौकरी फिर से पुराने ढर्रे पर लौटने के लिए आतुर दिख रहा है ऐसे में इस वर्ग का प्रभाव भी बाजार पर पड़ेगा। देशभर में अमीरों की संख्या कम है, जबकि गरीब व मध्यम वर्ग की संख्या सर्वाधिक है। लेकिन केंद्र व राज्य सरकारों का झुकाव उद्योगपति एवं गरीब वर्ग के पक्ष में अधिक देखने को मिल रहा है। विशेष वर्ग के प्रति उनका ये झुकाव आने वाले समय में उनके लिए घातक साबित हो सकता है। घर के खर्च, स्कूल की फीस, मकान, वाहनों की किश्त आदि की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस वर्ग के बेरोजगार हो रहे लोगों को अन्य प्रकार की संभावनाओं को तलाशने के अलावा और कोई विकल्प फिलहाल इनके पास नहीं दिख रहा है। निश्चित ही इससे बेरोजगारी व अपराध बढ़ेगा। गरीबों को मुफ्त अनाज, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को लॉकडाउन में दोनों समय का भोजन, नि:शुल्क चिकित्सा, जन्म-मृत्यु और विवाह के अवसर पर नकद राशि प्रदान किये जाने के साथ-साथ अन्य कई तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं। लेकिन जिसने अपनी मेहनत की कमाई से इनकम टैक्स, जीएसटी, व्यापार कर समेत अन्य करों के रूप में देकर सरकार को आर्थिक योगदान दिया उसके लिए सरकार बिल्कुल भी गंभीर नहीं है।

पिछले कई दशक से मध्यम वर्ग अपना जीवन यापन कर्ज लेकर ही चलाता रहा है। सामाजिक जरूरतों के बीच उसने बचत की प्रवृत्ति को लगभग तिलांजलि दे दी है। अब केंद्र एवं राज्य सरकारों को इस वर्ग के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। महज वोटबैंक की खातिर विशेष वर्ग को तरज़ीह और मध्यम वर्ग को लॉलीपॉप से काम चलने वाला नहीं है। समय की मांग है कि इस वर्ग के लिए भी सरकार गंभीरता से विचार करे। और कुछ नहीं तो इनके बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य बीमा और जरूरी सुविधाओं में छूट के लिए नए नियम बनाए जाएं। क्योंकि जो लोग अपनी कमाई का हिस्सा देश के विकास में दे रहे हैं उनकी बेहतरी के लिए सोचना सरकार की जिम्मेदारी बनती है। सरकार केवल लकीर की फकीर बनकर नहीं चल सकती है!

अनुपम चौहान

About Samar Saleel

Check Also

मेदांता अस्पताल पत्रकारों का करेगा रियायती दर पर इलाज, MOU किया हस्ताक्षर

लखनऊ। मेदांता हॉस्पिटल (Medanta Hospital) लखनऊ इकाई द्वारा 16 फरवरी को पत्रकारों के हितार्थ एक ...