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माँ

माँ

आ रही है याद हर पल गाँव की।
धूप में जलते वो’ नन्हें पाँव की।

माँ मुझे तू याद इतनी आ रही।
रात भी अब नींद के बिन जा रही।
आँख से आंसू निकलते हैं मेरे।
अब मुझे दर्शन मिलेंगे कब तेरे।

धूल माथे कब लगालूँ पाँव की।
आ रही है याद मुझको गाँव की।

याद आता है मुझे बचपन मेरा।
खूब भाता था मुझे आँचल तेरा।
दौड़ कर मैं जब लिपट जाता गले।
तू छिपाती थी मुझे आँचल तले।

सुरमयी सुन्दर सलौनी छाँव की।
आ रही है याद मुझको गाँव की।

संजय कुमार गिरि

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