
स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement) एक आत्मनिर्भरता आंदोलन (Self-Reliance Movemen) था, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Independence Movement) का हिस्सा था और भारतीय राष्ट्रवाद (Indian Nationalism) के विकास में योगदान दिया। दिसंबर 1903 में बंगाल विभाजन (Bengal Partition) के लिए बीएमएल सरकार के फैसले को सार्वजनिक किए जाने से पहले, भारतीयों में असंतोष बढ़ रहा था। जवाब में घरेलू उत्पादन पर भरोसा करके विदेशी वस्तुओं पर अंकुश लगाने के लिए 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के टाउन हॉल से स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement) औपचारिक रूप से शुरू किया गया था। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने इसे स्वराज (स्व-शासन) की आत्मा के रूप में वर्णित किया। अमीर भारतीयों द्वारा खादी और ग्रामोद्योग समितियों को समर्पित धन और भूमि दान करने के बाद आंदोलन ने अपना विशाल आकार और स्वरूप लिया, जिसने हर घर में कपड़ा उत्पादन शुरू किया। इसमें अन्य ग्राम उद्योग भी शामिल थे ताकि गाँव आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बन सकें। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस आंदोलन को अपने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अचूक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और अंततः 15 अगस्त 1947 को प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा नई दिल्ली में इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में हाथ से काता हुआ खादी का तिरंगा (अशोक चक्र) भारतीय ध्वज फहराया गया।
वैंकूवर इंटरनेशनल ऑटो शो से टेस्ला को हटाया गया, आयोजकों ने बताया क्यों उठाया यह कदम
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस
भारत की आजादी के 68 वर्षों बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 7 अगस्त 2015 से ‘राष्ट्रीय हथकरघा दिवस’ मनाये जाने की घोषणा की थी और उसी दिन 11 वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया गया। यह दिवस 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन के शुभारंभ का प्रतीक है, जो घरेलू हथकरघा उत्पादों को बढ़ावा देने वाले स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था।
हथकरघा कपड़े आमतौर पर उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक रेशों जैसे कपास, लिनन, रेशम और ऊन से बनाए जाते हैं , जो लचीले होते हैं और लंबे समय तक चलते हैं।
अद्वितीय हथकरघा उत्पाद: बनारसी, जामदानी, बालूचरी, मधुबनी, कोसा, इक्कत, पटोला, टसर सिल्क, माहेश्वरी, मोइरंग फी, फुलकारी, लहेरिया, खंडुआ और तंगलिया।
सरकारी योगदान
राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी): हथकरघा समूहों को वित्तीय सहायता, विपणन सहायता और पुरस्कार प्रदान करता है। 10,000 करघों के लिए 30 करोड़ रुपये के साथ मेगा क्लस्टरों को वित्तपोषित करने की भी योजना है।
बाजार पहुंच पहल (MAI): बाजार अनुसंधान, अंतर्राष्ट्रीय विपणन और छोटे उद्योगों के लिए समर्थन के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा देता है। जो मार्च 2026 तक प्रभावी है।
कच्चा माल आपूर्ति योजना (आरएमएसएस): यह योजना सब्सिडीयुक्त धागा उपलब्ध कराती है, रंगाई सुविधाओं में सुधार करती है, तथा हथकरघा बुनकरों को माल ढुलाई प्रतिपूर्ति और मूल्य सब्सिडी प्रदान करती है, जो 2025-26 तक प्रभावी रहेगी।
हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद
(एचपीईसी) वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत एक गैर-लाभकारी एजेंसी है जिसका उद्देश्य कपड़े, घरेलू सामान और कालीन जैसे हथकरघा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना है।
भारतीय बुनकरों की प्रमुख समस्याएं
जब इंग्लैंड में कपड़ा उद्योग ने कपड़े का उत्पादन शुरू किया, तो उसके बाजारों में प्रवेश करने वाले विदेशी कपड़े पर आयात शुल्क लगाने की आवश्यकता महसूस की गई। इस प्रकार, ब्रिटिश बाजारों में प्रवेश करने वाले भारतीय कपड़े पर विभिन्न आयात शुल्क लगाए गए। इससे भारतीय बुनकरों को गहरा धक्का लगा। अंग्रेजी कंपनियों ने अपना माल बेचने के लिए ब्रिटिश सरकार को भारत में प्रवेश करने वाले अंग्रेजी कपड़े पर सभी आयात शुल्क हटाने के लिए राजी किया।
क्योंकि ये कपड़े सस्ते थे, भारत में बुनकरों की स्थिति और खराब हो गई क्योंकि उनका निर्यात बाजार ढह गया और स्थानीय बाजार सस्ते ब्रिटिश कपड़े से भर गया। साथ ही कई बार बुनकरों को अच्छी गुणवत्ता का कच्चा कपास भी नहीं मिल पाता था।आयातित मशीन से प्रतिस्पर्धा करने में बुनकरों की कठिनाई ने सूती उत्पादों को सस्ता बना दिया। भारत में कारखानों ने भी सस्ता मशीन निर्मित माल शुरू किया। जिससे हमारे बुनकर प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे।
‘लोकतांत्रिक देश को पुलिस स्टेट की तरह काम नहीं करना चाहिए’, बेल खारिज होने के बढ़ते मामलों पर कोर्ट
हथकरघा कारीगरों को पावरलूम से प्रतिस्पर्धा, कम मजदूरी, बाजार तक पहुंच की कमी, और ऋण की समस्या जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका खतरे में है।
पावरलूम से प्रतिस्पर्धा: पावरलूम और बड़े पैमाने पर उत्पादित वस्त्रों के कारण हथकरघा उद्योग को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
बाजार तक पहुंच की कमी: कारीगरों को अपने उत्पादों को उचित मूल्य पर बेचने के लिए आधुनिक बाजारों तक पहुंच प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
कम मजदूरी: हथकरघा कारीगरों को कम मजदूरी मिलती है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है.
ऋण की समस्या: हथकरघा कारीगरों को ऋण प्राप्त करने में भी कठिनाई होती है, और वे अक्सर निजी ऋणदाताओं पर निर्भर रहते हैं, जिससे वे ऋण के बोझ में फंस जाते हैं।
बढ़ती लागत: धागे और अन्य कच्चे माल की बढ़ती कीमतों से भी कारीगरों को नुकसान होता है।
बुनियादी ढांचे की कमी: कई हथकरघा कारीगरों के पास आधुनिक बुनियादी ढांचे और उपकरणों की कमी होती है, जिससे वे आधुनिक तकनीकों का उपयोग नहीं कर पाते हैं।
युवा पीढ़ी का पलायन: कम मजदूरी और कड़ी मेहनत की रूढ़िवादिता के कारण युवा पीढ़ी हथकरघा उद्योग में प्रवेश करने से हिचकिचाती है।
असंगठित क्षेत्र: हथकरघा उद्योग असंगठित क्षेत्र में काम करता है, जिससे कारीगरों को संगठित रूप से अपनी समस्याओं का समाधान करने में कठिनाई होती है।
कठिन श्रम: हथकरघा उद्योग में काम करना कठिन और श्रमसाध्य होता है, जिससे कारीगरों को शारीरिक और मानसिक रूप से तनाव का सामना करना पड़ता है।
डिजिटल मार्केटिंग की कमी: कारीगरों को अपने उत्पादों को ऑनलाइन बेचने के लिए डिजिटल मार्केटिंग के बारे में जानकारी और कौशल की कमी होती है।
हथकरघा क्षेत्र के लिए सरकार का दृष्टिकोण
हथकरघा बुनकरों और विशेष तौर पर भारतीय समाज के कमजोर वर्गो को समुचित रोजगार प्रदान करने और इस क्षेत्र के समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए सुदृढ़, प्रतिस्पर्धी और गतिमान हथकरघा क्षेत्र का विकास करना है।
घरेलू और वैश्विक बाजार की चुनौतियों का सामना करने के लिए केन्द्रित, लचीला और संपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार का हिस्सा बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धी कीमत निर्धारित करके समग्र बाजार का विस्तार करना, वैश्विक और घरेलू बाजार में ब्रांड निर्माण करना, हथकरघा उत्पादों के विपणन को सरल बनाना, स्वयं सहायता समूहों के तहत संगठित कर बुनकरों को सशक्त बनाना, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और उद्यमवृत्ति सहायता बढ़ाना, डिजाइन हस्तक्षेप के साथ-साथ उत्पाद विविधीकरण के माध्यम से नए और समकालिक डिजाइन शामिल करना, आरएंडडी सहायता, रियायती कीमतों पर कच्चे माल तक आसान पहुंच , सामाजिक सुरक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, जीवन बीमा, कार्य स्थल और इससे भी महत्वपूर्ण कम ब्याज दर पर आसान ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने सहित क्षमता बढ़ाना है ।
ये बात अलग है कि विकास आयुक्त (हथकरघा) कार्यालय का आम जनता के साथ सीधा संपर्क या संवाद नहीं है। फिर भी, यह कार्यालय राज्य हथकरघा और वस्त्र निदेशालयों, बुनकर सेवा केन्द्रों, हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद, राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम और अन्य पात्र हथकरघा एजेंसियों के माध्यम से और हथकरघा क्षेत्र के समग्र विकास और हथकरघा बुनकरों के कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं और कार्यक्रम कार्यान्वित करता रहा है ।
बताते चलें कि विकास आयुक्त (हथकरघा) कार्यालय विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए उल्लिखित राज्य हथकरघा निदेशालयों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। विकास आयुक्त (हथकरघा) कार्यालय के प्रशासनिक नियंत्रण में 29 बुनकर सेवा केन्द्र (डब्ल्यूएससी) और 06 भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएचटी) तथा दो क्षेत्रीय प्रवर्तन कार्यालयों (आरईओ) के साथ मुख्य प्रवर्तन अधिकारी (सीईओ) का एक कार्यालय कार्य कर रहा है । डब्ल्यूएससी, हथकरघा उद्योग को तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं । आईआईएचटी, हथकरघा उद्योग को तकनीकी रुप से प्रशिक्षित कार्मिक प्रदान करते हैं।
इस समय विकास आयुक्त (हथकरघा) कार्यालय, हथकरघा क्षेत्र के विकास और हथकरघा बुनकरों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम और कच्चा माल आपूर्ति योजना कार्यक्रम कार्यान्वित कर रहा है। अतः कहा जा सकता है कि सरकारी नौकरी की आस में बैठे लोग कठिन श्रम और प्रशिक्षण को अपने जीवन का आधार बनायें और खादी तथा बुनकर व्यवसाय को अपना कर दूसरे लोगों के लिए भी रोजगार का मार्ग प्रशस्त करें।