Breaking News

पर्यावरण के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता

          भारती देवी

पिछले महीने जुलाई को धरती का अब तक का सबसे गर्म महीने के रूप में रिकॉर्ड किया गया है. एक तरफ जहां भारत और चीन सहित दुनिया के कई देश भीषण बाढ़ और प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहे हैं, वहीं यूरोप के अधिकांश देश जंगलों में लगी भीषण आग से झुलस रहे हैं. दरअसल प्रकृति के इस रौद्र रूप के ज़िम्मेदार खुद इंसान है. विकास के नाम पर जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन ने धरती को खोखला कर दिया है. हालांकि एक तरफ जहां विकास के नाम विनाश जारी है तो वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की रक्षा और इसके संरक्षण के लिए भी युद्ध स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है. सतत विकास क तहत प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर ज़ोर दिया जा रहा है. इसी संदर्भ में 28 जुलाई को ‘विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस’ का भी आयोजन किया गया था. पर्यावरण की रक्षा हेतु पूरे विश्व में इस दिन को मनाया जाता है. इस दिन का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ पर्यावरण के लिए प्रकृति की सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाना है, जो मानव जाति की समृद्धि के लिए अत्यधिक आवश्यक है. इसे जलवायु परिवर्तन के बारे में सकारात्मकता राय बनाने के दिन के रूप में भी बनाया जाता है. विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनुष्य और पृथ्वी पर उनके अस्तित्व के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह दिवस हमें पेड़ों को न काटने का संदेश देता है. साथ ही जल दोहन के प्रति जागरूक भी करता है. जलवायु को बेहतर बनाने की तकनीक को बढ़ावा देने के लिए भी यह दिन महत्वपूर्ण है. इस वर्ष ‘विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस’ का थीम “वन और आजीविका: लोगों और ग्रह को कायम रखना” था.

पर्यावरण के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता

वास्तव में, इंसान और पर्यावरण के बीच हमेशा से एक गहरा संबंध रहा है. प्रकृति के बिना कोई भी जीवन संभव ही नहीं है. ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानों को तालमेल बिठाना होता है. लेकिन लगातार वातावरण दूषित हो रहा है जो हमारे जनजीवन को तो प्रभावित कर ही रहा है, साथ ही कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन गया है. जबकि सुखी और स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण का संरक्षण बेहद जरूरी है. लेकिन यह तभी संभव है जब सभी में पर्यावरण के प्रति जागरूकता होगी.

दुनिया भर समेत भारत में भी पर्यावरण और जैव विविधता की रक्षा के लिए कई कार्य किए जा रहे हैं. इसे संविधान के मौलिक कर्तव्य (भाग lVA अनुच्छेद 51A) में भी दर्ज किया गया है, जिसके तहत वनों, झीलों और नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के लिए दया करना शामिल है. इसके अतिरिक्त और भी कई अधिनियम भारत सरकार ने बना रखे हैं जिसके तहत पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं. जैसे वन्यजीव अधिनियम 1972, जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम 1974, वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम 1981, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 आदि.

टीबी के खिलाफ अपनों से जंग हारता है मरीज़

लेकिन ज़मीनी सतह पर देखें तो ऐसा लगता है कि इस नियमों का कोई महत्व नहीं है. देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां नदी और तालाबों को गंदा कर दिया गया है. इन्हीं में एक केंद्र प्रशासित क्षेत्र जम्मू के जिला कठुआ स्थित तहसील बिलावर के गांव बाड्डू स्थित तालाब है. जिसे देखकर यही लगता है कि जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम 1974 यहां पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहा है. यहां के तालाबों की इतनी बुरी हालत है कि इसके आसपास का वातावरण दूषित हो रहा है. इसका पानी इतना गंदा हो चुका है कि उस पर चारों ओर से मच्छरों ने अपना कब्जा कर रखा है. ऐसा नहीं है कि वहां के लोगों ने कोई आवाज नहीं उठाई है. समय-समय पर स्थानीय लोगों द्वारा इस तालाब की सफाई के प्रति आवाज उठती रही हैं. परंतु प्रशासनिक स्तर पर उनकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है.

पर्यावरण के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता

इस संबंध में स्थानीय व्यवसायी अभिषेक मेहरा कहते हैं कि इस तालाब से कुछ ही दूरी पर हमारा घर है. हम रोज सुबह शाम इसी के बगल से गुजरने पर मजबूर हैं. इस तालाब के ऊपर केवल मच्छर ही नजर आते हैं. पानी के ऊपर फंगल इस तरीके से जम गई है कि पूरा पानी हरा नजर आता है. इससे होने वाली बीमारियों का खतरा बना रहता है. अभिषेक मेहरा बताते हैं कि पहले इस तालाब का पानी बहुत साफ होता था. लोग इसका उपयोग दैनिक जीवन में करते थे और पशुओं के पीने लायक भी उपलब्ध था. परंतु पिछले कुछ वर्षों से इसकी कोई साफ सफाई नहीं हो पाई है. वहीं 35 वर्षीय अमित मेहरा कहते हैं कि आज जगह-जगह प्लास्टिक बैन हो रही है. परंतु इस तालाब के ऊपर गंदे पॉलिथीन बैग, प्लास्टिक की बोतलें और मच्छर ही मच्छर नजर आते हैं. इन मच्छरों से कई प्रकार की बीमारियों के होने का खतरा बना हुआ है.

वृद्धाश्रमों का बढ़ता चलन चिंताजनक

गांव के सरपंच जगदीश सपोलिया का कहना है कि पंचायत में पैसे की कमी के चलते कई सालों से इसकी साफ-सफाई का कार्य नहीं हो पा रहा है. वर्ष 2019-20 के पंचायती प्लान में इस तालाब की साफ सफाई एवं निर्माण कार्य को रखा गया था. परंतु अभी तक पंचायत को इसके लिए पैसा उपलब्ध नहीं कराया गया है. जिसकी वजह से यह काम अधूरा पड़ा हुआ है. सरपंच ने कहा कि पंचायत प्लान में गांव के सभी छोटे बड़े तालाबों की साफ-सफाई का प्रस्ताव है. परंतु पैसे की कमी के चलते हम इस कार्य को अंजाम नहीं दे पा रहे हैं. वही इस गांव की पंच उषा देवी के अनुसार इस तालाब के संबंध में ‘बैक टू विलेज प्रोग्राम’ में भी गंभीरता से चर्चा हुई थी. लेकिन अभी तक इसका कोई हल नहीं हो पाया है. पिछले 3-4 सालों से इस तालाब की समस्या का कोई हल नहीं हो पाया है. अब प्रश्न यह है आखिरकार यह प्लान कब रिलीज़ होगा? आखिरकार कब तक इस तालाब के आसपास के घरों को इस प्रदूषित वातावरण में जीना होगा?

स्थानीय लोगों की परेशानी पर मीडिया की ओर से भी ध्यान आकृष्ट कराया जाता रहा है. एक वर्ष पूर्व भी इसी तालाब पर एक आलेख भी लिखा गया था. परंतु साल बीत जाने के बाद भी इस तालाब की कोई सफाई नहीं की गई है. एक वर्ष में इस तालाब की स्थिति और भी बदतर हो गई है. अब प्रश्न यह है कि ऐसे ही कई तालाबपोखर और नदियां हैं जो प्रदूषण से पूरी तरह ग्रसित हैं. आखिर इनकी साफ सफाई की जिम्मेदारी किसकी हैसाल में केवल एक दिन पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रम करने से नहीं बल्कि प्रतिदिन इसके लिए जागरूकता चलाने की ज़रूरत है क्योंकि पर्यावरण से ही प्राणियों के जीवन का आधार जुड़ा हुआ है. (चरखा फीचर)

About Samar Saleel

Check Also

शाहरुख खान के गीत ‘गेरुआ’ की याद दिलाता है शौर्य मेहता और सृष्टि रोड़े का म्यूजिक वीडियो ‘दिल ये दिलबरो’

मुंबई। शौर्य मेहता (Shaurya Mehta) और सृष्टि रोड़े (Srishti Rode) के ‘दिल ये दिलबरो’ (Dil ...