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पड़ोसियों की निष्ठुरता: लगातार दो माह तक नहीं मिला अन्न का एक भी दाना, अस्थिपंजर बन गया गुड्डी का परिवार

      दया शंकर चौधरी

अपने घर पर जब आप एक वक्त की रोटी खा रहे हों, तो क्या कभी सोंचा है कि पड़ोस में कोई भूखा तो नहीं है। हालांकि हमारे समाज में त्योहार के वक्त पड़ोसियों के साथ भोजन करने का रिवाज है, किन्तु त्योहार बीत जाने के बाद सभी लोग केवल अपनी ‘रोटी’ खाने और बचाने (सहेजने) तक सीमित हो जाते हैं। यदि हम प्रतिदिन पड़ोसियों की मजबूरी और भूख की खोज खबर लेते रहें तो कोई भी कभी भी भूख से बेहाल नहीं हो सकेगा।

आप सोंच रहे होंगे कि रोटी और भूख पर ज्ञान बाँटने की कोशिश क्यों की जा रही है, तो हम आपको बतायेंगे कि हमारे समाज में आज भी ऐसे निष्ठुर और स्वार्थी तत्व मौजूद हैं जिन्हें दूसरों की भूख और बेहाली से कोई मतलब नहीं है। निष्ठुरता, भूख और बदहाली की जीती जागती तस्वीर उस समय देखने को मिली जब पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के अलीगढ़ कस्‍बे की एक 45 वर्षीय महिला और उसके पांच बच्‍चे, भीषण भूख से जूझने के बाद अस्‍पताल में भर्ती किए गए हैं। यूपी की ये महिला और उसके 5 बच्‍चे पिछले दो माह से लगातार भूख की मार झेल रहे हैं। मरणासन्न अवस्था में अस्थिपंजर बन चुके उनके जिन्दा शरीर को अस्पताल में भर्ती करके बचाने की कोशिश की जा रही है।

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अलीगढ़ में एक स्‍थानीय एनजीओ की ओर से परिवार की हालत की जानकारी देने के बाद इन्‍हें चिकित्‍सा सुविधा मिल पाई। इस परिवार के पास न तो राशन कार्ड है और न ही आधार कार्ड। अलीगढ़ के एक वरिष्‍ठ अधिकारी ने मामले पर हैरानी जताते हए कहा है कि उन्‍होंने जांच के आदेश दे दिए हैं। खबरों के मुताबिक गुड्डी के पति की कोरोना महामारी की पहली लहर में पिछले साल लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान मौत हो गई थी। अलीगढ़ डिस्ट्रिक्‍ट हॉस्पिटल में इस परिवार को अटेंड करने वाले डॉक्‍टर के अनुसार, गुड्डी और उसका परिवार बेहद कमजोर है और चलने में भी असमर्थ है। इसका बड़ा बेटा 20 साल का है और मिस्‍त्री का काम करता है। वह परिवार का कमाने वाला एकमात्र सदस्‍य है। इस साल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उसे भी अपना रोजगार गंवाना पड़ा था। अस्‍पताल के इमरजेंसी वार्ड के इनचार्ज डॉ. अमित ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘हम उन्‍हें दलिया और अन्‍य पौष्टिक भोजन देते रहे हैं। चिंता की बात नहीं है, ये ठीक हो जाएंगे।

अस्‍पताल के जिस वार्ड में गुड्डी और उसके बच्‍चे एडमिट किए गए हैं, वहाँ की तस्वीरों में गुड्डी के एक बच्‍चे को सेब खाते देखा जा सकता है। एनजीओ कार्यकर्ता, डॉक्‍टर और मीडिया भी इस अवसर पर मौजूद है। स्‍थानीय पत्रकारों द्वारा शूट की गई एक अन्‍य क्लिप में, इससे बड़े बेटे को अपनी शर्ट निकालते हुए देखा जा सकता है। इस दौरान इस बच्‍चे के शरीर पर हड्डियां ही हड्डियां ही नजर आ रही है और नाममात्र का ही मांस है। तीसरे विजुअल में उसकी लड़की के हाथ में ग्‍लकोज की ड्रिप लगी देखी जा सकती है। परिवार की ऐसी हालत किस तरह हुई, इसके जवाब में गुड्डी ने कहा, ‘घर में कुछ भी नहीं था, यह स्थिति लगभग तीन माह से है। भूख और बीमारी, दोनों ने हम पर विपरीत असर डाला है। हम खाना मांगने के लिए पड़ोसी के यहां जाते थे, लेकिन उन्‍होंने कहा कि वे एक या दो दिन ही खिला सकते हैं। वे हर दिन नहीं खिला सकते। इसके बाद हमने खाना मांगना बंद कर‍ दिया।

महिला ने बताया कि उसने गांव के स्‍तर पर अधिकारियों से मदद के लिए संपर्क किया था। गुड्डी ने कहा, ‘मैं प्रधान के यहां गई थी लेकिन उन्‍होंने कहा कि वे कुछ नहीं कर सकते।यहां तक कि मैंने केवल 100 रुपये की मदद मांगी थी लेकिन उन्‍होंने कहा कि उनके पास यह राशि नहीं है। हम डीलन (राशन शॉप मालिक) के यहां भी गई थे और पांच किलो चावल मांगा था लेकिन उसने कहा- हम नहीं दे सकते, अलीगढ़ के डिस्ट्रिक्‍ट मजिस्‍ट्रेट चंद्रभूषण सिंह का कहना है कि उन्‍हें इस बात की हैरानी है कि परिवार के साथ न राशन कार्ड है और न ही आधार कार्ड। उन्‍होंने कहा कि हो सकता है कि परिवार से इसके लिए प्रयास न किया हो।उन्‍होंने कहा, ‘आय के स्रोत खत्‍म होने के कारण इन्‍हें भुखमरी का सामना करना पड़ा। ये प्रधान और राशन शॉप मालिक के पास गए लेकिन परिवार के अनुसार, इन्हें खाद्य सामग्री नहीं दी गई। हम कारर्वाई करेंगे। अलीगढ़ के डीएम का कहना है कि पीड़ित परिवार को 5,000 रुपये दिए गये हैं। उन्होने कहा है कि इनका ऑफलाइन अंत्‍योदय कार्ड तैयार किया गया है, इसके अलावा इनका आधार कार्ड और बैंक अकाउंट भी बनवाया जा रहा है।

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