राजस्थान की राजनीतिक उठापटक थमने का नाम नहीं ले रही है. यहां जारी सियासी संकट के बीच विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने पायलट खेमे के विधायकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका वापस लेने की गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर की ओर से दायर याचिका को वापस लेने की अनुमति दे दी है.
स्पीकर की ओर से कपिल सिब्बल ने अदालत से कहा कि वो अपनी याचिका वापस लेना चाहते हैं, क्योंकि हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया है और उनकी याचिका निष्प्रभावी हो चुकी है. जिसके बाद शीर्ष न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष को अपनी याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी. अब कांग्रेस राजस्थान में सियासत की लड़ाई अदालत में नहीं लड़ेगी, बल्कि अब राजनीतिक लड़ाई लड़ी जाएगी.
वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्यपाल कलराज मिश्र के बीच तनाव बढ़ गया है. रविवार को मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाने से संबंधित एक नया प्रस्ताव भेजा था. इसकी फाइल सोमवार को राजभवन ने लौटा दी है. यह दूसरी बार है जब राज्यापल ने सत्र बुलाने की मांग को ठुकराया है.
वहीं राजस्थान स्पीकर के वकील कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय से याचिका वापस लेने का अनुरोध किया. सिब्बल ने कहा कि मसले पर सुनवाई की जरूरत नहीं है. विचार करके हम दोबारा अदालत आएंगे. इसके बाद अदालत ने उन्हें याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी है.
कांग्रेस देशभर में भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है. इसी बीच दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी को कार्यकर्ताओं के साथ हिरासत में लिया गया. उन्हें प्रदर्शन शुरू होने से पहले ही हिरासत में ले लिया गया है. वहीं कांग्रेस सोमवार को राजस्थान में प्रदर्शन नहीं करेगी.
गौरतलब है कि राजभवन ने विधानसभा सत्र बुलाने से संबंधित फाइलें राज्य के संसदीय कार्य विभाग को वापस कर दी है. राजभवन ने राज्य सरकार से कुछ अतिरिक्त विवरण भी मांगे हैं. विधानसभा सत्र पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है. यह जानकारी सूत्रों के द्वारा दी गई है.
राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनिया ने बसपा द्वारा अपने विधायकों को व्हिप जारी कर सदन में कांग्रेस के खिलाफ वोट करने को लेकर कहा है कि बसपा के महासचिव एससी मिश्रा ने राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर को पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने बसपा-कांग्रेस के कथित विलय को असंवैधानिक बताया है. याचिका पर सोमवार को राजस्थान उच्च न्यायालय में सुनवाई होनी है. एक संवैधानिक और कानूनी स्थिति पैदा हो गई है. या तो उच्च न्यायालय को फैसला करना चाहिए या राज्यपाल को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए.