उत्तर प्रदेश एक बार फिर शर्मसार हो गया। वह एक बार फिर अपनी होनहार बेटी को शोहदों से नहीं बचा पाया। पश्चिमी यूपी के बुलंदशहर में शोहदों की हरकतों के चलते स्कूटी से गिर जाने से अमेरिका में पढ़ रही छात्रा को अपनी जान से हाथ छोना पड़ गया। लड़की जान से गई तो नेतानगरी ने इस पर सियासत शुरू करने में देरी नहीं लगाई। विपक्ष का ऐसे हादसों के लिए योगी सरकार को घेरा जाना स्वभाविक है। क्योंकि बार-बार के दावों के बाद भी प्रदेश की कानून व्यवस्था में सुधार होता नहीं दिख रहा है,लेकिन विपक्ष यदि योगी को घेरने की सियासत से आगे बढ़कर योगी सरकार को कुछ सुझाव भी दे देता तो ज्यादा अच्छा रहता। ऐसा इसलिए भी जरूरी था क्योंकि विपक्ष यह तो चाहता है कि अपराधी पकड़े जाएं,परंतु वह अपराधी की जाति पहले देखता है। अपराधी अगर दलित या ब्राहमण है तो मायावती को और यदि अपराधी मुसलमान है तो समाजवादी पार्टी को गुस्सा आ जाता है। रही बात कांग्रेस की तो वह भी प्रदेश को अपराध मुक्त तो देखना चाहती है,लेकिन उसका ‘प्रेम का प्याला’ तो और भी बड़ा है। अगर किसी दलित पर कोई हिन्दू अत्याचार करता है तो प्रियंका वाड्रा का खून उबाल मारने लगता है,लेकिन जब कोई मुसलमान, दलित का उत्पीड़न करता है तो प्रियंका और उनके सिपहासलार अपना ‘मुंह सिल लेते हैं।’ कहा जाता है कि जाति न पूछो साधू की,लेकिन हमारी सियासत तो साधू ही नहीं शैतान की भी जाति देखकर सियासत करती है।
बहरहाल,विपक्ष के ऐसा करने से योगी सरकार के पाप धुल नहीं जाते हैं। उन्हें प्रदेश में होने वाले हर छोटे-बड़े अपराध पर सफाई देनी पड़ेगी। यही लोकतांत्रिक व्यवस्था भी है। यह हकीकत है कि अपराध का ग्राफ अगर बढ़ता है तो उसके लिए सबसे अधिक पुलिस जिम्मेदार होती है। कहीं न कहीं पुलिस अपना काम ईमानदारी से नहीं कर पाती होगी, तभी अपराधियों के हौसले बढ़ते होंगे। पुलिस के लिए जहां यह जरूरी है कि वह बड़े संगठित अपराधों और अपराधियों पर लगाम लगाए तो अपराध की छोटी-छोटी घटनाओं को भी उतनी ही संजीदगी से ले। इसके लिए पुलिस के सारे सिस्टम में बदलाव लाना होगा। इसके लिए सबसे पहले उसे अपने गिरेबा में झांकना होगा। यह देखकर बहुत दुखद होता है ड्यूटी के समय सड़क चैराहे पर तैनात अधिकांश पुलिस वाले मोबाइल में उलझे रहते हैं। कोई पूछने वाला नहीं ? कोई देखने वाला नहीं ? यह नजारा राजधानी की सडकों पर आम है तो और जिलों तथा दूरदराज के क्षेत्रों में क्या होता होगा,सहज अंदाजा है। ड्यूटी के समय मोबाइल पर सिर्फ पुलिस वाले ही उलझे रहते हैं,ऐसा भ्रम किसी को नहीं पालना चाहिए। करीब-करीब पूरी सरकारी मशीनरी मोबाइल फोबिया से ग्रस्त है।
खैर, बात अगर यह की कि जाए कि क्यों बार-बार,लगातार योगी राज में बेटियों-महिलाओं को सुरक्षा के तमाम इंतजाम के बाद भी शोहदों व मनचलों के कहर का शिकार होना पड़ रहा है तो इसके लिए समाज भी दोषी कम नहीं है। जो समाज अपने लड़कों को लड़कियों का सम्मान करना नहीं सिखा सकता है,वहां इस तरह की घटनाएं होती ही रहेंगी।अमेरिका में पढ़ रही बुलंदशहर निवासी होनहार छात्रा मनचलों के कहर का शिकार हो गई। शोहदों की छेड़छाड़ से बचने के लिए बाइक से गिरी छात्रा की मौत हो गई। पुलिस ने छात्रा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। अज्ञात बाइकर्स के खिलाफ मामला दर्ज कर उनकी तलाश शुरू कर ली गई है।
अमेरिका में कोरोना के भयंकर संक्रमण के कारण घर लौटीं सुदीक्षा अपने रिश्तेदार के घर जा रही थीं। वह चाचा के साथ बाइक पर बैठी थीं। इस दौरान रास्ते में बुलेट सवार कुछ शोहदों ने छेडखानी शुरू कर दी। मनचलों की छेडखानी के बचने के प्रयास में सुदीक्षा अपने चाचा की बाइक से नीचे गिर गई। जिससे उसके सिर पर काफी चोट आई और उसकी मौत हो गई। सुदीक्षा भाटी के परिवार के लोगों का आरोप है कि जब वह बाइक से औरंगाबाद जा रहे थे, तब उनकी बाइक का बुलेट सवार दो युवकों ने पीछा किया। कभी युवक अपनी बुलेट को आगे निकालते तो कभी छात्रा पर जोर के कमेंट पास करते। इतना ही नहीं, यह सिरफिरे चलते-चलते स्टंट भी कर रहे थे। इसी स्टंट दौरान अचानक बुलेट सवार युवकों ने अपनी बाइक का ब्रेक लगा दिया और जिस बाइक पर सुदीक्षा जा रही थी, उसकी बुलेट की टक्कर हो गई। इसके कारण बाइक गिर गई और सुदीक्षा घायल हो गईं। सुदीक्षा ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।
इस मामले में बुलंदशहर पुलिस का कहना है कि प्रत्यदर्शी या मृतक छात्रा के साथ रहे लोगों ने छेड़छाड़ की घटना की कोई तत्काल सूचना नहीं दी थी। इसके साथ ही पुलिस का यह भी कहना है कि बाइक को मृतक छात्रा का भाई चला रहा था, उनके चाचा उस वक्त बाइक पर नहीं थे। पुलिस का कहना है कि मृतक पक्ष ने सोमवार को एक तहरीर दे दी थी, लेकिन उसको वापस ले लिया गया। अभी तक तहरीर नहीं दी गई है इसलिए मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है। पुलिस का यह रवैया यह बताने के लिए काफी है कि पुलिस किस तरह से अपराधों का निपटारा करती होगी। जो अति-दुःखद, अति-शर्मनाक व अति-निन्दनीय। बेटियाँ आखिर कैसे आगे बढ़ेंगी? यूपी सरकार तुरन्त दोषियों के विरूद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई करे, बीएसपी की यह पुरजोर माँग है।
गौतमबुद्ध नगर के दादरी तहसील की रहने वाली सुदीक्षा बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। सुदीक्षा के पिता छोटा ढाबा चलाते हैं और मां एक गृहिणी हैं। सुदीक्षा अपने छह भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। घर में आर्थिक स्थिति खराब होने पर उसके पिता ने स्कूल से निकल लिया था। छोटे से खेत में फसल उगाकर परिवार पालने वाले सुदीक्षा के पिता जितेंद्र भाटी ने 2004 में व्यवसाय शुरू किया था, लेकिन उनको 2009 में काफी नुकसान का सामना करना पड़ा। इसके बाद जमीन बेचकर चाय की दुकान शुरू की। इसके बाद सुदीक्षा को गांव के बेसिक स्कूल में प्रवेश मिला। इस दौरान उसने मन लगाकर पढ़ाई की। सुदीक्षा ने बेसिक शिक्षा विभाग के परिषदीय स्कूल से कक्षा पांच तक पढ़ाई की। इसके बाद प्रवेश परीक्षा के जरिये सुदीक्षा का एडमिशन एचसीएल के मालिक शिव नदार के सिकंदराबाद के स्कूल में हुआ था। सुदीक्षा ने कक्षा 12 में बुलंदशहर टॉप किया और इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उनका चयन अमेरिका के एक कॉलेज में हुआ। पढ़ाई के लिए सुदीक्षा को एचसीएल की तरफ से 3.80 करोड़ रुपये की स्कॉलरशिप भी दी गयी थी। परिजन के मुताबिक कोरोना की वजह से सुदीक्षा अमेरिका से स्वदेश लौटी थी।
लब्बोलुआब यह है कि एक तरफ योगी सरकार को कानून व्यवस्था में सुधार के लिए सख्त कदम उठाने पड़े तो वह उठाए। ऐसा लगता है कि अब समय आ गया है कि कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने पर पहले पुलिस विभाग के बड़े ओहदों पर बैठे अधिकारियों के पेंच कसे जाएं इसके बाद छोटे अधिकारियों की गर्दन नापी जाए। एक अपराध होता है तो इसके लिए कहीं न कहीं पूरा पुलिस प्रशासन दोषी होता है। पुलिस वालों के काम की गंभीरता से माॅनीटरिंग होनी चाहिए। वह क्या करते हैं। दिनभर उनकी क्या दिनचर्या रहती है। किससे मिलते हैं आदि-आदि। इसके साथ-साथ ऑनलाइन एफआईआर को भी बढ़ावा मिलना चाहिए। एफआईआर के तरीके को काफी सुगम बनाना होगा। जहां तक बाद विपक्ष की है तो चुनाव की तारीख ज्यों ज्यों नजदीक आएगी। विपक्ष हर मुद्दे को अपने हिसाब से हवा देगा। सरकार को यह तय करना होगा कि वह इससे कैसे निपटे। उचित होगा योगी सरकार विपक्ष के हमलों से विचलित होने की बजाए अपने कर्तव्यों का पालन करे। जहां तक बात विपक्ष की है तो यह निश्चित है कि प्रदेश के बढ़ते अपराधों को लेकर जब तक विपक्ष का नजरिया बिल्कुल साफ नहीं होगा,तब तक यह सियासी मुद्दा नहीं बन पाएंगा,जैसा की हाल फिलहाल देखने को मिल भी रहा है।