राष्ट्रीय राजधानी के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा से खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था। पिपरहवा को प्राचीन शहर कपिलवस्तु का ही एक हिस्सा माना जाता है।पिपरहवा का टीला प्राचीन कपिलवस्तु से इसकी पहचान कराने का रहस्य उजागर करता है।
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1898 में इस स्तूप स्थल पर एक ब्रिटिश औपनिवेशिक इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे (1852-1936 ई.) द्वारा एक ताबूत की खोज एक युगांतकारी खोज थी। इसके ढक्कन पर शिलालेख मिला था, जो बुद्ध और उनके शाक्य समुदाय के अवशेषों को संदर्भित करता है। उस पर लिखा है, ‘सुकिति भातिनं सा-भगिनिकां सा-पुता-दलनम इयाल सलिला निधारे भद्धसा भगवते शाकियानं’, जिसका अर्थ है ‘बुद्ध के अवशेषों को जमा करने का यह नेक काम’ शाक्यों के भाइयों, बहनों और बच्चों द्वारा किया गया है।
इस खोज के बाद कई अन्वेषण हुए। स्तूप की एक और खुदाई आंशिक रूप से पेप्पे द्वारा और आंशिक रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (1971-77) द्वारा की गई। इस दौरान निर्माण के तीन चरणों का पता चला और स्टीटाइट अवशेष ताबूत भी सामने आए, जिनमें से प्रत्येक उत्तरी और दक्षिणी कक्ष से है, जिसमें कुल 22 पवित्र अस्थि अवशेष (बड़े ताबूत से 12 पवित्र अवशेष और छोटे ताबूत से 10 पवित्र अवशेष) शामिल हैं। 20 पवित्र अस्थि के टुकड़े राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में रखे गए हैं, जबकि शेष दो पवित्र अस्थि टुकड़े भारतीय संग्रहालय, कोलकाता में प्रदर्शित हैं।
इसके बाद पिपरहवा के पूर्वी मठ में विभिन्न स्तरों और स्थानों से 40 से अधिक टेराकोटा मोहरों की खोज हुई, जिनमें से एक मोहर पर लिखा है, ‘ओम देवपुत्र विहारे कपिलवस्तु भिक्षु संघ्सा।’ इसका अर्थ है, ‘देवपुत्र विहार में रहने वाला कपिलवस्तु के बौद्ध भिक्षुओं का समुदाय’ उत्तर प्रदेश पर्यटन के अनुसार, यहां देवपुत्र का आशय कनिष्क से है, जो बौद्ध धर्म के महान प्रचारक थे और जिसने कपिलवस्तु में सबसे विशाल विहार का निर्माण करवाया था और वहां स्थित स्तूप का पुनर्निर्माण भी कराया। इससे यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्राचीन कपिलवस्तु नगर उस स्तूप और विहार के निकट ही स्थित होगा।
On the first day of exposition of the holy relics from India, Wat Maha Wanaram in Ubon Ratchathani illuminates in the evening. An auspicious chanting ceremony brings bliss of devotion. Over a hundred thousand devotees from far and wide pay obeisance to the relics. pic.twitter.com/iblwvMtg8o
— India in Thailand (@IndiainThailand) March 10, 2024
इसके अलावा पहली और दूसरी शताब्दी ईस्वी के ब्राह्मी चरित्र में महा कपिलवस्तु भिक्षु समुदाय ने यह स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत प्रदान किए हैं कि पिपरहवा प्राचीन कपिलवस्तु में ही स्थित था।
रिपोर्ट-शाश्वत तिवारी