विपक्षी दल प्रयाः चुनावी वर्ष में किसी कानून को निरस्त करने का वादा करते है। क्योंकि इस समय तक संबंधित कानून के लाभ हानि व आमजन की प्रक्रिया सामने आ जाती है। यदि उक्त कानून से लोगों की नाराजगी दिखाई देती है,तब उसे निरस्त करने का वादा लाभ देता है। लेकिन इस समय कांग्रेस राहुल गांधी के अंदाज में संचालित हो रही है। राहुल गांधीने वादा किया है कि जिस दिन कांग्रेस सत्ता में आई, उसी दिन तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर दिया जाएगा। इन कानूनों को फाड़कर कूड़ेदान में फेंका जाएगा,जिससे इस देश का किसान बच सके।यह विचार उन्होंने खेती बचाओ,किसान बचाओ ट्रैक्टर यात्रा शुरू करने से पहले व्यक्त किये। इसके बाद वह ट्रैक्टर पर लगाये गए विशेष सोफे पर बैठ कर रैली पर रवाना हुए।
राहुल को अपना यह वादा पूरा करने के लिए न्यूनतम दो हजार चौबीस तक इंतजार करना होगा। उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है। इस बीच यदि नए कानून से लाभ दिखाई दिए,तब भी क्या राहुल इसे हटा कर ही दम लेंगे। क्योंकि वह किसी बेहतर विकल्प की बात नहीं कर रहे है। नए कानून पर हमला कर रहे है। लेकिन पुराने कानून की अच्छाईयों व स्वामीनाथन रिपोर्ट पर मौन है। किसानों पर स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने की जिम्मेदारी यूपीए की थी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की जी सिफारिश की गई थी,कांग्रेस ने उससे बचती रही। मोदी सरकार ने तो स्वामीनाथन रिपोर्ट की सिफारिश पर अमल किया।
किसानों को उसका लाभ दिया। जबकि नरेंद्र मोदी के पिछले कार्यकाल में कांग्रेस सवाल करती थी कि स्वामीनाथन रिपोर्ट कब लागू होगी। सरकार का साफ कहना है कि।ना तो कृषि मंडी समाप्त होंगी ,ना न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना को हटाया जाएगा। ऐसे में किसानों के नाम पर आंदोलन का कोई औचित्य ही नहीं है। वैसे यह दावा कोई नहीं कर सकता कि इस आंदोलन में कितने किसान है,और कितने बिचौलिए व राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता है। ट्रक पर लाद कर ट्रैक्टर को लाना,उसे मुख्य मार्ग पर आग लगाना,यह कार्य कोई सच्चा किसान कभी नहीं कर सकता। नरेंद्र मोदी ने ठीक कहा कि किसान व हमारा समाज जिन यंत्रों की विधिवत पूजा करता है,उसको जलाया जा रहा है। अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों के नाम पर जम कर राजनीति चल रही है। इस आंदोलन के नेतृत्व को देखकर ही बहुत कुछ अनुमान लगाया जा सकता है। जहाँ भी आंदोलन हो रहे है,वहां राजनीति साफ दिख रही है। उत्तर प्रदेश में राहुल प्रियंका सक्रिय हुए थे,तो अन्य विपक्षी भी सामने आ गए। पंजाब का आंदोलन सर्वाधिक दिलचस्प है। यहां मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह किसान आंदोलन की कमान अपने पास रखना चाहते थे। यह देख कर अकाली दल भी बेचैन हो गया।
सिमरन जीत बादल केंद्रीय मंत्री पद छोड़ कर आंदोलन में कूद पड़ी। अकाली दल किसी भी दशा में अमरिंदर को वाक ओवर नहीं देना चाहता। यह राजनीति यहीं तक सीमित नहीं है।अमरिंदर की राह रोकने के लिए राहुल गांधी स्वयं नवजोत सिद्धू को लेकर आ गए। राहुल गांधी के प्रयासों से नवजोत सिंह सिद्धू डेढ़ साल बाद कांग्रेस के मंच पर नजर आए। वह कृषि कानूनों के विरोध में कांग्रेस द्वारा निकाली गई ट्रैक्टर रैली में शामिल हुए। राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली गई रैली के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने उस ट्रैक्टर को चलाया जिस पर कैप्टन अमरिंदर और राहुल गांधी सवार थे। बताया जाता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को सन्देश देने के लिए यह किया गया। कैप्टन व सिद्धू में छत्तीस का आंकड़ा जग जाहिर है। बताया जाता है कि राहुल ने इस मिशन पर हरीश रावत को लगाया था। हरीश रावत ने सिद्धू को कांग्रेस का भविष्य करार दिया था। इस बयान से कांग्रेस की आंतरिक राजनीति तेज हो गई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह खेमा इस बयान से नाराज है। डेढ साल पहले नवजोत सिंह सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग वापस लेकर उन्हें ऊर्जा मंत्री बनाया था। इसके विरोध में नवजोत सिद्धू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद नवजोत सिंह सिद्धू न तो किसी भी विधानसभा सत्र में शामिल हुए और न ही उन्होंने कांग्रेस के किसी कार्यक्रम में भाग लिया।
मतलब साफ है किसानों के नाम पर राजनीतिक हिसाब किताब चल रहा है। दूसरी ओर भाजपा का कहना है कि किसानों की भलाई के लिए मोदी सरकार ने जितने काम किए हैं उतने काम किसी सरकार ने किसानों के लिए नहीं किए हैं। किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में अनेक ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। स्वामीनाथन आयोग की जिन सिफारिशों को कांग्रेस सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था मोदी सरकार ने उन सिफारिशों को स्वीकार किया है। किसानों के लिए उनकी फसल का उत्पादन लागत का न्युनतम डेढ़ गुना एमएसपी निर्धारित करने की घोषणा की। इसके बाद प्रति वर्ष रवी एवं खरीफ फसलों की एमएसपी में लगातार वृद्वि की जा रही है।