हिंसा, उत्पीड़न, अत्याचार की प्रत्येक घटना निंदनीय होती है। लेकिन इस पर होने वाली राजनीति भी गलत है। ऐसे में कई बार विचित्र स्थिति भी पैदा होती है। हाथरस में तो राजनीति का मेला लगा,लेकिन बलरामपुर व राजस्थान की ओर मुंह करके इनमें से किसी ने देखा तक नहीं। हाथरस घटना को खूब तूल दिया गया। विपक्षी पार्टियों के नेता इसका लाभ उठाने दौड़ पड़े। उनका उद्देश्य योगी आदित्यनाथ सरकार को बदनाम करना था। राजनीतिक लाभ के लिए विरोधी हाथरस पहुंच रहे थे। राहुल गांधी,प्रियंका वाड्रा यहां पहुंचने के लिए बेकरार थे। लेकिन राजस्थान में होनी वाली घटना पर मौन थे। इन्होंने वहां पहुंचने की जहमत नहीं उठाई। यह दोहरा आचरण था। इसी प्रकार मीडिया का एक वर्ग भी योगी सरकार को घेरने का प्रयास कर रहा था। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी तरफ से सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी।
इससे विरोधियों के हाँथ से राजनीति का अवसर निकल गया। बात यहीं तक सीमित नहीं है। इसके बाद जो तथ्य सामने आ रहे है वह भी चौंकाने वाले है। सरकार के विरोध का अधिकार विपक्षी पार्टियों को है। लेकिन यह सब संवैधानिक दायरे में होना चाहिए। कांग्रेस नेता केवल सरकार पर निशाना लगाने आये थे। कहा कि कोई भी शक्ति आवाज को दबा नहीं सकती है। प्रदेश सरकार पीड़ित परिवार को सुरक्षा देने में फेल रही। यह भी कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। जब तक न्याय नहीं मिल जाता, हम यह लड़ाई जारी रखेंगे। परिवार न्यायिक जांच चाहता है। हम अन्याय के खिलाफ लड़ेंगे। इसके बाद कांग्रेस नेता वापस दिल्ली रवाना हो गए।
राहुल गांधी ट्रैक्टर रैली में शामिल होने पंजाब चले गए। जबकि प्रदेश सरकार द्वारा पहले ही जांच का निर्देश एसआइटी को भी दिया गया है। एसआइटी की पहली रिपोर्ट के बाद अब अगली रिपोर्ट पर भी सख्त कार्रवाई के भी निर्देश दिए। एसआइटी भी पीड़ित परिवार की हर बात को गंभीरता से सुनेगी, ऐसा उनको निर्देश है। उत्तर प्रदेश के मंत्री व दलित नेता रमापति शास्त्री ने विपक्ष पर गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। कहा कि प्रदेश में दंगे की साजिश है,हाथरस तो केवल बहाना है। विपक्ष को दलित बेटी की इज्जत का सम्मान प्रिय नहीं है। असल में विपक्षी पार्टियां उत्तर प्रदेश में जातीय दंगा कराना चाहती हैं। विपक्ष के नेता नहीं चाहते कि सच सामने आए। विपक्ष के ट्वीट,ओडियो टेप्स और पुरानी घटनाएं दंगे की साजिश की ओर इशारा कर रही हैं। उन्होंने कहा कि बसपा सुप्रीमो मायावती बयान देकर दलित बिटिया का अपमान कर रहीं हैं। वह भी पूर्व मुख्यमंत्री हैं, उनको मामले की संवेदनशीलता समझनी चाहिए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फौरन ही पीड़ित परिवार को पच्चीस लाख रुपये की आर्थिक मदद के साथ एसआईटी गठित कर दी। वहीं प्रारम्भिक रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई भी शुरू हो चुकी थी। मुख्यमंत्री ने पुलिस अधीक्षक सहित पांच पुलिसकर्मियों को निलम्बित करते हुए नार्को,पॉलीग्राफ टेस्ट का फैसला किया है। प्रदेश सरकार की पहल से मामले का सच जरूर सामने आएगा। हाथरस मामले में नए खुलासे हो रहे हैं। पुलिस ने जिले के चंदपा थाने में जाति आधारित संघर्ष की साजिश,सरकार की छवि बिगाड़ने के प्रयास और माहौल बिगाड़ने के आरोप में अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।
पचास लाख का प्रलोभन देकर पीड़ित परिवार से झूठ बोलने का मामला भी दर्ज किया गया है। दंगे भड़काने का एक ऑडियो भी वायरल हुआ है। अनेक लोगों पर राजद्रोह विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने जैसे कई गंभीर आरोपों है। योगी आदित्यनाथ ने हाथरस की राजनीति को राज्य सरकार के खिलाफ षड़यंत्र बताया। कहा कि कुछ लोग जातीय और सांप्रदायिक हिंसा भड़काना चाहते हैं। दंगे की आड़ में उनकी रोटियां सेंकने के लिए उनको अवसर मिलेगा। इसलिए नए नए षड्यंत्र करते रहते हैं। योगी आदित्यनाथ ने खुफिया तंत्र को सक्रिय किया था। इससे चौकाने वाले तथ्य सामने आए।
दंगे की साजिश में पीएफआइ के एजेंट सहित चार को गिरफ्तार किया गया है। पीएफआइ का बेहद सक्रिय एजेंट अतीकुर्रहमान बूलगढ़ी गांव में पत्रकार के रूप में अपने काम को अंजाम देने में लगा था। पीएफआइ के बेहद सक्रिय एजेंट अतीकुर्रहमान ने बड़ी हिंसा की साजिश रची थी। इन सबकी योजना हाथरस के बहाने उत्तर प्रदेश में बड़ै पैमाने पर हिंसा फैलाने की थी। पता चला कि इनका संबंध पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पीएफआई एवं उसके सहसंगठन कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया सीएफआई से है। केरल के अतीकुर्रहमान ने धन संग्रह कर रहा था। इसका दिल्ली के शाहीन बाग के साथ ही लखनऊ व अलीगढ़ में सीएए के विरोध में फैली हिंसा में भी नाम आया है। इसने कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया का भी गठन कराया था।यह स्वयं उसका कोषाध्यक्ष है। बताया जा रहा है कि जस्टिस फॉर हाथरस नाम से फर्जी वेबसाइट बनायी गयी थी। इसके माध्यम से जातीय दंगे कराने की साजिश रची गई थी। पीएफआई व एसडीपीआई जैसे संगठन नागरिकता कानून के खिलाफ हिंसा में शामिल थे। उन्हीं संगठनों ने यूपी में भी हिंसा फैलाने के लिए वेबसाइट तैयार कराने में अहम भूमिका निभाई थी।