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सुरक्षित मातृत्व जागरूकता अभियान, गर्भावस्था में खून की कमी को न करें नजरंदाज

कानपुर नगर। कल्याणपुर ब्लॉक के हेतपुर गाँव की निवासी लक्ष्मी देवी बताती हैं जब वो गर्भ से थी तो उन्हे खून की कमी थी, आशा बहु राजकुमारी के द्वारा उन्हें बताया गया कि उनके शरीर में मात्र 6.3 ग्राम खून रह गया हैं, जिसके चलते उन्हे उच्च जोखिम वाली गर्भवस्था में रखा गया। और उनको बताया गया कि वो समय पर जांच करती रहे और आयरन की गोलियां जरूर खाये। लक्ष्मी देवी ने वैसा ही किया। जब उनके प्रसव का समय आया तो उनका खून 9 ग्राम हो गया था और उनका सफलता पूर्वक संस्थागत प्रसव कराया गया।

गर्भवती में खून की कमी बहुत ही हानिकारक हो सकती है। इससे मातृ और शिशु दोनों की जान को खतरा हो सकता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण – 5 (2019-21) की रिपोर्ट के अनुसार जनपद में करीब 46.3 प्रतिशत गर्भवती खून की कमी से ग्रस्त हैं। इसके अलावा 15-49 आयु की 57 प्रतिशत समस्त महिलाओं में खून की कमी पायी गयी है। इसी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्र की 37.1 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र की 47.9 गर्भवती महिलाएं खून की कमी से ग्रसित हैं।

• समय पूर्व प्रसव या कम वज़न वाले बच्चे का जन्म का खतरा बढ़ सकता है| • प्रसव के दौरान रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है| • प्रसव के बाद गर्भवती को कई तरह की दिक्कतों का सामना कर पड़ सकता है- जैसे पोस्ट पार्टमहेमरेज| • बच्चे का मानसिक एवं शारीरिक विकास प्रभावित हो सकता है| • जन्म के बाद बच्चे में भी खून की कमी हो सकती है|

जनपदीय परिवार कल्याण कार्यक्रम के नोडल व एसीएमओ डॉ आरवी सिंह का कहना है की गर्भावस्था का समय किसी भी महिला और उसके परिवार के लिए अत्यंत ख़ुशी का समय होता है| महिला को भी नयी जिंदगी के अपने अंदर पलने की ख़ुशी और परिवार को नए सदस्य का इंतज़ार रहता है| ऐसे समय प्रसव पूर्व जांच करा कर और सही पौष्टिक आहार लेकर गर्भावस्था के समय खून की कमी से निपटा जा सकता है|

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महिलाओं में खून की कमी को लेकर जिला महिला चिकित्सालय की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ॰ रुचि जैन का कहना है कि महिलाओं में खून की कमी के बहुत से कारण हैं। जैसे कि सामाजिक, व्यक्तिगत, जागरूकता की कमी, अशिक्षा। ऐसे में वो अपना ख्याल नहीं रखती। वही दूसरी ओर जब महिला किशोरावस्था में होती है तो वो मासिक धर्म से होना शुरू हो जाती है जिसकी वजह से उसके अंदर खून की कमी होती है। फिर यही महिला जब माँ बनती है तो गर्भ में पल रहे बच्चे को भी खून की जरूरत होती है वही फिर गर्भवती माँ भी खून की कमी का शिकार हो जाती है। और फिर जब यही एनेमिक महिला बच्चे को जन्म देती है तो स्वाभाविक एनेमिक महिला का बच्चा भी खून की कमी से ग्रसित होगा। तो ये चक्र है जो चलता रहता हैं। इसको रोकने के लिए सबसे पहले महिलाओं को साफ सफाई और खानपान का जरूर ध्यान रखना चाहिये, फिर आशा, एएनएम या स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से मिलकर अपनी नियमित जांच करानी चाहिये। जब महिला गर्भ से हो तो उसे अस्पताल से मिली आयरन की गोलियां जरूर खानी चाहिये। हमारे समाज में रूढ़िवादी सोच के चलते आज भी महिलाएं अंत में ही बचा हुआ खाना खाती हैं। जबकि उन्हे तो अपना सबसे ज्यादा ख्याल रखना चाहिये।

 

सही समय पर सही इलाज, जच्चा और बच्चा दोनों हों खुशहाल

जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता हरिशंकर मिश्रा बताते हैं कि खून की कमी पता चलने पर गर्भवती को सही इलाज किया जा सकता है और अंतिम समय में होने वाली समस्याओं से निजात मिल सकती है| प्रसव पूर्व जांचों के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के अंतर्गत माह की प्रत्येक 1, 9 16 व 24 तारीख को सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भवती की सम्पूर्ण जांच की जाती हैं। इस दिन कोई भी गर्भवती महिला स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर जांच करा सकती है।

 

गर्भावस्था में एनीमिया की वजह से होने वाली जटिलताएँ

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कल्याणपुर के चिकित्सा अधीक्षक डॉ अविनाश यादव ने बताया कि गर्भवती को खून की कमी होने पर सही समय पर डॉक्टर की सलाह और पौष्टिक आहार देकर सही किया जा सकता है, लेकिन समस्या बढ़ जाने पर कई तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।

• समय पूर्व प्रसव या कम वज़न वाले बच्चे का जन्म का खतरा बढ़ सकता है|
• प्रसव के दौरान रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है|
• प्रसव के बाद गर्भवती को कई तरह की दिक्कतों का सामना कर पड़ सकता है- जैसे पोस्ट पार्टमहेमरेज|
• बच्चे का मानसिक एवं शारीरिक विकास प्रभावित हो सकता है|
• जन्म के बाद बच्चे में भी खून की कमी हो सकती है|

 

रिपोर्ट – शिव प्रताप सिंह सेंगर

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