मुंबई/ कल्याण। परशुराम बिर्गेड मंच द्वारा डॉ रमाकांत क्षितिज को साहित्य रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस अवसर बोलते हुये डॉ रमाकांत क्षितिज ने कहा कि ज़ब अपनों से अपनों के बीच स्नेह मिलता है तो कान्हा ज़ी के प्रति मन भर आता है।
परशुराम ब्रिगेड मंच कल्याण, कल्याण में मंच से सम्मानित होकर बहुत सुखद अनुभूति हुई। यद्यपि की मैं कोई साहित्यकार तो हूँ नही, कान्हा ज़ी कुछ कहने के लिये जैसे लाखों करोड़ों मुँह बनाये हैं, उन मुखों से सृष्टि के आरम्भ से कहलवा रहे हैं। ठीक इसी तरह बहुतो से लिखवा भी रहे हैं। उन्हीं में से मैं भी एक हूँ यद्यपि की “मैं” का प्रयोग ठीक नही है। सही नही है, पर क्या करू! मेरे पास दूसरा शब्द भी तो नही है।
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“मैं” तो कुछ होता नही सिर्फ “वह” ही “वह” है। यद्यपि की “वह” शब्द भी ठीक नही क्योंकि “वह” कहने पर अपने अस्तित्व को मानना पड़ता है जबकि है नहीं, खैर! परशुराम ब्रिगेड मंच की तरफ से मुझे साहित्य रत्न पुरस्कार दिया गया। जैसा की मैंने कहा “मैं” का कोई अस्तित्व नही, हाँ इस “मैं” को कलम बनाकर कुछ लिखवा देते हैं। शब्द उनके, विचार उनके, सारे संसार का कण कण उनका, फिर भी मुझे अस्तित्व देते हैं। यह मेरे कान्हा की ही तो कृपा है। मुझे पुरस्कार स्नेह सम्मान आदि दिलवाते हैं। यह मेरे कान्हा की कृपा है।
मुझे इस लायक समझा, यह परशुराम बिर्गेड मंच व उसके कर्ता धर्ता प्रिय मनोज पाण्डेय, प्रिय विनीत पाण्डेय, प्रिय महेंद्र चौबे प्रिय बंटी तिवारी व उनकी पूरी टीम के साथ साथ समाज का स्नेह है व सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व भी डॉ क्षितिज को महाराष्ट्र सरकार द्वारा महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिल चूका है। डॉ क्षितिजकी अब तक दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जल्द ही ‘तरी ही पुन्हा जगावे’ नमक मराठी भाषा में पुस्तक प्रकाशित होने वाली है.