भारतीय दर्शन में जीवन का चौथा चरण संन्यास आश्रम होता है। लेकिन आध्यात्मिक प्रेरणा से किसी भी अवस्था में संन्यास ग्रहण किया जा सकता है। इस परम्परा में बालक, युवा और वृद्ध सभी लोग सम्मिलित है। हमारी परंपरा में इस प्रकार के संन्यास जीवन पर अमल करने वाले अनगिनत उदाहरण है। संन्यास आश्रम के साथ समाज सेवा को जोड़कर चलने की भी परम्परा रही है।
इस मार्ग का अनुसरण करने वालों ने निजी जीवन संन्यास को अपनाया, इसी के साथ उसमें समाज सेवा का भी समावेश किया। इस प्रकार के उदाहरणों की भी कमी नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संन्यास की इसी परम्परा पर चल रहे है। वह निजी जीवन में संन्यास आश्रम की मर्यादाओं का अमल करते है। इसके साथ ही समाज सेवा के प्रति भी समर्पित है। संन्यास और समाज सेवा का सामंजस्य उनके आचरण में परिलक्षित होता है।अपना प्रत्येक पल समाज के चिंता व सेवा में लगाने का प्रयास करते है। संन्यास व समाज की यह भावभूमि उन्हें लोगों के कष्ट पर व्यथित करती है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की संचारी रोग आपदा का लोकसभा में वर्णन करते हुए उनकी आँखें छलक जाती है। मुख्यमंत्री बने तो इस समस्या के समाधान पर ध्यान दिया। इस मामले में अभूतपूर्व सफलता मिली है। समाज के प्रति उनकी संवेदना अक्सर दिखाई देती है। उनके पूर्व आश्रम के पिता का निधन होता है। योगी को सूचना मिलती है, प्रदेश में कोरोना आपदा है, वह आपदा प्रबंधन की बैठक जारी रखते है, मन की व्यथा को रोकते है, आंसू पोछ लेते है। जरुरतमन्दों के भोजन इलाज आदि की व्यवस्था करते है। वह प्रदेश की जनता के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करते है। पूर्व आश्रम पिता के अंतिम संस्कार में नहीं जाते है। स्पष्ट है कि योगी आदित्यनाथ ने संन्यास व समाज सेवा का समन्वय स्थापित किया है। यह उनकी जीवन शैली है। समाज सेवा व मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने विकास के अनेक कीर्तिमान स्थापित किये। पैंतालीस विकास व जनकल्याण योजनाओं के क्रियान्वयन में उत्तर प्रदेश को शीर्ष पर पहुंचा दिया।
संन्यास व आस्था के विषय में उनका अलग रूप परिलक्षित होता है। वैसे वह आस्था के विषयों को भी विकास से जोड़ देते है। तीर्थ स्थलों के विकास इसके प्रमाण है। वह राजनीति को ध्यान में रख कर आस्था की अभिव्यक्ति नहीं करते है। यह विषय सहज स्वाभाविक रूप से उनके जीवन में शामिल है। विगत साढ़े चार वर्षों में अयोध्या के विकास का नया अध्याय लिखा गया। इस क्रम में योगी आदित्यनाथ यहां एक धार्मिक कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। उनका संबोधन मुख्यमंत्री के रूप में नहीं था। यहां वह एक संन्यासी व श्री महंत के रूप में दिखाई दे रहे थे। महर्षि बाल्मीकि का उल्लेख किया।
उन्होंने लिखा था- रामोविग्रह वान धर्मः’ अर्थात श्रीराम धर्म के साक्षात स्वरूप हैं, राम ही धर्म है। धर्म के जो साक्ष्य किसी जगह मिलते हैं, वह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम में ही मिलते हैं। इसलिए भगवान श्रीराम और धर्म परस्पर पूरक है। अयोध्या धर्म के पथ की अनुगामी है। यही श्रीराम और सनातन धर्म की विशेषता है। प्रभु श्रीराम जी का जीवन चरित्र सामाजिकता के साथ-अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष देने वाला है। योगी आदित्यनाथ वैभव व आस्था के अनुरूप अयोध्या का विकास कर रहे है। यहां अंतरराष्ट्रीय एयर पोर्ट व दशरथ मेडिकल कॉलेज का निर्मांण प्रगति पर है। श्री राम वन गमन मार्ग का निर्माण कार्य पौराणिक गरिमा के अनुरूप किया जा रहा है।
अयोध्या मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में शीर्ष पर है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस दृष्टि से अयोध्या को दुनिया मे प्रतिष्ठित कर रहे है। धार्मिक स्थलों का समग्र विकास किया जा रहा है। जिससे विदेश से आने वाले पर्यटकों को भी सकारात्मक सन्देश मिले। समग्र विकास में दशरथ मेडिकल कॉलेज का निर्माण भी शामिल है। यहां लोगों का इलाज भी हो रहा है। मेडिकल विद्यार्थियों की पढ़ाई भी शुरू हो गई है। इस मेडिकल कॉलेज को और सुविधासंपन्न बनाने के लिए अनेक निर्माण कार्य चल रहे हैं। कई निर्माण कार्य पूरे होने वाले हैं जबकि कुछ महत्वपूर्ण निर्माण कार्य चल रहा है।पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या विकास प्राधिकरण की तरफ से मास्टर प्लान में शामिल बीस हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट की समीक्षा की थी। उस वर्चुअल समीक्षा में योगी आदित्यनाथ व संबंधित अधिकारी शामिल हुए थे। मास्टर प्लान में सभी विकास परियोजनाओं को शामिल किया गया है।
इसमें पुरातत्व महत्व के मंदिरों और परिसरों का जीर्णोद्धार व सुंदरीकरण शामिल है। बीस हजार करोड़ रुपए के इन प्रोजेक्ट में क्रूज पर्यटन परियोजना, रामकी पैड़ी पुनर्जनन परियोजना, रामायण आध्यात्मिक वन, सरयू नदी आइकॉनिक ब्रिज, प्रतिष्ठित संरचना का विकास पर्यटन सर्किट का विकास, ब्रांडिंग अयोध्या, चैरासी कोसी परिक्रमा के भीतर दो सौ आठ विरासत परिसरों का जीर्णोद्धार, सरयू उत्तर किनारे का विकास आदि शामिल हैं। इसके साथ ही अयोध्या को आधुनिक स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित किया जा रहा है। सरकार ने सैकड़ों पर्यटकों के सुझाव के बाद एक विजन डॉक्यूमेंट भी तैयार किया है। अयोध्या के विकास की परिकल्पना एक आध्यात्मिक केंद्र, वैश्विक पर्यटन हब और एक स्थायी स्मार्ट सिटी के रूप में की जा रही है। कनेक्टिविटी में सुधार के प्रयास जारी है। इनमें एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन के विस्तार, बस स्टेशन, सड़कों और राजमार्गों व ढांचा परियोजनाओं का निर्माण शामिल है। ग्रीनफील्ड टाउनशिप भी प्रस्तावित है। इसमें तीर्थयात्रियों के ठहरने की सुविधा, आश्रमों के लिए जगह, मठ, होटल, विभिन्न राज्यों के भवन आदि शामिल हैं।
अयोध्या में पर्यटक सुविधा केंद्र व विश्व स्तरीय संग्रहालय भी बनाया जाएगा। सरयू के घाटों के आसपास बुनियादी ढांचा सुविधाओं का विकास होगा। सरयू नदी पर क्रूज संचालन भी शुरू होगा। ग्रीनफील्ड सिटी योजना, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, सरयू तट पट विकास, पैंसठ किमी लंबी रिंग रोड, पर्यटन केंद्र, पंचकोसी परिक्रमा मार्ग विकास आदि से अयोध्या की तस्वीर बदल जाएगी।इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ वर्ष पहले तक अयोध्या उपेक्षित थी। यह विश्वस्तरीय पर्यटन व तीर्थाटन केंद्र रहा है लेकिन यहां स्थानीय स्तर की भी सुविधाएं नहीं थीं। फिर भी आस्था के कारण करोड़ों लोग यहां परेशानी उठाकर भी आते थे। योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के विकास पर ध्यान दिया। इसको स्मार्ट व विश्व स्तरीय नगर बनाने का कार्य प्रगति पर है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अयोध्या आने वाले समय में वैश्विक मानचित्र में एक नया स्थान बनाने जा रहा है। अयोध्या विश्वस्तरीय पर्यटन केन्द्र के साथ साथ शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का भी एक बड़ा केन्द्र बनाया जाएगा। अयोध्या में इन सुविधाओं के विकास के लिए यहां के जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर केन्द्र व प्रदेश सरकार कार्यक्रमों को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
योगी आदित्यनाथ ने भव्य दीपोत्सव व रामलीला का उल्लेख किया। इसमें अनेक देशों से आए कलाकारों द्वारा रामलीला का मंचन होता है। इन कलाकारों में थाईलैण्ड, लाओस, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया के कलाकार सम्मिलित रहते है। इण्डोनेशिया के कलाकारों ने बताया था कि उनका भगवान श्रीराम के साथ आत्मीय सम्बन्ध है। उन लोगों के लिए अयोध्या जाना एक गौरव की बात थी। इण्डोनेशिया के कलाकारों ने यह भी कहा था कि अयोध्या में रामलीला का मंचन करना मंचन मात्र नाट्य मंचन नहीं है बल्कि भगवान श्रीराम हमारे आस्था के प्रतीक व पूर्वज हैं। श्रीराम के प्रति हमारे मन में श्रद्धा व आस्था का भाव है। थाईलैण्ड के राजा स्वयं को भगवान श्रीराम का वंशज मानते हैं। लाओस की परम्परा भी अपने आपको भारत से जोड़ती है। कम्बोडिया की पूरी परम्परा भारतीयता से प्रभावित है। इस वर्ष दीपोत्सव में श्रीलंका की रामलीला टीम भी आयी थी।
श्रीलंका के राजदूत अशोक वाटिका की शिला को श्रीराम मन्दिर के निर्माण में दान करने के लिए लाए थे। पूरी दुनिया अयोध्या के साथ आत्मीय संवाद बना रही है। रामायण के साथ ही, महाभारत एवं अन्य भारतीय पारम्परिक ग्रन्थों का सम्मान करना चाहिए। महाभारत में वह सब जो भारत में पहले से मौजूद विभिन्न ग्रन्थों, वेद,पुराण उपनिषद इत्यादि में हैं। दुनिया के दो सौ देश योग की परम्परा से जुड़े हैं। योग भारत की ऋषि परम्परा का एक प्रसाद है। मानवता के कल्याण के लिए यह भारत की देन है। इसी प्रकार कुम्भ भारतीय सनातन परम्परा एवं आस्था का केन्द्र है। प्रयागराज कुम्भ-2019 में स्वच्छता, सुरक्षा एवं सुव्यवस्था का एक मानक प्रस्तुत किया है। यूनेस्को ने कुम्भ को विश्व की अमूर्त धरोहर के रूप में मान्यता दी है। भारत के नेतृत्व ने मजबूती के साथ इसे विश्व पटल पर रखा है। भारत की बात को मानने के लिए विश्व संस्थाएं तैयार हुई हैं।