राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि देव भाषा संस्कृत भारत की आत्मा है। देश के धार्मिक,आध्यात्मिक, सांस्कृतिक,दार्शनिक, सामाजिक,ऐतिहासिक और राजनीतिक जीवन एवं विकास की कुंजी संस्कृत भाषा में ही समाहित है। संस्कृत देश की सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत हमारी संस्कृति का मेरुदण्ड है, जिसने सहस्त्रों वर्षों से हमारी अनूठी भारतीय संस्कृति को न केवल सुरक्षित रखा है,बल्कि उसका संवर्धन तथा पोषण भी किया है। संस्कृत अपने विशाल साहित्य,लोक हित की भावना तथा उपसर्गों के द्वारा नये नये शब्दों के निर्माण की क्षमता के कारण आज भी अजर अमर है। देश की हजारों सालों की वैचारिक प्रज्ञा को समझने के लिए संस्कृत ही एक माध्यम है।
नई शिक्षा नीति में संस्कृत
संस्कृत भाषा को नई शिक्षा नीति में विशेष स्थान प्राप्त हुआ है। इसके माध्यम से संस्कृत की प्रासंगिकता को नई दिशा मिलेगी। संस्कृत भाषा को जनभाषा बनाने के लिए सभी की सहभागिता आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सबको संस्कृत पढ़ने और बोलने के प्रयास करने चाहिए। संस्कृत ज्ञान मीमांसा का प्रसार विश्व बन्धुत्व की स्थापना के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ज्ञान विज्ञान का मूल आधार संस्कृत भाषा में ही मिलता है। आनंदीबेन पटेल ने राजभवन के गांधी सभागार में संस्कृत भारती न्यास अवध प्रांत द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘अवध सम्पदा’ के वाल्मीकि विशेषांक का विमोचन किया।
महर्षि बाल्मीकि की महानता
आनन्दी बेन ने कहा कि हजारों साल पहले महर्षि वाल्मीकि जी ने महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना नहीं की होती तो आज हम सभी भगवान श्रीराम के आदर्शों एवं उनकी शिक्षाओं से वंचित रह जाते। भगवान श्री राम के जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं हैं, जहां वह हमें प्रेरणा नहीं देते हैं। हमारी हर भावना में प्रभु राम झलकते हैं। महर्षि वाल्मीकि जी के जीवन का समता,त्याग और करुणा का सन्देश सभी के लिये प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने कहा कि महापुरुषों के जीवन से हमें मानवता के कल्याण के लिए कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।