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साहित्यिक अभिव्यक्ति का सशक्त स्वर है सविता वर्मा ‘ग़ज़ल’

  • Published by- @MrAnshulGaurav Written by- Dr. Shri Gopal Narsan 
  • Monday, 07 Febraury, 2022
   डॉ. श्रीगोपाल नारसन

उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर की लोकप्रिय साहित्यकार सविता वर्मा ‘गज़ल’ साहित्य के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है। उनके प्रथम कहानी संग्रह ‘एक थी ‘महुआ’ को पढ़कर ये एहसास होता भी है। साहित्यिक संस्था ‘शब्द संसार’ की अध्यक्ष सविता वर्मा ‘गज़ल’ का जन्म जनपद मुजफ्फरनगर के छपार में और विवाह जानसठ कस्बे में हुआ था। लेकिन, वे लंबे समय से मुजफ्फरनगर में बसी हैं। कवयित्री आशा शैली, कहानी लेखन महाविद्यालय, अम्बाला के निदेशक महाराज कृष्ण जैन और कहानीकार उर्मि कृष्ण को अपने प्रेरणा स्तोत्र मानती हैं।

सविता वर्मा की एक पुस्तक सन 2012 में कविता संग्रह के रूप में ‘पीड़ा अन्तर्मन की’ आ चुकी है। सविता वर्मा ‘गज़ल’ की रचनाएँ प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित और आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारित होती रहती हैं। हम कह सकते है कि मुजफ्फरनगर जनपद के साहित्यकारों में विष्णु प्रभाकर के बाद सविता वर्मा की रचनाओं का ही आकाशवाणी से सर्वाधिक प्रसारण हुआ है। वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान, महाशक्ति सिद्धपीठ शुक्रताल सम्मान, सामाजिक आक्रोश लघुकथा पुरस्कार, शारदा साहित्य संस्था के हिन्दी साहित्य सम्मान, भारती ज्योति और भारती भूषण आदि अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकार सविता वर्मा गज़ल कविता, कहानी, गज़ल, नाटक, लघुकथा, बाल साहित्य आदि विधाओं में निरंतर लिख रही हैं।

लालकुआँ की प्रकाशक और वरिष्ठ साहित्यकार आशा शैली मानती है कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ जिस प्रकार ग्रामीण परिवेश की सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं के इर्द-गिर्द घूमते हुए उनका समाधान तलाश करती हैं,उसी प्रकार सविता वर्मा गज़ल की कहानियाँ भी छोटे कस्बों के निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों का प्रतिबिंब हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि सविता वर्मा गज़ल की कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ की परम्परा को ही आगे बढ़ाने का कार्य कर रही हैं। कहानी की दिशा और दशा में राष्ट्र निर्माण और समाज के उत्थान के सन्देश भी छिपे है।

चूंकि जीवन में घटने वाले प्रत्येक कार्य कलाप में एक कहानी की सम्भावना होती है। एक कुशल और पारखी रचनाकार उसकी पहचान करके अपने शब्दों में ढालकर उसे एक सुन्दर कहानी का रूप दे देता है। जिसमें सविता वर्मा ‘गज़ल’ सिद्धहस्त हैं। सविता की नाटकीयता से भरपूर कहानियों में अपने आस-पास के पात्र एकदम सजीव हो उठते हैं। इसलिए इन कहानियों से समाज के पुनर्जागरण और पुनर्निर्माण का उज्जवल भविष्य भी दिखाई देता है। कहानी आज प्रयोगों के दौर से गुज़र रही है। लिखने और पढ़ने वाले दोनों के ही पास समयाभाव होने के कारण उपन्यास बहुत कम लिखे जा रहे हैं और कहानियाँ सिकुड़ कर लघुकथा हो गई हैं। लघुकथाओं में कविताओं का फ्यूजन हो रहा है और पौराणिक कथाओं में से चमत्कारिक तत्वों को हटाकर प्रागैतिहास की कहानियों के पुनर्लेखन का प्रयास हो रहा है।

वर्तमान समय में प्रयोग के नाम पर कहानियों में न केवल फूहडता और अति कल्पना हावी हो रही है, बल्कि शीघ्र लोकप्रिय होने की जल्दबाजी में लेखक धैर्य भी खोते जा रहे हैं। लेकिन, सविता वर्मा की कहानियों से यह आशा बलवती होती है कि परम्परागत कहानी लेखन कभी भी मर नहीं सकता है। क्योंकि उन्होंने अपने साहित्य में इसे सतत जिया है।साहित्यिक, सांस्कृतिक और समसामयिक से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों में सविता वर्मा ‘गज़ल’ का नाम अक्सर चर्चाओं में रहता है ।चाहे ऑनलाइन रिकॉर्ड समय की काव्य गोष्ठी हो या फिर कोई कहानी चर्चा। प्रायः साहित्य की हर विधा में पारंगत सविता वर्मा ‘ग़ज़ल’ साहित्य के हर प्लेटफॉर्म पर सबसे आगे नज़र आती है।परमात्मा ने उन्हें अच्छा गला दिया है तो मां सरस्वती ने गीत,गज़ल, दोहों, कथा,कहानियों को जन्म देने का अदभुत आशीर्वाद भी बख़्शा है।

मानव जीवन के संघर्ष पूर्ण धरातल से जन्म लेती इन कहानियों में जहाँ शब्द धाराप्रवाह है, वहीं अदोपान्त पठनीयता की शक्ति भी दृष्टिगत होती है। तभी तो उनकी कहानियाँ पाठक को अन्त तक पढने के लिए प्रोत्साहित करती है और इन कहानियों को पढ़कर पाठक के मन मस्तिष्क में साहित्यिक भूख समाप्त होने के बजाए ओर जग जाती है। सविता वर्मा ‘गज़ल’ ने इन कहानियों में एक-एक करके जितनी खूबसूरती से जीवन की समस्याओं और आए दिन के संघर्ष को रेखांकित किया है, उतनी ही खूबसूरती और सदविवेक से पाठकों को उसका स्थायी समाधान भी बताया है। उनकी कहानियों के सार का विश्लेषण करें, तो उनकी सोच है कि थोड़े से सदविवेक और समझदारी से काम लिया जाये तो जीवन जीना इतना भी मुश्किल भरा भी नहीं है।

वास्तव में प्रेम, सदभाव और निष्छलता ही मनुष्य को अच्छा इन्सान बनाती है। उनकी कहानियों में कहीं कोई भटकाव नज़र नहीं आता। उनकी कहानियाँ हमें स्वयं ही अपने गंतव्य तक ले जाती हैं। सविता वर्मा ‘गजल’ की यही विशेषता उन्हें सफलता के सोपान की ओर ले जाने में सफ़ल हुई है। उन्होंने बहुत ही सहज, सरल और साधारण शब्दों में अपनी रचनाओं को असाधारण बनाया है। जो उनके शब्द विन्यास की श्रेष्ठता को सिद्ध करता है। उनकी कहानियों में दोहरे मापदंड, कुरीतियां और गलत परम्पराओं पर गहरी चोट पड़ती नज़र आती है। तभी तो उनकी कहानियाँ और भी सशक्त बन गई हैं और समाज को सकारात्मक सोच प्रदान करने में सक्षम है। उन्हें महिलाओं की ही नहीं समूचे समाज की प्रेरक कहा जा सकता है।

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