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प्रदेश के खेवनहार की पुरज़ोर तलाश

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

राजनीतिक दलों में किसी विषय पर समानता दुर्लभ होती है। लेकिन, उत्तर प्रदेश में एक बिंदु पर इस समय सभी पार्टियों में दिलचस्प समानता दिखाई दे रही है। सभी अपने अपने प्रदेश अध्यक्ष की तलाश में है। विधानसभा चुनाव में अब तक के सर्वाधिक शर्मनाक प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए लल्लू सिंह प्रदेश कांग्रेस पद से त्यागपत्र दे चुके है। बसपा तो कांग्रेस से भी पीछे रह गई है।

जाहिर है, उसके प्रदेश अध्यक्ष पर भी ठीकरा फूटना है। सपा और आरएलडी अपने मंसूबों से बहुत पीछे रह गई। सारे अरमानों पर पानी फिर गया। इसकी जबाबदेही भी प्रदेश अध्यक्ष के हिस्से में आएगी। परिवार आधारित दल भले ही क्षेत्रीय स्तर तक सीमित हों, लेकिन इनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पराजय के लिए कभी जिम्मेदार नहीं होते। सो बचे प्रदेश। यही बदल दिए जाएंगे। ऐसे दिखाया जाएगा जैसे पराजय की समीक्षा पूरी हुई।

भाजपा में भी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए मंथन चल रहा है। इनकी समस्या दूसरी है। उसे पूर्ण बहुमत मिला। फिर भी प्रदेश अध्यक्ष बदलना है। क्योंकि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष स्वतन्त्र देव सिंह सरकार की शोभा बढ़ा रहे है। एक व्यक्ति एक पद फार्मूला स्वतः लागू हो गया। उन्हें संगठन का पद छोड़ना होगा। नए अध्यक्ष के दावेदार सक्रिय बताए जा रहे है।

इस समानता के बाद भी भाजपा व अन्य पार्टियों के बीच एक असमानता भी है। प्रदेश में केवल भाजपा ही विचार व कैडर आधारित पार्टी है। इसमें प्रदेश अध्यक्ष चयन की भी एक प्रक्रिया है। उस प्रक्रिया के कई चरण होते है। जबकि, अन्य पार्टियों में सुप्रीमो जिस पर हाथ रख दें, वह प्रदेश अध्यक्ष बन जाता है।

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