भगवान श्रीकृष्ण को गौपालक कहा जाता है।गाय, गौवंश, माखन, दूध, दही और गौघृत भगवान कृष्ण को अति प्रिय थे। उस समय बृज के सबसे बड़े राजा वृषभान थे। इनके पास 11 लाख गाय थीं। जबकि, नंद जी के पास नौ लाख गाय थीं। भगवान श्रीकृष्ण और अन्य ग्वाल-बाल इन्ही गौवंशों के बीच विचरण किया करते थे। गौवंश मानव वंश के लिए जितना उस समय बहुउपयोगी थे, उतना ही आज भी बहुउपयोगी हैं। गौवंश संरक्षण से मानवजाति का सर्वकल्याण किया जा सकता है। आइये समझते हैं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और गौसंरक्षण के महत्व को…! सनातन धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व का बेहद महत्व है। जन्माष्टमी का त्योहार हिंदू धर्म में धूमधाम से मनाया जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार हर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ती है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव होता है। वहीं इस दिन भक्त भगवान की पूजा-अर्चना कर उनके नाम का उपवास रखते हैं, रात्रि के समय भगवान को स्नान आदि कराकर 56 भोग का प्रसाद लगाया जाता है। वहीं इस दिन श्री कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल के रूप में उनकी मूर्ति का पूजन करना शुभ होता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस बार जन्माष्टमी पर बहुत ही शुभ योग बन रहे हैं। जैसे योग भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय बने थे वैसे ही योग इस बार भी बन रहे हैं। बता दें कि इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त सोमवार के दिन मनाया जाएगा। आइए जानते हैं पूजा का शुभ मुहूर्त, शुभ योग और सब कुछ…।
जन्माष्टमी के व्रत के दिन इन बातों का रखना चाहिए ध्यान
शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले व्रतियों को पूरे दिन ब्रह्मचर्य रखना चाहिए। साथ ही जन्माष्टमी के व्रत में भूलकर भी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। जन्माष्टमी का व्रत रात को 12 बजे भगवान का जन्म करवाने के बाद खोलना चाहिए। वैदिक पंंचांग के मुताबिक इस बार 26 अगस्त 2024 को हर्षण योग और जयंत योग भी बन रहा है। मान्यता है कि इन योगों में श्रीकृष्ण की आराधना करने से मन मांगी मुराद पूरी होती है…।
जन्माष्टमी पर करें इन मंत्रों और स्तुतियों का जाप
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: – हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे – ऊँ कृष्णाय नम: – कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम: – ऊँ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय नम:
दुर्लभ योग में जन्माष्टमी
वैदिक पंचांग के अनुसार साल 2024 में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त दिन सोमवार को जयंती योग में मनाया जाएगा। जयंती योग में जन्माष्टमी का व्रत करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं…।
बांके बिहारी मंंदिर में 27 अगस्त को मनाई जाएगी जन्माष्टमी
बांके बिहारी मंदिर में रोजाना मंगला आरती नहीं की जाती है। सिर्फ साल में एक ही बार यानी जन्माष्टमी के पर्व पर मंगला आरती होती है। वृंदावन स्थित बांकेबिहारी मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 27 अगस्त को मनाई जाएगी। दरअसल, वृंदावन में मथुरा से ठीक एक दिन बाद ही जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का विधान है…।
30 साल बाद अद्भुत संयोग
इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष संयोग भी बना रहा है। जन्माष्टमी पर 30 साल बाद शनि ग्रह स्वराशि कुंभ में रहेंगे। इसके साथ ही, जन्माष्टमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, लग्न वृषभ राशि और बुधवार का दिन था। वहीं भगवान का जन्म मध्य रात्रि को हुआ था।
संपूर्ण मानव वंश के लिए बहुउपयोगी है गौवंश या गाय
आइये समझते हैं कि गौवंश या गाय किस तरह संपूर्ण मानव वंश के लिए बहुउपयोगी या महत्वपूर्ण है। गाय को भारत के सनातनी पूज्यनीय मानते हैं, आखिर क्यों? और भी पशु हैं जिनकी पूजा नहीं होती, लेकिन गाय ही क्यों? आइए जानते हैं इसका वैज्ञानिक, पौराणिक और आर्थिक महत्व। वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं। गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोक कर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं।
यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। ऐसा माना जाता है कि गाय की रीढ़ में स्थित सूर्यकेतु नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होती है। सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र का सेवन करने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। मतलब यह कि गाय के दूध, मूत्र और गोबर में प्राकृतिक रूप से सोना होता है।वैज्ञानिक कहते हैं कि *गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है* जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे, ठीक इसका विपरीत करते हैं।
रूस में गाय के घी से हवन पर वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं। एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर एक टन ऑक्सीजन बनती है। देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम 300 करोड़ जीवाणु होते हैं। यह जीवाणु खेतों के बहुत से हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट कर खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं। भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन मानी गयी है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। हरित क्रांति से पहले खेतों को गाय के गोबर में गौमूत्र, नीम, धतूरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा फसलों को किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जाता था।
पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है। पंचगव्य कई रोगों में लाभदायक है। पंचगव्य द्वारा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पंचगव्य से गुजरात के बलसाड़ नामक स्थान के निकट कैंसर अस्पताल में 3 हजार से अधिक कैंसर रोगियों का इलाज हो चुका है। पंचगव्य के कैंसरनाशक प्रभावों पर भारत ने यूएस से पेटेंट प्राप्त किए हैं। 6 पेटेंट अभी तक गौमूत्र के अनेक प्रभावों पर प्राप्त किए जा चुके हैं। गाय एकमात्र ऐसा जीव है जिसका *सब कुछ सभी की सेवा* में काम आता है। गाय का दूध, मूत्र, गोबर के अलावा दूध से निकला घी, दही, छाछ, मक्खन आदि सभी बहुत ही उपयोगी है।
महापुरुषों ने किया गौवंश का महिमा मंडन
गौवंश की उपयोगिता के बारे में अनेक महापुरुषों ने बहुत ही सार्थक बातें कही हैं।स्वामी दयानंद सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवन काल में 4 लाख 10 हजार 440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है, जबकि उसके मांस से मात्र 80 मांसाहारी लोग अपना पेट भर सकते हैं। गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन भी चल पड़ा है। गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जाता है। एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है। जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है। गाय के सींग, गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेष्ठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
गौमूत्र और गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। कृषि में रासायनिक खाद और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज के फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है।
जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। प्रकृति के 99 प्रतिशत कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र, 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल में मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है।
प्रार्थना ही आंदोलन
बताते चलें कि गाय को राष्ट्रीय पशु या राष्ट्र माता घोषित करने की मांग पुरानी है। उत्तर प्रदेश की सामाजिक संस्था *“लोक परमार्थ सेवा समिति”* एक लम्बे अरसे से उत्तर प्रदेश में गाय को राज्यमाता घोषित करने का अभियान चला रही है। संस्था के *गौसेवक लालू भाई* का कहना है कि उत्तर प्रदेश में *गाय को राज्य माता का दर्जा* दिये जाने की मांग बहुत पुरानी है। इसके लिए राज्य सरकार को अनुरोध पत्र दिए जाने के अलावा समय-समय पर “गौ-पूजन, गौ-भंडारा, बीमार और घायल गौ-वंशों का अपने स्तर पर उपचार करने के प्रयास आदि कार्य किये जाते हैं। समिति का विश्वास है कि *गौवंश के लिए गऊ माता से की गई प्रार्थना ही एकमात्र विकल्प है* इस लिए गाय को राज्यमाता का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर किसी तरह का धरना, प्रदर्शन, अनशन या आमरण अनशन नहीं किया जाता। प्रार्थना ही अंतिम चरण का आंदोलन है। लालू भाई का कहना है कि सम्पूर्ण मानव वंश की रक्षा के लिए गौवंश का बचाया जाना बहुत जरूरी है, इसके लिए राष्ट्रीय नीति बनाई जानी चाहिए। यदि उत्तर प्रदेश में गाय को राज्यमाता का दर्जा हासिल हो जाता है तो इससे गौवंश को बचाए जाने की संभावना बढ़ जाएगी।
मीडिया रिपोर्ट्स पर यदि गौर करें तो बीते दिनों राज्यसभा में भाजपा के एक सदस्य ने गौ-हत्या पर रोक लगाने के लिए केंद्रीय कानून बनाए जाने की मांग की थी। बीजेपी नेता किरोड़ी लाल मीणा ने गौहत्या पर रोक के लिए केंद्रीय कानून बनाने के साथ ही गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि सनातन और हिंदू धर्म में गाय की पूजा की जाती है। भाजपा सांसद ने शून्यकाल के दौरान कहा था, ‘गाय भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और उसे माता का दर्जा प्राप्त है। ऐसे में गौ-हत्या होने से सामाजिक समसरता प्रभावित होने लगती है।’ वहीं, भाजपा के महेश पोद्दार ने बायो-एथनॉल के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए शीघ्र ही नीति बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम की खरीद पर एक ओर विदेशी मुद्रा खर्च होती है, वहीं इसके उपयोग से प्रदूषण भी बढ़ता है। ऐसे में अगर बायो-एथनॉल के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए तो किसानों को भी फायदा मिलेगा।
पौराणिक कथाओं में गौवंश को बताया गया सर्वहितकारी और सुख-सौभाग्य का प्रतीक
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक कामधेनु गाय थी। पूर्व-दक्षिण-पूर्व जोन में जमीन पर गाय का प्रतीक लगाने से यह दुःख, मन की परेशानी एवं चिंता को दूर कर सकारात्मक परिणाम देती है। वास्तुशास्त्र फेंगशुई के अनुसार परिवार में सुख-सौभाग्य को बढ़ाने के लिए गाय रखना चाहिए। अपने बछड़े को दूध पिला रही गाय के प्रतीक रूप को घर में स्थापित करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है, माता-पिता और संतान में परस्पर प्रेम बना रहता है। पढ़ाई में एकाग्रता के लिए छात्रों के स्टडी टेबल पर गाय का प्रतीक रखना अच्छे परिणाम देगा, ऐसा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी बना रहेगा।
प्राचीन काल से ही भारत में “गोधन” को मुख्य धन मानते आए हैं और हर प्रकार से गौरक्षा, गौसेवा एवं गौपालन पर ज़ोर दिया जाता रहा है। हमारे हिन्दू शास्त्रों, वेदों में गौरक्षा, गौ महिमा, गौ पालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक मिलते हैं। रामायण, महाभारत, भगवद् गीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में उल्लेख मिलता है। गाय, भगवान श्री कृष्ण को अतिप्रिय है। गौ पृथ्वी का प्रतीक है। गौमाता में सभी देवी-देवता विद्यमान रहते हैं। सभी वेद भी गौमाता में प्रतिष्ठित हैं।
वेदों के साथ-साथ देवों और महापुरुषों ने भी किया है गौमाता का बखान
सनातन धर्म में गाय पूजनीय है और इसमें तैंतीस कोटि देवी देवताओं का वास माना जाता है। हिन्दू धर्मग्रन्थों और वेदों में तो गाय को स्थान दिया ही गया है, देवों और महापुरुषों ने भी गाय का उत्तम बखान किया है। आइए जानते हैं किसने क्या कहा है गाय के बारे में…
स्कंद पुराण के अनुसार ‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय हैं।’
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भगवद्भीता में कहा है- ‘धेनुनामस्मि कामधेनु’ अर्थात मैं गायों में कामधेनु हूं।
ईसाई धर्म के प्रवर्तक प्रभु ईसामसीह ने कहा था- एक गाय को मारना एक मनुष्य को मारने के समान है।
श्रीराम ने वन गमन से पूर्व किसी त्रिजट नामक ब्राह्मण को गाय दान की थी।
गुरु गोविंद सिंह ने कहा, ‘यही देहु आज्ञा तुरुक को खापाऊं, गौ माता का दुःख सदा मैं मिटाऊं।’
बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि ‘चाहे मुझे मार डालो, पर गाय पर हाथ न उठाओ।’
प्रसिद्ध मुस्लिम संत रसखान की इच्छा थी कि यदि पशु के रूप में मेरा जन्म हो तो मैं बाबा नंद की गायों के बीच में जन्म लूं।
जो पशु हौं तो कहाँ वश मेरो, चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन
पं. मदनमोहन मालवीय की अंतिम इच्छा थी कि भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने।
पंडित मदनमोहन मालवीय का कथन था कि यदि हम गायों की रक्षा करेंगे तो गाएं हमारी रक्षा करेंगी।
महर्षि अरविंद ने कहा था कि गौ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है। इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव (पतन) का कारण है।
महात्मा नामदेव ने दिल्ली के बादशाह के आह्नवान पर मृत गाय को जीवनदान दिया।
भगवान बुद्ध को गाय के पास उस क्षेत्र के सरदार की बेटी सुजाता द्वारा गायों के दूध की खीर खानें पर तुरन्त ज्ञान और मुक्ति का मार्ग मिला। बुद्ध गायों को मनुष्य की परम मित्र कहते हैं।
जैन आगमों में कामधेनु को स्वर्ग की गाय कहा गया है और प्राणिमात्र को अवध्या माना है। भगवान महावीर के अनुसार गौ रक्षा बिना मानव रक्षा संभव नहीं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है जबकि उसके मांस से 80 मांसाहारी लोग अपना पेट भर सकते हैं।
गांधीजी ने कहा है कि गौवंश की रक्षा ईश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है, भारत की सुख-समृद्धि गाय के साथ जुड़ी हुई है। गाय प्रसन्नता और उन्नति की जननी है, गाय कई प्रकार से अपनी जननी से भी श्रेष्ठ है। इस प्रकार से देवों, वेदों, महापुरुषों एवं आम जनों में गाय का महत्व अत्यधिक है।
कहते हैं कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है। संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता है। गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज़ में प्रजापति और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं। मान्यता है कि गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है। यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक निरा पशु न मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है और मानव समाज के अभिन्न अंग की संज्ञा दी गई है।