प्रसून जोशी के लिखे गीतों में कुछ ऐसी ही बात होती है कि सोता हुआ शख्स जाग जाए, रूखा सूखा शख्स इश्क करना सीख जाए, खामोश बैठने वाला व्यक्ति आवाज उठाने लगे। उनके गीत आपको अंदर तक झकझोर सकते हैं, आपके अंदर रुमानियत जगा सकते हैं, उनकी कविताएं आपको एकदम नया और तरोताजा कर सकती है।
ऐ साला..अभी-अभी हुआ यकीं कि आग है मुझमें कहीं
हुई सुबह मैं जल गया…सूरज को मैं निगल गया
रूबरू रोशनी है.
उनके विज्ञापन आपको मंत्रमुग्ध कर सकते हैं और उनकी लिखी फिल्में और डायलॉग सैल्युलाइड से आपकी नजरें हटने नहीं देतीं। प्रसून जोशी का आज जन्मदिन है और इस जन्मदिन से ऐन पहले उन्हें एक नई और बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रसून आज सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं और उनके कंधे पर जिम्मेदारी है कि वो सेंसर बोर्ड के काम करने के तरीकों में वैसा ही बदलाव लाए जैसे बदलाव की हिमायत उनके गीत और कविताएं करते हैं। विज्ञापन की दुनिया में ”ठंडा मतलब कोका-कोला” जैसी कालजयी पंचलाइन देने वाले प्रसून जोशी का सफर किसी कविता से कम नहीं है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में पैदा हुए प्रसून जोशी, मेरठ, रामपुर, देहरादून और दिल्ली जैसे शहरों से होते हुए आज मुंबई में ना सिर्फ सबसे बड़े विज्ञापन निर्माताओं की फेहरिस्त में शामिल हैें बल्कि वो एक शानदार गीतकार, स्क्रीनप्ले राइटर, डायलॉग राइटर और बेहतरीन कवि भी हैं। ओएंडएम जैसी कंपनी के साथ विज्ञापन की दुनिया में कदम रखने वाले प्रसून अपने गीतों के लिए दो बार राष्टीय फिल्म पुरस्कार भी जीत चुके हैं। वर्ष 2015 में प्रसून को पद्म श्री से नवाजा गया था।
प्रसून उस बदलते भारत के लेखक हैं जो उम्मीद और नाउम्मीदी की एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसे उनके गीत और कविताएं नई राह दिखा सकते हैं। हालांकि सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से उन पर ये आरोप भी लगे हैं कि वो पार्टी विशेष की विचारधारा का समर्थन करते हैं, लेकिन प्रसून इन आरोपों से बेपरवाह अपना काम करने में लगे हैं। प्रसून जोशी के गीत आज के भारत के गीत और उनके गीतों और कविताओं में गुस्सा, उम्मीद, उत्साह और बनते बिगड़ते सपनों समेत सबकुछ है।