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अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाली पहली क्रांतिकारी महिला के साहस की कहानी

भारत भले ही आज एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है लेकिन वैश्विक स्तर पर भारत ने जो पहचान बनाई है, उसकी नींव उन क्रांतिकारी और आंदोलनकर्ता भारतीयों ने रखी, जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी करना और देश को ब्रिटिश हुकूमत के नीचे रखना कबूल नहीं किया।

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अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाली पहली क्रांतिकारी महिला के साहस की कहानी

अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए कई आंदोलन हुए लेकिन स्वतंत्रता संग्राम की आग 1857 में भड़की थी। उस दौर में ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीयों का उत्पीड़न करती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ अलग अलग जगहों पर कई क्रांतियां एक साथ हुईं। एक तरह मंगल पांडे थे, जो एक सिपाही थे लेकिन ब्रिटिशों से लड़ गए तो दूसरी ओर बेगम हजरत महल और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई थीं।

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ये ईस्ट इंडिया कंपनी के अंत और ब्रिटिश क्राउन के पास सत्ता आने की शुरुआत थी। आइए जानते हैं 1857 में हुई पहले विद्रोह की महिला नायक के बारे में, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई।

पहली भारतीय महिला जो अंग्रेजों से भिड़ी

जब भी कभी किसी भारतीय साहसी महिला का नाम लिया जाता है, तो सबसे पहले झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का जिक्र होता है। भारत की आजादी के लिए लड़ने वाली महान और पहली महिलाओं में से एक रानी लक्ष्मी बाई थीं, जिनका जन्म वाराणसी में 1828 को हुआ था। उनका नाम मणिकर्णिका तांबे और उपनाम मनु था।

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उनका विवाह राजा गंगाधर राव से हुआ, जो कि झांसी के राजा थे। दोनों एक दामोदर नाम के एक बालक को गोद लिया लेकिन जब गंगाधर राव का निधन हुआ तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दत्तक पुत्र को राजा बनाने की अनुमति नहीं दी और झांसी को अपने अधीन कर लिया।

अंग्रेजों की हुकूमत स्वीकार न करते हुए किया विद्रोह

रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों के अधीन आना स्वीकार नहीं था। उन्होंने अपनी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया। बेटे को छाती पर बांध घोड़े पर सवार लक्ष्मीबाई अंग्रेज सैनिकों से लड़ती रहीं और अंत में वीरगति को प्राप्त हुईं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा जगह-जगह फैली और एक आग की तरह हर तरफ क्रांति की वजह बनी।

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