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केए अब्बास की ‘सात हिंदुस्तानी’ फिल्म की दास्तां

केए अब्बास यानी ख्वाजा अहमद अब्बास का नाम वेसे तो फिल्मकार और पटकथा लेखक के रूप में जाना जाता है, पर वह एक अच्छे पत्रकार और कहानीकार भी थे। उनकी लिखी या बनाई फिल्मों में ‘डा. कोटनिस की अमर कहानी, नीचा नगर, आज और कल, आवारा, श्री 420, जागते रहो, बम्बई रात की बांहों में, मेरा नाम जोकर, बाॅबी और अचानक शामिल हैं। उन्होंने हिंदी, उर्दूऔर अंग्रेजी में मिला कर कुल 73 किताबें लिखी थीं।

उनकी अंतिम किताब, 1987 में उनकी मौत हुई, उसके एक साल पहले आई थी। उसका नाम था- ‘सोने चांदी के बुत’। इसमें हिंदी फिल्मों की चमकदमक की दुनिया और वास्तविकता पर उनका निरीक्षण था। इसमें फिल्मी कलाकारों और अन्य पहलुओं पर संक्षेप में कहानियां, निबंध और लेख शामिल थे। यह किताब मूल उर्दू में थी। अब उसका अंग्रेजी रूपांतरण प्रकाशित हुआ है- सोने चांदी के बुत: राइटिंग्स आन सिनेमा। सैयदा हमीद और सुखप्रीत काहलो ने इसका भाषांतर किया है।

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आप ने ऊपर ध्यान दिया हो तो अब्बास की फिल्मों में हमने ‘सात हिंदुस्तानी’ (1969) का जिक्र नहीं किया। इसलिए कि हमारा यह पूरा लेख ही उसी पर है। के. ए. अब्बास को सात हिंदुस्तानी के लिए ही सब से अधिक याद किया जाता है, क्योंकि यह अमिताभ बच्चन की सब से पहली फिल्म थी। गोवा मुक्ति संघर्ष पर बनी इस फिल्म के बारे में सभी जानते हैं कि अमिताभ कोलकाता की एक शुगर मिल में काम करते थे। पर ऐक्टिंग का भूत सवार हुआ तो मुंबई में नसीब आजमाने की कोशिश करने लगे।

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अब्बास साहब ने तब ‘सात हिंदुस्तानी’ (Saat Hindustani) की योजना बनाई थी। फिल्म राष्ट्रीय एकता पर थी। असल में इसमें उन्होंने साथ धर्मों के प्रदेश के लोगों को लिया था। इसमें मूल एक्टर्स इस प्रकार थे- मलयालम एक्टर मधु नैयर, बंगाली उत्पल दत्त, इरशाद अली, जलाल आगा, पारसी ऐक्ट्रेस शहनाज वहाणवटी, (महमूद के भाई) अनवर अली और टीनू आनंद।

वरिष्ठ लेखक इंदर राज आनंद के बेटे टीनू आनंद को उस समय फिल्म मेकिंग में रुचि थी और सत्यजित रे ने उनकी एक फिल्म में सहायक निर्देशक का काम ऑफर किया, इसलिए उन्होंने फिल्म सात हिंदुस्तानी छोड़ दिया था। उनकी जगह खाली हुई तो अमिताभ बच्चन का नंबर लग गया। अब्बास साहब ने अमिताभ को सात हिंदुस्तानी में (और इस तरह हिंदी फिल्म जगत में) डंका कैसे बजा, इसका अपनी पुस्तक ‘सोने चांदी के बुत’ में दिलचस्प वर्णन किया है।

अमिताभ जब अपॉइंटमेंट के दिन मुंबई में अब्बास साहब से उनके आफिस में मिले, तब मुंबई में उनका यह पांचवा धक्का था। इसके पहले हिंदी फिल्मों के चार बड़े डायरेक्टर अमिताभ को रिजेक्ट कर चुके थे। (मैं उनके नाम दूंगा तो उन्हें नीचा लगेगा ऐसा अब्बास ने लिखा है)। अब्बास ने कारण पूछा तो अमिताभ ने कहा था, “उन्हें मैं बहुत लंबा, बेढ़ंगा और कार्टून जैसा लगा था। उन्हें लगता था कि कोई हीरोइन मेरे साथ काम नहीं करेगी।”

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अब्बास ने कहा कि उन लोगों को तुम कैसे लगे, मुझे इससे मतलब नहीं है, मुझे तो अनवर अली (फिल्म में अमिताभ बच्चन के पात्र का नाम महमूद के भाई अनवर अली पर ही था) के लिए जैसा एक्टर चाहिए था, वह मिल गया है। इसके बाद पूछा, “कांट्रैक्ट साइन करना होगा, पढ़ना आता है कि नहीं?”अमिताभ ने कहा कि वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं, कालेज के नाटकों में काम किया है और कल तक कोलकाता की एक कंपनी में 1400 रुपए महीने, मुफ्त कार और मुफ्त मकान वाली नौकरी थी। इसमें ‘कल तक’ शब्द पर जोर था, जिस अब्बास ने ध्यान दिया।

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इसलिए उन्होंने पूछा, “क्यों?” “आप ने बुलाया, इसलिए।” “पर मैं ने तो आप को देखने के लिए बुलाया था। तुम प्लेन से मुंबई आए। इतनी फास्ट तो कोई ट्रेन नहीं है।” “यस।” अमिताभ ने कहा, “भाई अजिताभ बच्चन ने तार किया था कि ‘सात हिंदुस्तानी’ में रोल तय हो गया है, इसलिए परसों तक पहुंचना है।” इतना बड़ा झूठ? मैं फिल्म में लेने से मना कर देता तो?” “तो दूसरी जगह प्रयास करता। सुनील दत्त साहब नई फिल्म प्लान कर रहे हैं। शायद ले लें। कोलकाता की नौकरी से मैं परेशान हो गया हूं।” अब्बास साहब ने हमेशा के लिए नौकरी छोड़ कर आए इस लड़के की उम्मीद और आत्मविश्वास को मन ही मन शाबासी दी। इसके बाद उनका नाम पूछा।

“अमिताभ।”
“अमिताभ कौन?”
“बच्चन, अमिताभ बच्चन।”
अब्बास साहब चौंके, “डा. बच्चन तुम्हारे सगे पिता हैं?”
“यस,”अमिताभ ने सकुचाते हुए कहा, “वह मेरे पिता हैं।”
“तब तो यह कांट्रैक्ट नहीं होगा। वह तो मेरे पुराने मित्र हैं। उनकी मंजूरी के बिना यह कांट्रैक्ट नहीं दूंगा।”

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अमिताभ ने कहा, “मैं ने तो उन्हें पत्र लिखा है। आप तार कीजिए, कल जवाब आ जाएगा।” अब्बास ने कहा, “तुम आज जाओ। मैं उन्हें तार करता हूं। उनकी मंजूरी आने के बाद तुम आना और कांट्रैक्ट साइन कर देना।” तीसरे दिन डा. हरिवंशराय बच्चन का के. ए. अब्बास के पास तार आया, “वह आप के साथ काम कर रहा है तो मूझे खुशी होगी।” अब्बास की शंका दूर हुई और उन्होंने पांच हजार रुपए के वेतन पर कांट्रैक्ट साइन कराया। इस तरह अमिताभ बच्चन के फिल्मी कैरियर की शुरुआत हुई थी। कोई फिल्म निर्माता चाहे तो इस पूरी कहानी के आसपास अच्छी फिल्म बना सकता है।

           वीरेंद्र बहादुर सिंह

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