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रक्षा बंधन: खुशियों वाला पर्व निराला

रक्षा बंधन: खुशियों वाला पर्व निराला

रक्षा बंधन का पर्व निराला मस्ती मौज और खुशियों वाला
भाई बहन के अमिट प्रेम को होता ये दर्शाने वाला

कर्मवती ने भेजकर राखी हुमायूं को मजबूर किया
भूल अंतर फिर जात पात का राजा ने दूर गुरूर किया

द्रुपद कन्या ने बांधकर धागा कान्हा को भाव विभोर किया
चीरहरण के समय गिरधर ने सहयोग बिना फिर शोर किया

भाई बहन का रक्षा व्रत लेता बहनें राखी से कलाई सजाती
सगा सहोदर न होना ज़रूरी,बात पुरु सिकंदर की कथा बताती

रेशम की डोरी से पल भर में रिश्ता कितना अटूट बन जाता
अस्मत को बचाने बहनों की अपनी भाई पल भर में प्राण गंवाता

सदियों से पुराना यह त्यौहार वामन पुराण की दिलाए है याद
सुख समृद्धि की करे बहन कामना भाई को राखी बांधने के बाद

प्रकृति संरक्षण का पाने वादा शजर को राखी बांधते अब
सांसों की तार को जोड़ते रहते वन उपवन मिलकर फिर सब

श्रावण मास की पूर्णिमा पर आकर दिलों को सबके पावन कर जाता
रिश्तों को मजबूती दे जो राखी का वह पर्व कहलाता

              पिंकी सिंघल

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