आमतौर पर कुपोषण का मतलब अल्पपोषण व भुखमरी से निकाला जाता है, लेकिन वास्तव में इसमें पोषण संबंधी सभी पहलू शामिल होते हैं. जैसे-मोटापा, बढ़ा हुआ वजन व अस्वास्थ्यकर भोजन की आदतों से होने वाली मधुमेह, दिल रोग व स्ट्रोक जैसी नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी).
दरअसल, इन बातों को ध्यान से देखने-समझने का यह ठीक मौका है क्योंकि 16 अक्टूबर को दुनियाभर में वर्ल्ड फूड डे मनाया जा रहा है. 1945 में इसी दिन संयुक्त देश खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की स्थापना हुई थी. इस अंतरराष्ट्रीय संगठन का लक्ष्य है संसार से भुखमरी मिटाना. इस साल की थीम है, ‘हमारे कार्य, हमारा भविष्य, जीरो हंगर के लिए हेल्दी डायट्स.’ इस तरह एफएओ ने कुपोषण जैसी बड़ी समस्या को दूर करने की ओर कदम बढ़ाया है.
एफएओ ने इस साल के आयोजन के लक्ष्यों को परिभाषित करने के लिए एक ब्रोशर जारी किया है, जिसमें बताया गया है कि वर्तमान में संसार सिर्फ अल्पपोषित नहीं, कुपोषित है. संसार के कुछ हिस्से अभी भी भुखमरी का सामना कर रहे हैं. यह वह आबादी है जिस पर खाद्यान्न की कमी का सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है. ब्रोशर में लिखा है, “वर्तमान समय में खाद्य सुरक्षा का मतलब केवल अन्न की मात्रा नहीं, बल्कि इसकी गुणवत्ता का प्रश्न भी है. अस्वस्थ आहार अब दुनियाभर में बीमारी व मौत का एक बड़ा कारण बन गया है.”
। myupchar.com से जुड़े डाक्टर आयुष पाण्डे बताते हैं कि पोषण की कमी कई अन्य तरह की अन्य बीमारियों को भी जन्म देती है, जैसे – पाचन संबंधी समस्या, स्कीन विकार, हड्डियों का विकास रुकना.
भारत में नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज़
तेजी से हुए विकास ने हिंदुस्तान को एक हद तक अल्पपोषण से निपटने में मदद की है. हालांकि, कुपोषण का दोहरा बोझ अब भी यहां है. पहला – देश में अब आबादी के एक बड़े हिस्से को खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिल रहा है, लेकिन उचित शारीरिक विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की कमी है. दूसरा – अस्वास्थ्यकर आहार, बेकार जीवनशैली व शारीरिक गतिविधियों की कमी ने मोटापे जैसी बीमारी को जन्म दिया है.
2018 की एक स्टडी के अनुसार, हिंदुस्तान में लगभग 5.74% से 8.82% स्कूली बच्चे मोटापे का शिकार हैं. आम एनसीडी बीमारियों में फैट की चर्बी सबसे खतरनाक है. नतीजन, जो बीमारियां कभी केवल वयस्कों में देखी जाती थीं, वे अब 10 साल से कम आयु के बच्चों को भी अपना शिकार बना रही हैं. व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण 2016-18 के अनुमानों से पता चलता है कि स्कूल जाने वाले करीब 1% बच्चे मधुमेह के रोगी हैं, लगभग 7% में क्रोनिक किडनी डिजीज़ का खतरा है व लगभग 3% बच्चे हाई कोलेस्ट्रॉल के साथ जी रहे हैं. बच्चों में हायपरटेंशन के मुद्दे बढ़ रहे हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि पश्चिम बंगाल व सिक्किम में उपरोक्त सभी एनसीडी का खतरा है, व यूपी में इसके सबसे ज्यादा मरीज हैं. कुल मिलाकर हिंदुस्तान में होने वाली कुल मौतों में 60 प्रतिशत भाग नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज का है.
ये कदम उठा सकते हैं हम
लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों को खानपान की आदत बदलकर सरलता से दूर किया जा सकता है. यानी स्वस्थ आहार पर ध्यान देना होगा. हालांकि अधिकतर लोग नहीं जानते हैं कि इसकी आरंभ कहां से की जाए. एफएओ ने ट्विटर एकाउंट पर ऐसे ही कुछ कार्य की लिस्ट जारी की, जानिए क्या हैं ये :