विज्ञान व तकनीक ने आधुनिक समय में अनेक सुविधाओं का विस्तार व सृजन किया है। लेकिन इसकी सार्थकता तभी तक है,जब तक इसके साथ मानव कल्याण का भाव जुड़ा हो। अन्यथा इससे समस्याएं भी पैदा हो सकती है। विकास के साथ पर्यावरण का संरक्षण व संवर्धन भी अपरिहार्य है। इसका अन्य कोई विकल्प नहीं हो सकता। ऐसे में सन्तुलित विकास की अवधारणा पर ही अमल करना होगा। भारत के तकनीकी संस्थान आज इस विषय पर भी विचार कर रहे है। आईआईटी दिल्ली के इक्यानवें दीक्षांत समारोह में भी तकनीकी व वैज्ञानिक शिक्षा पर बल दिया गया।
इसके माध्यम से देश को विकसित बनाया जा सकता है। इस वर्चुअल समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्य अतिथि के रूप में संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि भारत अपने युवाओं को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस देने के लिए प्रतिबद्ध है। इनोवेशन से करोड़ों देशवासियों के जीवन में परिवर्तन होगा। पहली बार एग्रीकल्चर सेक्टर में इनोवेशन और नए स्टार्टअप्स के लिए इतनी संभावनाएं बनी हैं। पहली बार स्पेस सेक्टर में प्राइवेट इनवेस्टमेंट के रास्ते खुले हैं। बीपीओ सेक्टर के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए भी एक बड़ा रिफॉर्म किया गया है।
देश के आईटी सेक्टर को ग्लोबली और कंपटीटिव बनाया जा रहा है। शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि दीक्षांत के पश्चात ही छात्र की असली परीक्षा प्रारंभ होती है। जब वह जीवन की वास्तविक चुनौतियों में प्रवेश करता है। आईआईटी जैसे संस्थानों के कंधों पर उच्च गुणवत्ता युक्त तकनीकी एवं वैज्ञानिक शिक्षा देने की तथा शिक्षा एवं उद्योग जगत के फासले को कम करने की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। भविष्यवादी सोच के नई शिक्षा नीति को लागू किया गया है।