रायबरेली की Journalism के इतिहास में 24 और 25 सितंबर 2018 की तारीखें कहीं न कहीं दुःखद घटनाओं के लिए याद की जाएंगी। 24 सितंबर ने एक तरफ जहाँ दिलीप सिंह छीन लिया जिससे पत्रकारिता को बड़ी उम्मीदें थी वहीँ 25 सितंबर ने एक वटवृक्ष माने जाने वाले पंडित कपिल दत्त अवस्थी को उखाड़ दिया। पत्रकारिता का एक ऐसा वटवृक्ष जिसकी छांव में पत्रकार गण आनंद और गर्व की अनुभूति करते थे।
Journalism के इनसाइक्लोपीडिया कपिल दत्त अवस्थी
रायबरेली की पत्रकारिता के इतिहास पुरुष और पत्रकारिता के इनसाइक्लोपीडिया कहे जाने वाले पंडित कपिल दत्त अवस्थी पत्रकारों के संरक्षक मार्गदर्शक माने जाते रहे हैं। कदम कदम पर सचेत करते चलना, मार्गदर्शन देते चलना कपिल दत्त अवस्थी का अपना स्वभाव था। बिल्कुल वैसा ही जैसा घर के बुजुर्ग अपने बच्चों को शिक्षा-दीक्षा और संस्कार देते चलते थे। उनके रहते मन में यह हमेशा भरोसा और डर दोनों रहता था। भरोसा यह है कि गलत रास्ते पर बढ़े नहीं की कि कपिल जी सामने आ जाएंगे और डर यह है कि गलती पर कान खिंचाई भी हो सकती है।
कपिल दत्त अवस्थी केवल पत्रकारिता ही नहीं वरन रायबरेली के इतिहास के भी इनसाइक्लोपीडिया माने जाते थे। इतिहास उनकी जुबान पर होता था। उनकी सामाजिकता की सीखें ही लोगों को पत्रकारिता से कुछ अच्छा करने की प्रेरणा सदैव देती रही।
दिलीप सिंह
दिलीप सिंह पत्रकारों की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे जो समाज के हर वर्ग उम्र, जाति, धर्म में अपने को समाहित कर लेती थी। दिलीप सिंह सिर्फ अपनो या अपने लिए नहीं बल्कि दूसरे के दुख दर्द को अपना बना लेने की काबिलियत थी। किसी प्रतिकूल परिस्थिति का सामना हंसकर करने की कला भी उनमें विलक्षण थी। दिलीप एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन की कमी इस दौर में पूरी शिद्दत से महसूस होती रहेगी। अपने निष्पक्ष कर्म और अपने सरल स्वभाव से उन्होंने समाज में एक अलग छाप छोड़ी है।