उपेंद्र कुशवाहा के पार्टी छोड़ने को जेडीयू ने मामूली घटना ही बताया है, लेकिन इस घटनाक्रम ने भाजपा को जरूर खुश होने का मौका दे दिया है। उसे लगता है कि नीतीश कुमार को कमजोर करने की यह बड़ी शुरुआत हो सकती है।
वहीं जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह इस पूरे मामले से परेशान नजर आए। पहले तो उन्होंने नीतीश कुमार के ही उस बयान से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने तेजस्वी के नेतृत्व में 2025 का चुनाव लड़ने की बात कही थी। ललन सिंह ने साफ कहा कि हमने कब कहा कि तेजस्वी यादव 2025 में सीएम हो जाएंगे। समय आने पर इस बात का फैसला होगा। पहले तो 2024 है, उसके बाद 2025 आएगा।
इसकी वजह यही थी कि अति पिछड़ा कार्ड चला और भाजपा का समर्थन भी काम आ गया। हालांकि 2019 में वह उतने सफल नहीं रहे। अंत में 2020 में तो वह जेडीयू में ही लौट आए, जहां वह पहले भी थे। उपेंद्र कुशवाहा का यह एग्जिट थोड़ा अलग है।
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इस बार बिहार की राजनीति थोड़ी बदली है। जेडीयू कमजोर पड़ रही है और आरजेडी उभर रही है। दरअसल उपेंद्र कुशवाहा को लग रहा था कि जेडीयू कमजोर है और नीतीश के अलावा कोई और बड़ा नेता नहीं दिख रहा है। ऐसे में वह दूसरे नंबर पर जगह बना सकते हैं। लेकिन ऐसा मौका नहीं मिलने पर उनका धैर्य जवाब दे गया और वह पार्टी ही छोड़ चले।
इसके अलावा जेडीयू और आरजेडी के विलय की बातों को भी उन्होंने खारिज कर दिया। उनका यह बयान नीतीश कुमार से एकदम उलट है, जिसमें उन्होंने तेजस्वी को नेतृत्व देने की बात कही थी।
इसी को लेकर कुशवाहा ने डील का जिक्र किया था। उपेंद्र कुशवाहा का पॉलिटिकल रिकॉर्ड कोई बहुत अच्छा नहीं रहा है और अपने भरोसे पर वह बहुत कामयाब भी नहीं रहे हैं। लेकिन गठबंधनों की राजनीति में वह जरूर बाजी मारते रहे हैं। जेडीयू में आने से पहले उनकी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी थी। इस पार्टी के जरिए 2014 में उन्होंने भाजपा संग गठबंधन करके 6 लोकसभा सीटें जीत ली थीं।