त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए गुरुवार को मतदान होने जा रहा है। त्रिपुरा चुनाव के नतीजे केवल एक राज्य और पूर्वोत्तर की राजनीति को ही प्रभावित नहीं करेंगे, बल्कि इसका असर देश की राजनीति पर भी पड़ेगा।
खासतौर पर विपक्ष की गठबंधन राजनीति के लिए भी यह काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इससे 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति भी प्रभावित होगी।
भाजपा ने देबबर्मा को अपने साथ लाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। ऐसे में राज्य में त्रिकोणीय संघर्ष हो सकता है। भाजपा ने इस बार महिलाओं को साधने पर ज्यादा जोर दिया है। पार्टी ने सबसे ज्यादा 12 महिला उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। उसकी केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक भी चुनाव लड़ रही हैं।
टिपरा मोथा का चुनावी मुद्दा ग्रेटर टिपरालैंड राज्य की मांग है, जिससे भाजपा, कांग्रेस और माकपा भी सहमत नहीं है। दरअसल इस चुनाव में कांग्रेस और माकपा का गठबंधन काफी अहम हैं।
केरल में एक दूसरे के खिलाफ खड़ी कांग्रेस और माकपा अगर सफल होती हैं तो विपक्ष को एक नई रणनीति मिलेगी, लेकिन इसमें कई समीकरण प्रभावित भी होंगे। दोनों के सफल होने से केरल में भाजपा को मौका मिल सकता है, जो माकपा के साथ खड़े बड़े हिंदू समुदाय को अपने साथ लाने में जुटी है।
सत्तारूढ़ भाजपा ने अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। उसका पिछला सहयोगी आईपीएफटी भी उसके साथ है। दूसरी तरफ दो दशक से ज्यादा समय तक शासन कर चुकी माकपा ने वापसी के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है।
इन दोनों गठबंधनों के बीच राज्य में नई ताकत के रूप में उभरने की कोशिश कर रही टिपरा मोथा भी है, जो आदिवासी अधिकारों के लिए मैदान में उतरी है और जिसका नेतृत्व राज्य के पूर्व राजवंश के उत्तराधिकारी प्रद्योत देबबर्मा कर रहे हैं। पूर्व में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके देबबर्मा हालांकि खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।