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भारतीय चिंतन में जल संरक्षण

डॉ दिलीप अग्निहोत्रीसंविधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय शाखा विधान भवन लखनऊ की ओर से “जल का महत्व संकट एवं समाधान के विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने मुख्य व्याख्यान दिया।

उन्होंने वैदिक युग का उल्लेख किया। कहा कि हमारे ऋषियों ने जहां भी दिव्यता के दर्शन किये वहां प्रणाम किया। उन्होंने नदियों को दिव्य मानकर प्रणाम किया,जल में देवत्त्व देखा,उसका सम्मान किया। पृथ्वी सूक्ति की रचना की। वस्तुतः यह सब प्रकृति संरक्षण का ही विचार था।

हमारी भूमि सुजला सुफला रही,भूमि को प्रणाम किया,वृक्षों को प्रणाम किया। उपभोगवादी संस्कृति ने इसका मजाक बनाया। आज वही लोग स्वयं मजाक बन गए। प्रकृति कुपित है,जल प्रदूषित है,वायु में प्रदूषण है। इस संकट से निकलने का रास्ता विकसित देशों के पास नहीं है। इसका समाधान केवल भारतीय चिंतन से हो सकता है।

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