15 अगस्त यानी भारत की आजादी का दिन। वर्षों बाद अंग्रेजों की गुलामी के बाद 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ था। परंतु आजादी हिंदुस्तान का बंटवारा ले कर आई। आजाद होते ही हिंदुस्तान दो हिस्सो में बंट गया। एक हिस्सा भारत बना और दूसरा पाकिस्तान। आजादी मिलने से दोनों देश खुश थे। पर हर खुशी की आड़ में जो दुख की गर्त छुपी होती है, उसी तरह आजादी मिलते ही दुनिया ने नहीं देखा था, इस तरह का कत्लेआम भारतीय उपखंड में हूुआ। आजादी जरूर अंग्रेजों से मिली, पर उसी के साथ भारी खूनखराबा भी मिला। न जाने कितने लोग असमय मारे गए। इस साल आजादी को मिले 73 साल पूरे हो गए हैं। तो क्या हम सचमुच पूरी तरह आजाद हैं?
आजादी का मतलब क्या? यह एक बहुत ही गूढ़ प्रश्न है। हम किससे आजाद हुए हैं? हमने अंग्रेजों के शासन से आजाद होने के लिए लंबी हिंसक-अहिंसक लड़ाई लड़ी। उसके बाद हमारे ऊपर नए शासक आए। पहले के शासक गोरे थे, उसके बाद काले शासक आए। पहले कुत्ते के गले का पट्टा चमड़े का था, अब लोहे की चेन पड़ गई है। फिर आजादी किससे मिली? हकीकत में आजादी एक इल्यूजन है। आजादी शब्द ही भ्रम में रखने वाला है। नेता जब आजादी की बात करते हैं तो हकीकत में वे एक गुलामी से दूसरी गुलामी में ले जाने की बात करते हैं।
मनोवैज्ञानिकों के लिए सबसे मुश्किल जो शब्द है, वह है फ्रीडम। एक व्यक्ति जो आजाद होना चाहता है, उसे क्या करना चाहिए? इसका जवाब आज तक दुनिया में किसी के पास नहीं है। इसका कारण यह है कि आजादी यानी क्या, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। अगर आप मानते हैं कि आजादी का मतलब अपनी जिम्मेदारियों से दूर हो जाना तो यह बात सच नहीं है। जैन धर्म में दिगंबर साधु हैं। ये साधु कपड़े नहीं पहनते, खाने के लिए कोई बर्तन नहीं रखते, कोई कुछ खाने देता है तो हाथ का दोना बना कर उसी में लेकर खा लेते हैं, जमीन पर सो जाते हैं। किसी वाहन का उपयोग नहीं करते। लेकिन अगर आप इन साधुओं से पिूछए कि क्या वे आजाद हैं, तो जवाब मिलेगा कि मुझे भी अपने कर्म भोगने हैं। मेरी क्रिया, मेरा पाठ, मेरा अध्ययन रोज चलता रहता है। क्योंकि मैं अपने धर्म से बंधा हूं। अब यदि आप अपने परिवार से, प्रियजनो से, समाज से, देश से और अपने धर्म से बंधे हैं तो आप खुद को कैसे आजाद कह सकते हैं? हिंदू धर्म में पुनर्जन्म में विश्वास किया जाता है और माना जाता है कि शरीर नष्ट हो जाता है। आत्मा अमर है। आत्मा के लिए 84 लाख योनियों में घूमने की बात कही जाती है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मरने के बाद भी आजादी नहीं मिलती। हमें 84 लाख शरीरों में घूमना पड़ता है। इस भवबंधन के चक्कर से आजाद होना हो तो इसके लिए धर्माचार्य मोक्ष की बात करते हैं। क्या मोक्ष सचमुच में आजादी है? हिंदू धर्म के संत-महंत हमेशा मोक्ष की बात करते हैं। आत्मा की गति परमात्मा की ओर बताते हैं और परमगति को मोक्ष दर्शाते हैं। अगर मोक्ष आत्मा की आजादी है तो मोक्ष क्या है? वहां आत्मा को क्या करना होता है, इस बारे में कोई नहीं बताता।
आज लोगों को किसी भी तरह का बंधन अच्छा नहीं लगता। घर में बड़ों की रोकटोक, कालेज में शिक्षक-प्रोफेसर की रोकटोक, संबंधों में प्रियजनों द्वारा पाबंदी, नौकरी में बॉस की दादागिरी, रास्ते में रेड सिग्नल की रुकावट, ये सब किसे अच्छा लगता है? सभी को आजादी चाहिए, पर आजादी संभव नहीं है। इंगलिश में एक कहावत है-मैन इज बार्न फ्री, एंड इवरीह्वेयर ही इज द चांस। आजादी का नारा हकीकत में एक नई गुलामी की पुकार है। मनुष्य एक बंधन से छूट कर जब दूसरे बंधन में जकड़ता है तो शूुरू में आजादी की फीलिंग आती है, परंतु यह फीलिंग व्हिस्की के दो पैग की तरह होती है। आपको लगता है कि अब आप बादशाह बन गए हैं, पर वह नशा होता है। नशा उतरने के बाद सभी को असलियत फेस करनी होती है।
14 अगस्त, 1947 की आधी रात को दिल्ली के वाइसराय हाउस पर से जब स्टार आफ इंडिया के खिताब के निशान वाला ब्रिटेन ध्वज यूनियन जैक नीचे उतारा गया तो पूरे हिंदुस्तान में उत्साह और आनंद की लहर दौड़ गई थी। सभी एक रंगीन स्वप्न रच रहे थे कि आजादी मिली यानी हमारी जिंदगी में सोने का सूर्य उदय होगा। देश में घी-दूध की नदियां बहेंगी, रामराज्य आएगा। परंतु दिल्ली से सैकड़ों मील दूर कोलकाता 151, बेलियाट रोड पर खंडहर जैसे एक सीलन भरे मकान हैदरी हाउस के कमरे में एक सूखी लकड़ी जैसा व्यक्ति सोया था। नींद में भी जैसे वह बड़बड़ा रहा था।
रात दो बजे उस व्यक्ति के जगने का समय था। कमरे में मोमबत्ती का उजाला था। देखा जाए तो उस व्यक्ति के लिए भी उस सुबह सर्वोच्च प्रकाशमान सवेरा होना चाहिए था। क्योंकि पूरी जिंदगी को जिस पल के लिए उसने खर्च कर दिया था, वह पल 15 अगस्त की सुबह थी। देश अंग्रेजों के शासन से मुक्त हो गया था। परंतु वह व्यक्ति उठा तो उसके चेहरे पर सुख-संतोष या खुशी की एक लकीर तक नहीं थी। हैदरी हाउस में सो कर उठा वह व्यक्ति कोई ओर नहीं महात्मा गांधी थे। और 15 अगस्त की एकदम सुबह महात्मा के हृदय में वह आनंद नहीं था, जिसे पाने के लिए उन्होंने न जाने कितना बलिदान दिया था। आजादी मिलने के साथ उस वृद्ध व्यक्ति का हृदय ग्लानि से भर उठा था। पूरा जीवन जैसे राख हो गया था, ऐसी ग्लानि उनके झुर्रियों वाले चेहरे पर फैली थी। नोवाखाली के तराई वाले इलाके मेें घूमने पर जो सवाल उनके मन में थे, उनके जवाब खुद इस महात्मा के पास नहीं थे। गांधीजी ने 14 अगस्त की शाम को एक मित्र को पत्र लिखा था। मुझे लगता है कि मैं देश को गलत रास्ते पर ले गया हूं? गांधीजी का यह दुख, उनकी यह दुविधा आजादी मिलने के बाद की थी और उन्हें यह विषाद उनके अब तक के तमाम प्रश्नों के हल करने की जादुई किताब गीताजी में से भी नहीं मिले हैं। गांधीजी गोडसे की गोली से मरे, तब तक वह आजादी को पा नहीं सके थे।
अभी तक हम बात कर रहे थे कि आजादी क्या है? आइए अब हम इस बात पर विचार करते हैं कि आजादी मिलने के बाद भी हमें अभी किन चीजों से आजाद होना है।
देश को आजाद हुए सात दशक बीत गए हैं। देश अपनी तरह बदलता रहा और उसी के साथ-साथ भारत की जनरेशन भी बदलती रही है। देश आगे बढ़ता आया है, आगे बढ़ रहा है और इसी तरह आगे बढ़ता रहेगा। आज बात कर रहे हैं ऐसी पीढ़ी की जिसके पास आजादी की कोई निश्चित व्याख्या नहीं है। एक ऐसी पीढ़ी जिसके मन में आजादी सचमुच क्या है? स्वतंत्रता का सच्चा अर्थ क्या है और इसकी अपेक्षा आगे खुद को किससे स्वतंत्रता चाहिए, इन बातों का उससे कोई मतलब नहीं है। आजादी के बारे में, स्वतंत्रता के बारे में या फिर फ्रीडम और स्पेश के बारे में आज जो लोग बात करते हैं, डिमांड करते हैं और गॉसिप करते हैं, क्या उन्हें पता है कि वे जो मांग रहे हैं, वह क्या है।
आज के भारत पर नजर डालें तो पता चलता है कि पहले लोग अंग्रेजों की गुलामी करते थे और आज भी वे गुलामी कर रहे हैं। पहले अंग्रेजों के आदेश का पालन करते थे, आज नेताओं के आदेश का पालन कर रहे हैं। पहले अंग्रेज अधिकारियों के पैरों तले कुचले जाते थे, अब भ्रष्टाचारी बाबुओं के पैरों तले कुचले जा रहे हैं। शायद हमें पता ही नहीं है कि आधुनिक भारत को एक बार फिर स्वतंत्र होने की जरूरत है। यहां रहने वाला भारतीय आज तमाम चीजों से मुक्ति चाहता है। गरीब आदमी पर नजर करें, उसके साथ समय बिताएं तो पता चलता है कि उसे गरीबी से मुक्ति चाहिए। देश में लाखों लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो जून का भोजन नहीं मिल पाता। रहने के लिए छत नहीं है, पहनने के लिए ढ़ंग के कपड़े नहीं है। इन लोगों को इस पीड़ा से मुक्त होना चाहिए। हमारा देश आसमान चूम रहा है, चंद्रमा और मंगल पर यान भेजा जा रहा है। ऐतिहासिक सफलताएं हासिल कर रहा है। दूसरी ओर पिछले साल बिहार में हजारों बच्चे चिमकी बुखार से असमय मौत के गाल में समा गए। हमारे पास उनके इलाज के लिए या तो पर्याप्त पैसा नहीं था या राज्य के भ्रष्ट नेताओं ने पैसा दिया नहीं। इस लाचारी से हम भारतीयों को मुक्त होना है। हमें इस पीड़ा से स्वतंत्रता चाहिए।
मोदी सरकार ने कश्मीर धारा 370 हटा कर कानूनी उलझनों से मुक्त कर दिया है। पर कश्मीरियों को अभी तमाम मामलों में स्वतंत्र होने की जरूरत है। उन्हें भारत एवं भारतीयों के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त होने की जरूरत है। उन्हें भय और पीड़ा से मुक्त होने की जरूरत है। उन्हें आतंकवाद की परछाई से मुक्त होने की जरूरत है। भ्रष्टाचार एक सर्वस्वीकृत शिष्टाचार बन गया है। चपरासी से ले कर आईएएस और आईपीएस अधिकारियों तक के घोटाले में फंसे होने की खबरें अक्सर मीडिया में आती रहती हैं। ये अधिकारी एक से पैसा ले कर दूसरे के साथ अन्याय करते हैैं। अपने परिवार के लिए, नेताओं के परिवार के लिए ये लोग तरह-तरह के घोटाले करते हैं, जनता का पैसा चट कर जाते हैं। सरकार जनता के लिए जो पैसा देती है, उसका बंदरबांट कर लेते हैं। बाबुओं की तानाशाही चलती है। उनके आदेशानुसार सब व्यवस्थित हो जाता है। इस भ्रष्टाचारी व्यवस्था से भी हमें मुक्त होने की जरूरत है।
व्यसनमुक्ति और स्वच्छता, ये दो अति महत्वपूर्ण बातें हैं। हमें गंदगी और व्यसन से मुक्त होना है। जहां-तहां पान की पिचकारी मारने में हमें जरा भी शर्म नहीं आती। चौराहे पर सिग्नल पर खड़े होकर या चलती गाड़ी में दरवाजा खोल कर अथवा लिफ्रट में या फिर टूह्वीलर पर चलते हुए पान-मसाला की पिचकारी मारना लोग बहुत अच्छा समझते हैं। हमें इस मनोविकृति से मुक्ति मिलनी चाहिए। इन लोगों का जहां मन होता है, वहां पिचकारी मार देते हैं और हम उन्हें कुछ कहते नहीं हैं। ऐसे गैरजिम्मेदार नशेड़ियों से ही नहीं हमें उन लोगों से भी मुक्त होने की जरूरत है, जो ऐसे लोगों को रोकने से कतराते हैं या फिर डरते हैं।
पैसे के प्रभुत्व और उससे पैदा होने वाली परेशानियों से भी हमें मुक्त होने की जरूरत है। दूसरी ओर नियमों को तोड़ने वाली मानसिकता से भी हमेें मुक्त होने की जरूरत है। नियम तोड़ कर लोग गर्व महसूस करते हैं। ऐसे लोग पुलिस को पैसा देकर अपना अपराध छुपा लेते हैं। हमें इस तरह की मानसिकता से भी मुक्त होने की जरूरत है। वोट के लिए नोट और नोट के लिए वोट जैसी मानसिकता से जब तक हमें मुक्ति नहीं मिलती, तब तक हम सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव नहीं कर सकते। वैष्णो देवी जाने की मन्नत मान कर घर की महिलाओं पर अत्याचार करने की मानसिकता से भी मुक्त होने की जरूरत है। छौटी-छोटी बच्चियों को हवस का शिकार बनाने वाले हैवानों से मुक्ति की जरूरत है। कौमवाद, जातिवाद, पंथवाद, प्रांतवाद, संप्रदायवाद आदि से मुक्ति की जरूरत है। माता-पिता को वृद्धाश्रम में पहुंचा कर अपनी संतानों को श्रवण कुमार बनने की सीख देने वाली वृत्ति से मुक्त होने की जरूरत है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आदमी को अपने वाद से मुक्त होने की जरूरत है। जब तक मैं, मेरा, मेरे लिए का भाव नहीं खत्म होगा, तब तक कुछ नहीं हो सकता। हर तरह के वाद से मुक्त होने की जरूरत है।
स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के बीच स्थित पतली रेखा को हम समझ नहीं पाते। मनपसंद काम करना स्वतंत्रता है और मन को जो काम भाए, वह करना स्वच्छंता है। संयम, मर्यादा, नियमों, परंपराओं और संस्कारों का पालन करने की स्वतंत्रता अभी हम प्ररप्त नहीं कर सके हैं। रास्तें पर गंदगी न कर के, नियमों का पालन कर के, जहां मन हो वहां न थूक कर, स्त्री और बच्चियों का सम्मान कर के, अपनी राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा कर के, संस्कारों का पालन कर के सच्ची स्वतंत्रता होगी। ऐसा कर के भी हम सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव कर सकते हैं। हमारे लिए यही सच्ची स्वतंत्रता होगी भी।
वीरेन्द्र बहादुर सिंह