भारतीय नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की पहली तिथि को शुरू होता है. इसके आगमन के पूर्व पुराने संवत्सर को विदाई देने और इसकी नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए “होलिका दहन” किया जाता है. इसको कहीं-कहीं पर संवत जलाना भी कहते हैं. इसके पीछे अगर पौराणिक कथाएं हैं तो वैज्ञानिक मान्यताएं भी हैं. बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक स्वरूप में होलिका दहन किया जाता है.
होलिका दहन में किसी वृक्ष कि शाखा को जमीन में गाड़ कर उसे चारों तरफ से लकड़ी कंडे उपले से घेर कर निश्चित मुहूर्त में जलाया जाता है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन जलाया जाता है. ताकि वर्षभर व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति हो और उसकी सारी बुरी बलाएं अग्नि में भस्म हो जाएं. लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है. फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्री चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था. उनको श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है. इस दिन श्री चैतन्य महाप्रभु की पूजा उपासना भी अत्यंत शुभ फलदायी होती है.
क्या है होलिका दहन की विशेषता और लाभ?
इस दिन मन की तमाम समस्याओं का निवारण हो सकता है. रोग, बीमारी और विरोधियों की समस्या से निजात मिल सकती है. आर्थिक बाधाओं से राहत मिल सकती है. अगर आप ईश्वर की कृपा पान चाहते हैं तो इस दिन आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. अलग-अलग चीजों को अग्नि में डालकर अपनी अपनी बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं.
क्या करें होलिका दहन के दिन?
होलिका दहन के स्थल पर जाएं. अग्नि को प्रणाम करें. भूमि पर जल डालें. इसके बाद अग्नि में गेंहू की बालियां, गोबर के उपले, और काले तिल के दाने डालें. अग्नि की परिक्रमा कम से कम तीन बार करें. इसके बाद अग्नि को प्रणाम करके अपनी मनोकामनाएं कहें. होलिका की अग्नि की राख से स्वयं का और घर के लोगों का तिलक करें.
इस बार होलिका की अग्नि में क्या अर्पित करें?
अच्छे स्वास्थ्य के लिए- काले तिल के दाने
बीमारी से मुक्ति के लिए- हरी इलाइची और कपूर
धन लाभ के लिए- चन्दन की लकड़ी
रोजगार के लिए- पीली सरसों
विवाह और वैवाहिक समस्याओं के लिए- हवन सामग्री
नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति के लिए- काली सरसों (राई)