धन्य हैं वे लाल, जिन्होने अपनी भारत भूमि, अपने धर्म और अपने संस्कार की रक्षा हेतु माँ के दूध का कर्ज चुकाया और यौवन आने के पहले ही मृत्यु का वरण कर लिया। चमकौर की गढ़ी के युद्ध का इतिहास इस बात का ज्वलंत गवाह है कि एक तरफ थे मधु मक्खी के छत्ते की तरह बिलबिलाते “यवन आक्रांता” और दूसरी तरफ थे मुट्ठी भर रण बाकुँरे सिक्ख…। सिर पर केशरिया पगड़ी बाधें, हाथ मे लपलपाती भवानी तलवारें लिये, सामने विशाल म्लेच्छ सेना और फिर भी बेखौफ! दुष्टों को उन्होंने गाजर मूली की तरह काटा। वीर सपूत गुरुजी के दोनो साहबजादे, (17 साल के अजित सिंह और 14 साल के जुझार सिंह), हजारों-हजार म्लेच्छों को मौत के घाट उतार कर शहीद हो गये। विश्व इतिहास में यह एक ऐसी अनोखी घटना है, जिसमे पिता ने अपने तरूण सपूतों को धर्म की वेदी पर शहीद कर दिया और विश्व इतिहास मे अपना नाम स्वर्णाक्षरो मे अंकित करवा दिया। क्या दुनिया के किसी और देश मे ऐसी मिसाल मिलती है…नहीं। मुगल शासक ने उन रण बांकुरों से उनके धर्म और संस्कृति के परिवर्तन की माँग की थी जिसको उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया। गुरू महाराज के उन दो छोटे सिंह शावको (बच्चों) ने अपना सर नही झुकाया। इस पर दुष्ट मुगल बादशाह ने 7 साल के जोरावर सिंह और 5 साल के फतेह सिंह को जिंदा दीवाल मे चिनवा दिया। कितना बड़ा कलेजा रहा होगा उन वीर सपूतों का, कितनी गर्माहट और कितना जोश होगा उस वीर प्रसूता माँ के दूध मे, जो पाँच और सात साल के बच्चों की रगों मे रक्त बन कर दौड़ रहा था कि उन्होने अपने धर्म संस्कृति की रक्षा के लिये इतनी यातनादायक मृत्यु का वरण किया।
…और कितने दुष्ट, कितने नृशंस, कितने कातिल और कितने कायर थे वे ‘म्लेच्छ’ जिनका मन फूल जैसे बच्चो को जिन्दा चिनवाते भी नही पसीजा था! और किस लिये? सिर्फ इसलिये कि वे इन मासूमों का धर्मपरिवर्तन करके मुसलमान बनाना चाहते थे! आखिर क्या अच्छाई हो सकती है ऐसे धर्म मे… जो निरीह अबोध बच्चो को भी जिन्दा दीवार मे चिनवा दे? यही कारण है कि यह वीर प्रसूता भूमि और हम आज गुरू गोविंद सिंह जी और उनके साहबजादों को श्रृद्धा और विनम्रता से याद कर रहे हैं।
हम मे से अधिसंख्य लोगों को इन वीरो के बलिदान की जानकारी भी नही होगी, क्योकि हमें तो इतिहास में “अकबर महान” और शाहजहाँ का (काल) स्वर्ण काल पढ़ाया गया है, हमने तो इन वीर पुरुषो के विषय मे किसी किताब के कोने मे केवल दो लाइनें भर पढ़ी होंगी। अब हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने बच्चो को इतिहास की यह जानकारी दें, पढ़वायें, गूगल पर, गुरु गोविंद सिंह जी को सर्च करें और जो विवरण प्राप्त हो उसे पढ़ें और पढ़वायें। यह जरुरी है कि हम अपने इतिहास और पुरखो के बारे मे जानें।
गौवंशों को बचाने और सामाजिक कुरीतियों से जूझने वाले नामधारी सिक्खों की शहादत
साल के आखिरी महीने यानि 21 दिसम्बर से लेकर 27 दिसम्बर तक, इन्ही 7 दिनों में गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था। यह खेदजनक है कि 21 दिसम्बर को गुरू गोविंद सिंह द्वारा परिवार सहित आनंदपुर साहिब किला छोङने से लेकर 27 दिसम्बर तक के इतिहास को हम भूला बैठे हैं! इधर जब हिन्दुस्तान में Christmas का जश्न मनाया जाता है और एक दूसरे को बधाइयां दी जाती है, तब हमें अपने इतिहास को दोहराना प्रासंगिक लगता है।
एक ज़माना था जब पंजाब में इस पूरे हफ्ते सब लोग ज़मीन पर सोते थे, क्योंकि माता गूजर कौर ने वो रात दोनों छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह व फतेह सिंह) के साथ, नवाब वजीर खां की गिरफ्त में (सरहिन्द के किले में) ठंडी बुर्ज में गुजारी थी। यह सप्ताह सिख इतिहास में ‘शोक का सप्ताह’ होता है। पर आज यह दुखद है कि पंजाब समेत पूरा हिन्दुस्तान इन कुर्बानियों को भुला कर एक परदेशी जश्न में डूब जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी की कुर्बानियों को इस अहसान फरामोश मुल्क ने सिर्फ 300 साल में भुला दिया! जो कौमें अपना इतिहास, अपनी कुर्बानियाँ भूल जाती हैं वो खुद इतिहास बन जाती है। आज हर भारतीय को, विशेषतः युवाओं व बच्चों को, इस जानकारी से अवगत कराना जरुरी है। हर भारतीय को क्रिसमस नहीं, हिन्द के शहजादों को याद करना चाहिये। यह निर्णय आप ही को करना है कि 25 दिसंबर (क्रिसमस) को तवज्जो मिलनी चाहिए या फिर क़ुरबानी की इस अनोखी “शायद दुनिया की इकलौती मिसाल” को!
21 दिसंबर: श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।
22 दिसंबर: गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और दोनों छोटे साहिबजादों को गंगू नामक ब्राह्मण (जो कभी गुरु घर का रसोइया था) उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया। चमकौर की जंग शुरू हुई और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे श्री अजीत सिंह जी उम्र महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह जी उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित मजहब और मुल्क की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।
23 दिसंबर: गंगू ब्राह्मण ने गद्दारी करते हुए गहने एवं अन्य सामान चोरी करने के उपरांत गुरु साहिब की माता श्री गुजर कौर जी और दोनों छोटे साहिबजादे की मुखबरी मोरिंडा के चौधरी गनी खान से की और तीनो को गनी खान के हाथों गिरफ्तार करवा दिया और गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।
24 दिसंबर: तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।
25 और 26 दिसंबर: छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया।
27 दिसंबर: साहिबजादा जोरावर सिंह उम्र महज 8 वर्ष और साहिबजादा फतेह सिंह उम्र महज 6 वर्ष को तमाम जुल्म-ओ-जब्र के बाद जिंदा दीवार में चुनवाने के उपरांत जिबह (गला रेत) कर शहीद किया गया और यह खबर सुनते ही माता गुजर कौर ने अपने साँस त्याग दिए।
साहिबज़ादों के पार्थिव शरीर के अंतिम संस्कार के लिए खरीदी गई दुनिया की सबसे मंहगी जमीन
क्या आप जानते है दुनिया की सबसे महँगी जमीन खरीदने वाले आदरणीय टोडरमल जी थे? क्या आप जानते हैं दुनिया की सबसे महंगी ज़मीन कहां पर है? आज तक किसी एक भूमि के टुकड़े का जो सबसे अधिक दाम चुकाया गया है वो हमारे भारत में ही पंजाब में स्थित सिरहिन्द में है और विश्व की इस सबसे महंगी भूमि को ख़रीदने वाले महान व्यक्ति का नाम था, दीवान टोडरमल जी! गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे-छोटे साहिबज़ादों, बाबा फ़तह सिंह और बाबा ज़ोरावर सिंह की शहादत की दास्तान शायद आप सबने कभी ना कभी कहीं ना कहीं से सुनी होगी, यहीं सिरहिन्द के फ़तहगढ़ साहिब में मुग़लों के तत्कालीन फ़ौजदार वज़ीर खान ने दोनो साहिबज़ादों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था।
दीवान टोडर मल जी, जो कि इस क्षेत्र के एक धनी व्यक्ति थे और गुरु गोविंद सिंह जी एवं उनके परिवार के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान करने को तैयार थे, उन्होंने वज़ीर खान से साहिबज़ादों के पार्थिव शरीर की माँग की और वह भूमि भी ,जहाँ वह शहीद हुए थे और वहीं पर उनकी अंत्येष्टि करने की इच्छा प्रकट की।
वज़ीर खान ने धृष्टता दिखाते हुए भूमि देने के लिए एक अटपटी और अनुचित माँग रखी। वज़ीर खान ने माँग रखी कि इस भूमि पर सोने की मोहरें बिछाने पर जितनी मोहरें आएँगी वही इस भूमि का दाम होगा। दीवान टोडर मल जी ने अपने सब भंडार ख़ाली करके जब मोहरें भूमि पर बिछानी शुरू कीं तो वज़ीर खान ने धृष्टता की पराकाष्ठा पार करते हुए कहा कि मोहरें बिछा कर नहीं बल्कि खड़ी करके रखी जाएँगी ताकि अधिक से अधिक मोहरें वसूली जा सकें। ख़ैर, दीवान टोडर मल जी ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर और मोहरें इकट्ठी कीं और 78000 सोने की मोहरें देकर चार गज़ भूमि को ख़रीदा ताकि गुरु जी के साहिबज़ादों का अंतिम संस्कार वहाँ किया जा सके। विश्व के इतिहास में ना तो ऐसे त्याग की कहीं कोई और मिसाल मिलती है ना ही कहीं पर किसी भूमि के टुकड़े का इतना भारी मूल्य कहीं और आज तक चुकाया गया।
आदिवासियों के ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा और तिलका मांझी के ‘संथाल विद्रोह’ की कहानी
जब बाद में गुरु गोविन्द सिंह जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने दीवान टोडर मल जी से कृतज्ञता प्रकट की और उनसे कहा कि वे उनके त्याग से बहुत प्रभावित हैं, और उनसे इस त्याग के बदले में कुछ माँगने को कहा। ज़रा सोचिए , दीवान टोडर मल जी ने क्या माँगा होगा…। गुरु जी से…? दीवान जी ने गुरु जी से जो माँगा उसकी कल्पना करना भी असम्भव है ! दीवान टोडर मल जी ने गुरु जी से कहा कि यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो कुछ ऐसा वरदान दीजिए कि मेरे घर पर कोई पुत्र ना जन्म ले और मेरी वंशावली यहीं मेरे साथ ही समाप्त हो जाए! इस अप्रत्याशित माँग पर गुरु जी सहित सब लोग हक्के-बक्के रह गए! गुरु जी ने दीवान जी से इस अद्भुत माँग का कारण पूछा तो दीवान जी का उत्तर ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर दे…।
दीवान टोडर मल जी ने उत्तर दिया कि गुरु जी, यह जो भूमि इतना महंगा दाम देकर ख़रीदी गयी और आपके चरणों में न्योछावर की गयी, मैं नहीं चाहता कि कल को मेरी आने वाली नस्लों में से कोई कहे कि यह भूमि मेरे पुरखों ने ख़रीदी थी। यह थी निस्वार्थ त्याग और भक्ति की आज तक की सबसे बड़ी मिसाल। हमारे पुरखे जो-जो बलिदान देकर गए हैं वह अभूतपूर्व है और इन्ही बलिदानों के कारण ही हम लोगों का अस्तित्व अभी तक कायम है। हमारी इतनी औक़ात नहीं कि हम इस बलिदान के हज़ारवें भाग का भी ऋण उतार सकें। त्याग और बलिदान की इस गाथा को हमारे गौरवशाली इतिहास से गायब कर दिया गया है।
अब से हर साल 26 दिसंबर को मनाया जाएगा वीर बाल दिवस
गुरु गोबिंद सिंह जी के वीर सपूतों की शहादत के 318 साल बाद इस बार 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ मनाया जाएगा। सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंहजी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि इस साल से अगले हर 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ मनाया जाएगा। उन्होंने ट्वीट किया है कि उनके चार बेटे धर्म रक्षा के लिए ही शहीद हो गए थे, उनके साहस के लिए ये सच्ची श्रद्धांजलि होगी। सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि इस साल से अगले हर 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ मनाया जाएगा. उन्होंने ट्वीट किया कि उनके चार बेटे धर्म रक्षा के लिए ही शहीद हो गए थे, उनके साहस के लिए ये एक सच्ची श्रद्धांजलि है।
आदिवासियों के ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा और तिलका मांझी के ‘संथाल विद्रोह’ की कहानी
सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटों के श्रद्धांजलि के तौर पर ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा, जिन्हें मुगलों ने मौत के घाट उतार दिया था। पी एम मोदी ने कहा है कि वीर बाल दिवस उसी दिन मनाया जाएगा, जिस दिन साहिबजादा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा फतेह सिंह जी ने शहादत प्राप्त की थी. इन दोनों महान सपूतों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मौत को प्राथमिकता दी। पीएम ने कहा कि माता गुजरी, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और 4 साहिबजादों की बहादुरी और आदर्श लाखों लोगों को ताकत देते हैं। वे कभी अन्याय के याद किया जाएगा. उन्होंने कहा कि देश व धर्म की रक्षा के लिए 4 साहिबजादों व माता गुजरी का अतुलनीय बलिदान व राष्ट्रभक्ति देश की धरोहर है।
बाल दिवस से जुड़ी ये कुछ अहम बातें
बच्चे अपने देश का भविष्य होते हैं। किसी भी देश के विकास के लिए बच्चों का विकास बहुत जरूरी है। ऐसे में समाज और देश की जिम्मेदारी है कि बच्चों को रहने योग्य बेहतर माहौल और अच्छी शिक्षा दी जाए। इन्हीं भावी प्रतिभाओं के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए भारत हर साल 14 नवंबर को बाल दिवस के तौर पर मनाता है। बाल दिवस बच्चों का राष्ट्रीय पर्व है। हालांकि 14 नवंबर से पहले भारत में #बालदिवस मनाने का दिन अलग था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व बाल दिवस 20 नवंबर को मनाया जाता है।
भारत में 14 नवंबर से 20 नवंबर तक बाल अधिकार सप्ताह मनाया जाता रहा है। बच्चों के समग्र विकास के लिए #यूनिसेफ भी कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन इस मौके पर करता है। स्कूल-काॅलेजों में बच्चों के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। बच्चे भी इन कार्यक्रमों में शामिल होते हैं और बाल दिवस को अपने जन्मदिन की तरह मनाते हैं। बाल दिवस को लेकर जितना उत्साह बच्चों में होता है, उतना ही इसका महत्व देश दुनिया में भी है। विश्व बाल दिवस के बारे में ऐसी कई बाते हैं, जो हर किसी को पता होनी चाहिए।
स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम नायक: वीरांगना ऊदादेवी पासी, वीरा पासी, मदारी पासी और मक्का पासी
बाल दिवस हर वर्ष की तरह इस बार भी पूरे देश में मनाया गया। भारत हर साल 14 नवंबर को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बर्थ एनिवर्सरी को दर्शाने के लिए मनाता है। बाल दिवस ‘चाचा नेहरू’ के कार्य, शिक्षा में उनके योगदान के लिए मनाया जाता है। पंडित नेहरू का जन्म 1889 में इलाहाबाद में हुआ था। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू यह मानते थे कि बच्चे किसी भी समाज का फाउंडेशन और एक राष्ट्र की असली ताकत होते हैं। उनका कहना था कि आज के बच्चे ही कल के भारत का निर्माण करेंगे और जिस तरह से हम उनका विकास करेंगे उसी स्तर पर देश का भी विकास होगा।