आगरा। बाह क्षेत्र में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ा हुआ है। चंबल का जलस्तर बढ़ने से बाह रेंज में डॉल्फिन का गोता लगाने का रोमांचक नजारा दिखने लगा है। बता दें कि 14 साल से चंबल नदी में डॉल्फिन का संरक्षण हो रहा है। एक साल में इनकी संख्या 71 से बढ़कर 96 हो गई है।
साल 1996 में अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने लुप्तप्राय जलीय जीवों में डॉल्फिन को शामिल किया था।ये भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान में ही बची हैं। 5 अक्टूबर 2009 में डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर संरक्षण के लिए चंबल नदी को चुना गया था।
बाह रेंज में गणना के दौरान 19 डॉल्फिन मिली थीं। यह अपने आप में रिकॉर्ड है। अभी तक बाह रेंज में डॉल्फिन के गोते महज 14 डीपपूल में ही दिख रहे थे। कोटा बैराज का पानी आने से चंबल का जलस्तर सोमवार को 116 मीटर था। यह बुधवार को 114.80 मीटर रह गया।
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बाह के रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि नदी का जलस्तर बढ़ने से बाह रेंज में डॉल्फिन के गोते लगाते हुए दिखना आम हो गया है। उन्होंने बताया कि नदी का बहाव अभी तेज नहीं है। वैसे भी डॉल्फिन पानी की लहरों से लड़ने में माहिर होती हैं। कछुए, घड़ियाल, मगरमच्छ बहकर पचनदा तक पहुंच जाते हैं। डॉल्फिन मुश्किल से बाह रेंज की सीमा को लांघ पाती हैं।
रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि मादा डॉल्फिन का गर्भकाल 9 से 11 महीने का होता है। यह मार्च से अक्तूबर के बीच में बच्चे को जन्म देती है। दो साल तक बच्चे की देखभाल करती हैं। इनका जीवनकाल 28 साल का तथा औसत लंबाई ढाई मीटर की होती है।
बता दें कि डॉल्फिन को पानी का बाघ माना जाता है।डॉल्फिन नदी के पानी की स्वच्छता का सूचक भी मानी जाती है।डॉल्फिन की आंखें नहीं होती हैं। ये चमगादड़ की तरह ध्वनि तरंगों के परावर्तन (सोनार प्रणाली) से वस्तुओं और शिकार की पहचान करती हैं। आक्रमण और बचाव में भी यही प्रणाली मददगार होती है। डॉल्फिन पानी के अंदर रह कर मछलियों की तरह शिकार करती है। बार-बार छलांग लगाकर पानी के बाहर आकर सांस लेती है। ये 10 से 15 मिनट तक पानी के अंदर रह सकती हैं।