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डिप्रेशन भारत के लिए क्यों घातक?

      राखी सरोज

डिप्रेशन आज के समय में कहीं ना कहीं यह शब्द सुनने को मिली जाता है यह शब्द आजकल इतना अधिक चलन में हो गया है कि चाहे बड़े हो या छोटे हर किसी के जीवन में प्रयोग होने लगा है। जब यह शब्द इतना अधिक प्रयोग होने लगा है तो यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि डिप्रेशन होता क्या है और आज के समाज में इसका इतना अधिक प्रभाव क्यों हैं?

असफलता, संघर्ष और किसी अपने से बिछड़ जाने के कारण दुखी होना बहुत ही आम और सामान्य है। परन्तु अगर अप्रसन्नता, दुःख, लाचारी, निराशा जैसी भावनायें कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक बनी रहती है और व्यक्ति को सामान्य रूप से अपनी दिनचर्या जारी रखने में भी असमर्थ बना देती है तब यह डिप्रेशन नामक मानसिक रोग का संकेत हो सकता है।

आज हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी लिंग, रंग, रूप, भाषा, स्थान आदि से संबंधित हो कहीं ना कहीं डिप्रेशन अर्थात तनाव का शिकार होता है। तनाव का मुख्य कारण आज हम अपने आसपास विकास के इस दौर को समझते हैं जिसमें हम एक दूसरे से आगे बढ़ने की दौड़ में कुछ इस कदर खो जाते हैं कि एक दूसरे से दूर होते चले जाते हैं और प्रत्येक उस बात से खुद को चिंता में डाल लेते हैं जो हमें ऐसा लगता है कि सामाजिक तौर पर अन्य लोगों के विचारों में ग़लत बना देती है।

भारत एक विकासशील देश है। जहां प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में संघर्ष करना पड़ता है, आगे बढ़ने के लिए। ऐसे में अक्सर भारी जनसंख्या और ‌कम अवसरों के चलते सभी आगे बढ़ने के मौके नहीं मिल पाते हैं। ऐसे में हम मानसिक रूप से तनाव का शिकार बनते हैं और यही तनाव डिप्रेशन का कारण बन सकता है जब हम अपने जीवन में उस लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते जिस लक्ष्य का विचार हमारे जीवन में हमने किया होता है या फिर हमारे माता-पिता समाज द्वारा हम पर इतना अधिक दबाव किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए डाले जाना भी डिप्रेशन का एक मुख्य कारण बनता जा रहा है।

 

समाज हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है किंतु यही समाज अक्सर हमें ऐसे कार्य करने के लिए दबाव बनाता है जिनका हमारे जीवन में नकरात्मक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए एक लड़का यदि अपनी पत्नी के प्रति सकारात्मक व्यवहार रखते हुए प्रेम से उसका हालचाल पूछते हुए उसको एक कप चाय या पानी देता नजर आ जाए तो हम उसे जोरू का गुलाम होने का खिताब देने से दूर नहीं होते हैं।

जब वही पति यदि अपनी पत्नी पर हाथ उठाता नजर आ जाए तो हम उस पति को एक निर्दई पति साबित कर देते हैं जबकि यह समाज का ही बनाया हुआ नियम है कि स्त्री को प्रेम ना दें तो जब पुरुष प्रेम नहीं देगा तो घृणा ही तो बचेंगी। फिर कैसे हम यह सोच लेते हैं कि पुरुष अच्छा भी ना हो और भूरा भी ना हो। क्या समाज की इस प्रकार के धारणा हम सभी के लिए ग़लत नहीं है। ऐसी अनेक धारणाएं जो समाज की देन होती है, वह हम लोगों के जीवन में नकरात्मक प्रभाव लाती है और कई बार मानसिक तनाव का कारण बन जाती है।

हमारे देश में अनेक लोग अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं जिसके चलते वह डिप्रेशन जैसी समस्या का सामना करते हैं।डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन सहित अन्य मानसिक बीमारियों के शिकार हो‌ रहें हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में काम करने वाले लगभग 42 प्रतिशत कर्मचारी डिप्रेशन और एंग्जाइटी से पीड़ित हैं। डिप्रेशन और अकेलापन भारत सहित पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है और इसे केवल समाज की जिम्मेदारी मानकर नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। अकेलेपन में घिरा हुआ व्यक्ति खुद अपने विनाश का कारण बन जाता है।

ऐसी स्थिति में वह जीवन के बारे में न सोच कर, मृत्यु के बारे में सोचने लगता है। अकेलेपन का शिकार व्यक्ति जीवन भर परेशान रहता है और उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर के युवाओं की मौत की तीसरी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है और इसका सबसे बड़ा कारण अकेलापन ही है। अकेलेपन का शिकार केवल अकेले रहने वाले व्यक्ति ही नहीं संयुक्त परिवार में रहने वाले भी व्यक्ति हो जाते हैं। जब हम अपनी जीवन में होने वाली घटनाओं और अपने दिल की बातों को किसी अन्य व्यक्ति से कहने में सजक नहीं हो पाते तब अक्सर हम मानसिक तनाव का शिकार होते हैं।

जिन महिलाओं के पति प्यार का इजहार खुलकर नहीं करते हैं, वे महिलाएं तनाव (डिप्रेशन) का शिकार हो रही हैं। मेरठ के पीएल शर्मा जिला महिला अस्पताल के मन कक्ष में एक जनवरी 2022 से 15 मई 2022 तक आईं एक हजार महिलाओं पर हुई स्टडी में यह खुलासा हुआ है। महिलाएं पति से अपनेपन की उम्मीद रखती है, किंतु पुरुष अधिकतर अपने अन्य कार्यों और अपने जीवन के अन्य लोगों को इतना अधिक महत्व देता है कि अपनी के महत्व को उसे समझाना भूल जाता है।

हमारे देश के 5 करोड़ से अधिक लोग आज डिप्रेशन का शिकार है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार जिसका शीर्षक ‘डिप्रेशन एवं अन्य सामान्य मानसिक विकार-वैश्विक स्वास्थ्य आकलन’ था। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि चीन और भारत डिप्रेशन से बुरी तरह प्रभावित देशों में शामिल हैं।भारत और अन्य मध्य आय वाले देशों में आत्महत्या के सबसे बड़े कारणों में से एक चिंता भी है। 2015 में भारत में करीब 3.8 करोड लोग चिंता जैसी समस्या से पीड़ित थे और इसके बढ़ने की दर 3 फीसदी थी। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में डिप्रेशन और चिंता सबसे ज्यादा पाई गई। डेटा से पता चलता है कि कम और मध्य आय वाले देशों में दुनिया के 78 फीसदी आत्महत्या के मामले सामने आते हैं। 2012 में भारत में आत्महत्या के सबसे ज्यादा अनुमानित मामले सामने आए थे। भारत में 2030 तक आधी आबादी भारत की मानसिक समस्या का शिकार होंगी। जिसका प्रभाव भारत के विकास पर भी पड़ेगा।

आज विचार करना जरूरी है कि भारत में मानसिक तनाव क्या डिप्रेशन जैसे ही समस्या से गुजरने वाले व्यक्तियों के लिए हमें किस प्रकार की कोशिश करनी चाहिए ताकि वह इस समस्या से जल्द से जल्द बाहर आ सके या फिर इस प्रकार की समस्या का शिकार ना हो बच्चें, बुढ़े या जवान कोई भी। एक स्वस्थ शरीर में जैसे स्वस्थ मन का विकास संभव है। वैसे ही जीवन में एक स्वस्थ मन के साथ ही भविष्य का विकास संभव है। जिसके लिए हमें संघर्ष करना पड़ता है, किंतु इस संदर्भ को इतना अधिक जटिल और मानसिक तनाव देने वाला नहीं बना देना चाहिए। हमें अपने स्वास्थ और खाने का ध्यान रखना चाहिए। ताकि हम किसी प्रकार की समस्या से ना ग्रस्त हो।

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