टू फिंगर टेस्ट अर्थात एक ऐसा परिक्षण जो बलात्कार के बाद महिला की वर्जिनिटी को जांचने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस परिक्षण द्वारा यह जानकारी प्राप्त की जाती थी कि क्या महिला यौन संबंध बनाने में सक्रिय है या नहीं। भारत में साल 2013 में ही टू फिंगर टेस्ट पर रोक लगा दी गई है। फिर भी आज इस परिक्षण पर बात हो रही है आखिर ऐसा क्यू है?
भारत में आज अचानक से ही सभी अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन गया एक मुद्दा जिसने महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार जैसे अपराध में परिक्षा के ग़लत तरीकों के प्रयोग पर बात की। असंवैधानिक और मानसिक आघात पहुंचाने वाला परिक्षण करने का जब एक मामला कोर्ट में आया। इंडियन एयर फोर्स (IAF) की एक महिला अधिकारी ने अपने सहयोगी फ्लाइट लेफ्टिनेंट पर रेप का आरोप लगाया है। महिला अधिकारी की शिकायत पर छत्तीसगढ़ के रहने वाले फ्लाइट लेफ्टिनेंट अमितेश हरमुख पुलिस की गिरफ्त में हैं। उन्होंने कहा है कि रेप की पुष्टि के लिए उनका टू-फिंगर टेस्ट कराया गया। इससे उन्हें गहरा सदमा लगा है। जिस टेस्ट पर सालों पहले ही रोक लगा दी गई है आखिर उसका आज भी प्रयोग किया जा रहा है यह एक सवाल उठाता है लोगों के मौलिक अधिकार और मानवाधिकार को लेकर।
लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्य के मामले में कोर्ट ने, भारत में 2013 में ही इस टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट की जगह बेहतर वैज्ञानिक तरीके अपनाने को कहा था।कोर्ट ने इस टेस्ट पर सख्त टिप्पणी की थी। इसे रेप पीड़िता की निजता और उसके सम्मान का हनन करने वाला करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचाने वाला टेस्ट है। यह टेस्ट पॉजिटिव भी आ जाए तो नहीं माना जा सकता है कि संबंध सहमति से बने हैं। 2014 में केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए दिशानिर्देश में भी इसकी मनाही की गई थी। कोर्ट ने कहा यह टेस्ट अवैज्ञानिक है। इससे महिला को मानसिक तनाव देकर परेशान किया जाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रेप पीड़ितों के इलाज के लिए नए दिशा-निर्देश बनाए, जिनके मुताबिक, प्रत्येक हॉस्पिटल में पीड़िता की चिकित्सा और फोरेंसिक जांच के लिए एक अलग कमरा होना चाहिए। इन दिशानिर्देशों में पीड़िता के साथ टू-फिंगर टेस्ट को अवैज्ञानिक और गैरकानूनी बताया गया है।
डब्लूएचओ ने #टू_फिंगर_टेस्ट को अनैतिक बताया है। उन्होंने कहा था कि बलात्कार के केस में अकेले हाइमन की जांच से सबकुछ पता नहीं चलता है। ये संदिग्ध होती है। टू फिंगर टेस्ट मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ ही पीड़िता के लिए दर्द का कारण बन सकता है। ये यौन हिंसा के जैसा ही है, जिसे पीड़िता दोबारा अनुभव करती है। #WHO ने टू फिंगर टेस्ट पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि ये प्रक्रिया वैज्ञानिक नहीं है।2010 में ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक रिपोर्ट में बताया था कि इस टेस्ट पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। ये फैसला तब किया गया, जब उन्होंने टू फिंगर टेस्ट से गुजर चुकी महिलाओं के इंटरव्यू किए।
सुप्रीम कोर्ट ने रेप मामलों में पुष्टि के लिए पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट कराने की कड़ी निंदा की है। कोर्ट ने कहा कि यह पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है। ऐसा कराने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ और हेमा कोहली की पीठ ने फैसला में कहा कि दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामलों में ‘टू-फिंगर टेस्ट’ के इस्तेमाल गलत है। कोर्ट ने कहा कि इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। कोर्ट का कहना है कि जो भी इस टेस्ट को लेता है उसे दोषी ठहराया जाएगा। इस फैसले की बाद से 2 फिंगर टेस्ट विद्यार्थियों के स्टडी मैटेरियल से भी हटाने को भी कहां।
हमारे देश में बनने वाले कानूनो की जानकारी सभी को ना होने के चलते अक्सर कुछ लोग ऐसे तरीकों का प्रयोग करते है जिससे पीड़ित व्यक्ति को अधिक मानसिक और शारीरिक आघात सहन करना पड़ता है। ऐसा ही हुआ इस केस में भी जिसके चलते कोर्ट को टू फिंगर टेस्ट पर फिर से आज कड़ी निंदा करने के साथ ही साथ यह भी कहना पड़ा कि कोई भी नियम बनाने का तब तक फायदा नहीं है जब तक उसे लागू ना किया जाए। टू-फिंगर टेस्ट के साथ भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है जिसको सुप्रीम कोर्ट ने बहुत गलत बताया है।
कानून बना देना हमारी सरकार और अदालतों का कार्य है। किन्तु उसकी जानकारी रखना और अपनी सुरक्षा के लिए उनका प्रयोग करना ये हमारा स्वयं का कार्य है जिसे करने के लिए हमें अपने स्वयं के जीवन में बदलाव करना आवश्यक है। केवल जो हम सामने सुनते और देखते है। वह सच है, यह मान लेना सही नहीं है। हमें उसकी जांच करके अपने अधिकारों जानना समझना भी आवश्यक है। जिसके लिए हमें जागरूक रहना आवश्यक है। केवल नए संगीत और फिल्मों का ज्ञान ना रखें, अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए अपने अधिकारों का भी ज्ञान रखें।