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विश्व अल्जाइमर दिवस : अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद बना रहे इसलिए बहुत ज़रूरी है अल्जाइमर्स-डिमेंशिया पर जागरूकता

कानपुर। हर साल 21 सितम्बर को विश्व अल्जाइमर्स दिवस व पूरे सितम्बर माह को विश्व अल्जाइमर्स माह के रूप में मनाया है। इसका उद्देश्य समाज में अल्जाइमर्स – डिमेंशिया पर जागरूकता लाना है ताकि हमारे बुजुर्गों को इस बीमारी से बचाकर जीवन में खुशियाँ लायी जा सकें। इस साल का थीम “नों डिमेंशिया, नों अल्जाइमर्स” यानी डिमेंशिया को जानना, अल्जाइमर्स को जानना है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली तरफ से अभी हाल ही में जारी एडवाइजरी में कहा गया है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार में करीब 16 करोड़ बुजुर्ग ( साल के ऊपर ) हैं। इनमें से से 69 साल के करीब 8.8 करोड़ 70 से 79 साल के करीब 6.4 करोड़ , दूसरों पर आश्रित 80 साल करीब 2.8 करोड़ और 18 लाख बुजुर्ग ऐसे हैं , जिनका अपना कोई घर नहीं है या कोई देखभाल करने वाला नहीं है।

मनोचिकित्सक डॉ. चिरंजीव प्रसाद का कहना है कि बुजुर्गों को डिमेंशिया से बचाने के लिए जरूरी है परिवार के सभी सदस्य उनसे अपनापन रखें।अकेलापन न महसूस होने दें , समय निकालकर बातें करें, उनकी बातों को नजरंदाज बिलकुल न करें बल्कि उनको ध्यान से सुनें। ऐसे कुछ उपाय कि उनका मन व्यस्त रहे , उनकी मनपसंद की चीजों का ख्याल रखें निर्धारित समय पर उनके सोने- नाश्ता व भोजन की व्यवस्था का ध्यान रखें। अमूमन 65 साल की उम्र के बाद लोगों में यह बीमारी देखने को मिलती है या यूँ कहें कि नौकरी – पेशा से सेवानिवृत्ति के बाद यह समस्या पैदा होती है। इसके लिए जरूरी है कि जैसे ही इसके लक्षण नजर आएं जल्द से जल्द चिकित्सक से परामर्श लें ताकि समय रहते समस्या से बचा जा सके।

लक्षणों पर ध्यान देकर कर सकते है पहचान – डॉ . चिरंजीव प्रसाद ने बताया कि डिमेंशिया असल में कुछ लक्षणों के समूह को कहते हैं, जैसे याद्दाश्त कमजोर होना, बातचीत में परेशानी, बोलने या लिखने में दिक्कत होना, जगह या समय को लेकर गुमराह हो जाना, जोड़-घटाव या हिसाब न कर पाना, तर्क करने , योजना बनाने या निर्णय लेने में कठिनाई, सामाजिक कार्यक्रमों अलगाव , दैनिक कार्य कर पाना या व्यक्तित्व में बदलाव होना आदि। डिमेंशिया के अनेक कारण हो सकते हैं अल्जाइमर्स को समझने से पहले डिमेंशिया अर्थात मनोभ्रंश समझना पड़ेगा। अल्जाइमर्स रोग डिमेंशिया का एक बड़ा कारण है जो कोशिकाओं के नष्ट होने पर मस्तिष्क में होने वाले बदलाव के कारण होता और समय के साथ स्थिति बिगड़ती जाती है। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप कोलेस्ट्रोल, सिर की चोट, ब्रेन स्ट्रोक, एनीमिया और कुपोषण अलावा नशे की लत होने के चलते इस बीमारी की चपेट में आने सम्भावना रहती। समय से पता चल जाने पर इसका उपचार दवाओं से और मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के माध्यम से किया जाता है।

देखभाल करने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी बातें – देखभाल करने वाले व्यक्ति को चाहिए की वह पूरी दिनचर्या बना ले जैसे नहाना खाना, दवा का समय, चिकित्सकीय परामर्श आदि हृ अपने अन्दर धैर्य बना कर पीड़ित व्यक्ति से कार्यों को करवायें, हो सकता है सामान्य से अधिक समय लगे फिर भी उनकी आदतों में दैनिक क्रियाएँ सम्मिलित। उनके कार्यों को ज्यादा से ज्यादा उनसे ही करवायें , आप बस देखरेख करें ढु उनको कुछ भी देने से पहले कोई कार्य करवाने से पहले उन्हें विकल्प दें और उनकी राय लें ढ साधारण निर्देश देते हुए कुछ भी बोले दिन में ज्यादा सोने न दें, कैलंडर और घड़ी आदि दिन और समय का ज्ञान करवाते रहें, अँधेरे में या अकेले न छोड़ें।

फोन पर पा सकते हैं समस्या का समाधान – अगर आप मानसिक तनाव या चिंता महसूस कर रहे हैं तो राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान के टोल फ्री नंबर- 080 46110007 पर कॉल करके मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हर समस्या का समाधान पा सकते हैं।

  शिव प्रताप सिंह सेंगर

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