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विश्व आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस :  शारीरिक व मानसिक विकास के लिए जरूरी है आयोडीन युक्त नमक

लखनऊ। विश्व आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस हर साल 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को इस बारे में जागरूक करना है कि आयोडीन मानसिक विकास के लिए, थाइरॉयड का सही तरीके से काम करने और शरीर के सम्पूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी है। आयोडीन मनुष्यों में शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है। आयोडीन की कमी से घेंघा रोग, हाइपोथायरायडिस्म, गर्भपात, गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क के विकास का रुक जाता है, बच्चों में बौनापन, गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु जैसी समस्याएं होती हैं।

इंडिया आयोडीन सर्वे 2018 -19 के अनुसार – देश में 76.3 फीसद परिवार समुचित मात्रा (150 माइक्रोग्राम) में आयोडीनयुक्त नमक का सेवन करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए प्रतिदिन 150 माइक्रोग्राम आयोडीन का सेवन करना चाहिए।

एसजीपीजीआई की डायटीशियन प्रीति यादव बताती हैं कि आयोडीन सूक्ष्म पोषक तत्व होता है। यह शरीर में नहीं बनता है बल्कि यह हमें भोजन से ही मिलता है। शरीर में थाइरॉयड हार्मोन का सही से उत्पादन करने के लिए इसकी आवश्यकता पड़ती है साथ ही #गर्भाशय के विकास के लिए भी यह आवश्यक है। जिन महिलाओं में आयोडीन की कमी होती है उन महिलाओं में थायरॉयड की कार्य प्रणाली बाधित होती है, जिसका असर उनके प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ता है। आयोडीन की कमी से बच्चों का मानसिक विकास कमजोर होता है, ऊर्जा में कमी आती है, जल्द थकान आती है।

आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी है कि 11 माह तक के बच्चे को प्रतिदिन 130 माइक्रो ग्राम, पांच साल तक की उम्र के बच्चे को प्रतिदन 90 माइक्रो ग्राम, 6-12 साल तक के बच्चे के लिए 120 माइक्रो ग्राम और 12 साल से अधिक की आयु के लिए 150 माइक्रो ग्राम आयोडीन का सेवन प्रतिदिन करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 220 माइक्रोग्राम और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रतिदिन 290 माइक्रोग्राम आयोडीन का सेवन करना चाहिए। आयोडीन से शरीर स्वस्थ और दिमाग चुस्त बनता है, कार्यक्षमता में बढ़ोतरी होती है।

डायटीशियन के अनुसार आयोडीन का सबसे सामान्य स्रोत #आयोडीनयुक्त नमक है। इसके अलावा डेयरी उत्पाद(चीज, दूध योगर्ट), शकरकंद, प्याज, पालक, मछली, चिकन, बीन्स और समुद्री मछली आदि खाद्य पदार्थों में आयोडीन होता है। इनका सेवन शरीर में आयोडीन की कमी को दूर करता है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था। अगस्त 2020 में इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय आयोडीन की कमी विकार नियंत्रण कार्यक्रम (एनआईडीडीसीपी) कर दिया गया। जिसमें आयोडीन की कमी से होने वाले सभी विकारों को शामिल किया गया। यह कार्यक्रम सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में लागू है।

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