हां, मैं एक डॉक्टर हूँ
मुझे भगवान न समझो,
शायद मैं हकदार नहीं,
मगर एक इंसान हूँ,
इससे तुम्हे भी इंकार नहीं!!
जब तुम जिंदगी में मस्त थे,
मैं किताबो में व्यस्त था,
तुम्हारे घर जश्न था,
मैं अस्पताल में मग्न था!!
तुम परिवार संग त्यौहार की खुशियां मना रहे थे,
मेरी माँ और मैं दूर-दूर दिये जला रहे थे,
बिना नाम जात धर्म पूछे,
ये हाथ मदद को बढ़े हैं,
त्यौहार हो, रविवार हो, दिन हो या रात हो,
फिर भी हम खड़े हैं!!
तुम्हे दुनिया में लाने वाली मां थी,
संग मैं भी खड़ा था,
तुम्हारी जिंदगी औऱ मौत में,
बीच में जाने कितनी बार अड़ा था!!
पत्थर पूजने वाले दोहरे समाज,
मैं भी एक जान हूँ,
हाँ, मैं एक डॉक्टर हूँ,
मगर पहले एक इंसान हूँ!!
(लेखक, औरैया जनपद में डॉक्टर अधीक्षक के पद पर कार्यरत हैं….!!)