दवा कंपनियां अब किसी प्रचलित ब्रांड से मिलते-जुलते नामों वाली नई दवाएं बाजार में नहीं उतार सकेंगी। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स नियमों में इससे जुड़ा नया प्रावधान जोड़ दिया है। इसके तहत दवा के लिए मंजूरी लेते समय दवा कंपनियों को एक शपथपत्र देना होगा। इसमें यह साफ करना होगा कि जिस दवा की अनुमति मांगी जा रही है, उस नाम की या उससे मिलते-जुलते नाम का दवा पहले से बाजार में नहीं है।
ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स (13वां संशोधन) नियम 2019 के नाम से प्रकाशित इन नए नियमों में कहा गया है कि दवा विपणन की अनुमति मांगते वक्त फार्मा कंपनियों को एक घोषणा-पत्र देना होगा। इसमें यह बताना होगा कि उन्होंने दवा का ब्रांड नेम तय करने से पहले ट्रेडमार्क रजिस्ट्री, ब्रांड नेम का केंद्रीय डाटा बेस, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के पास मौजूद दवाओं के ट्रेड नेम, संदर्भ पुस्तकों में मौजूद ड्रग फॉर्मूलेशन के नाम और इंटरनेट पर मौजूद दवाओं के नाम को खंगाला है।
साथ ही उनकी ओर से प्रस्तावित दवा का नाम या कोई मिलता-जुलता नाम पहले से मौजूद नहीं है और इससे बाजार में किसी प्रकार के भ्रम या धोखे की स्थिति नहीं बनेगी। यह नियम तत्काल प्रभाव से लागू हो गए हैं। इससे पहले, इसी साल फरवरी में मंत्रालय ने इस नियम से जुड़ा मसौदा जारी किया था और उस पर हितधारकों के सुझाव आमंत्रित किए थे।
पांच फीसदी दवाओं के ही ट्रेड मार्क रजिस्टर
केंद्र सरकार के इस कदम से विशेषज्ञ बहुत उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं। दवा विशेषज्ञ और मंथली इंडेक्स ऑफ मेडिकल स्पेशियलिटी के संपादक डॉ. सीएम गुलाटी ने कहा कि देश में मौजूद दवाओं में से पांच फीसदी दवाओं के ही ट्रेड मार्क रजिस्टर हैं और सीडीएससीओ के पास दवाओं के ब्रांड नेम का तो डाटा ही नहीं होता। ऐसे में कोई भी दवा कंपनी किंतु-परंतु के साथ घोषणा-पत्र दे सकती है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को सच में चिंता है तो पहले उसे सभी दवाओं के ब्रांड को रजिस्टर करवाना अनिवार्य करना चाहिए। डॉ. गुलाटी ने यह भी सवाल उठाया कि एक तरफ सरकार जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने की बात करती और दूसरी तरफ खुद ब्रांडेड दवाओं को बढ़ावा दे रही है।