शास्त्रों में एकादशी के व्रत का बड़ा महत्व बताया है। इस व्रत को करने से कई जन्मों के पापों का क्षमण होता है। पुत्रदा एकादशी भी सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला ऐसा ही एक व्रत है। एक बार अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा की प्रभू पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के माहात्म्य को विस्तार से बताने की कृपा करें। इसका नाम, विधान और पूजन विधि को विस्तार से बताएं।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि इसका नाम पुत्रदा एकादशी है। इस दिन भगवान श्रीहरि की पूजा का विधान है। इस व्रत को करने से प्राणी तपस्वी, विद्वान और धनवान बनता है। इसके बाद श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसकी कथा सुनाई।
राजा सुकेतुमान को था पुत्र का अभाव
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम के एक राजा का राजपाठ था। महारानी का नाम शैव्या था। राजा को कोई संतान नहीं थी। राजा को यह चिंता सताती थी कि उसके बाद उसका और उसके पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा। महाराज के पितृ भी इस व्यथा के साथ पिंड स्वाकार करते थे कि सुकेतुमान के बाद उनको पिंड कौन देगा। राजा भी अपार धन-संपदा होने के बावजूद पुत्र अभाव में दुखी रहता था। राजा की चिंता इतनी बढ़ गई की उसने एक अपना शरीर छोड़ने का निश्चय किया, लेकिन उसने सोंचा की आत्महत्या करना तो महापाप है, इसलिए उसने इस विचार को मन से निकाल दिया। एक दिन इसी चिंता में डूबा हुआ वह घोड़े पर सवार होकर वन में चला गया।
सुकेतुमान को ऋषियों ने दी यह सलाह
वन में राजा को बड़ा अच्छा दृश्य दिखाई दिया, लेकिन राजा को फिर से यही चिंता सताने लगी कि। वह सोचने लगा कि मैंने अनेक यज्ञ किए हैं और ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन कराया है, इसके बावजूद मुझे यह दुख क्यों मिल रहा है? आखिर इसका कारण क्या है? अपनी पीड़ा में किससे कहूं और कौन इसका समाधान करेगा। उसी समय राजा को प्यास लगी। वह पानी की तलाश में एक सरोवर के किनारे गया। वहां पर सरोवर के चारों तरफ ऋषियों के आश्रम बने हुए थे। राजा सरोवर के किनारे बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम करके उनके सामने बैठ गया।
ऋषियों ने कहा कि ‘हे राजन! हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। तुम्हारी जो इच्छा है, हमसे कहो।’ राजा ने तुरंत अपनी इच्छा ऋषियों को बताई। तब ऋषियों ने कहा कि हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप इसका उपवास करें। भगवान श्रीहरि की कृपा से आपके घर अवश्य ही पुत्र होगा।
श्रीहरी की कृपा से राजा को हुई पुत्र की प्राप्ति
राजा ने मुनि के आदेश का पालन करते हुए पुत्रदा एकादशी के दिन उपवास किया और द्वादशी को व्रत का पारण किया इसके बाद ऋषियों का आशीर्वाद लेकर वापस अपने शहर में आ गए। भगवान लक्ष्मीनारायण की कृपा से कुछ दिनों बाद ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह के बाद राजा को तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हे अर्जुन! पुत्र की प्राप्ति की कामना के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए पुत्र प्राप्ति के लिए इससे बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है। जो कोई मानव पुत्रदा एकादशी के माहात्म्य को पढ़ता और सुनता है, विधि-विधान से उपवास करता है, उसको सर्वगुण सम्पन्न पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु की कृपा से वह मानव मोक्ष को प्राप्त करता है।