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जाने गणेश मूर्ति किस रंग की होती है शुभ…

गणेश पूजन से पहले श्रद्धालु घर में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना करते हैं लेकिन गणेश मूर्ति को घर में लाने से पहले कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है. आइए आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.

गणेश की अलग-अलग मूर्तियों का महत्व-

गणेशजी की अलग अलग मूर्तियां अलग अलग-तरह के परिणाम देती हैं. सबसे ज्यादा पीले रंग की और रक्त वर्ण की मूर्ति की उपासना शुभ होती है. नीले रंग के गणेश जी को “उच्छिष्ट गणपति” कहते हैं, इनकी उपासना विशेष दशाओं में ही की जाती है. हल्दी से बनी हुई या हल्दी का लेपन की हुई मूर्ति “हरिद्रा गणपति” कहलाती है. यह कुछ विशेष मनोकामनाओं के लिए शुभ मानी जाती है.

एकदंत गणपति, श्यामवर्ण के होते हैं. इनकी उपासना से अदभुत पराक्रम की प्राप्ति होती है. सफेद रंग के गणपति को ऋणमोचन गणपति कहते हैं. इनकी उपासना से ऋणों से मुक्ति मिलती है. चार भुजाओं वाले रक्त-वर्ण के गणपति को “संकष्टहरण गणपति” कहते हैं, इनकी उपासना से संकटों का नाश होता है.  त्रिनेत्रधारी,रक्तवर्ण और दस भुजाधारी गणेश “महागणपति” कहलाते हैं. इनके अन्दर समस्त गणपति समाहित होते हैं. सामान्यतः पीले रंग की या रक्त वर्ण की प्रतिमा जिसका आकार मध्यम हो, घर में स्थापित करनी चाहिए.

कैसे करें मूर्ति की स्थापना-

गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना दोपहर के समय करें , कलश भी स्थापित करें. लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर मूर्ति की स्थापना करें. दिनभर जलीय आहार ग्रहण करें अथवा केवल फलाहार करें. सायंकाल गणेश जी की यथा शक्ति पूजा करें. घी का दीपक जलाएं.

जितनी आपकी उम्र है उतने ही लड्डुओं का भोग लगाएं, साथ ही दूब भी अर्पित करें. अपनी इच्छाअनुसार गणेश जी के मन्त्रों का जाप करें. चन्द्रमा को नीची दृष्टि से अर्घ्य दें. अन्यथा आपको अपयश मिल सकता है. अगर चन्द्र दर्शन हो ही गया है तो उसके दोष का उपचार कर लें. प्रसाद का वितरण करें तथा अन्न-वस्त्र का दान करें.

गणेश चतुर्थी के पर्व में क्या सावधानियां बरतें-

– चतुर्थी के दिन अथवा पूजा के समय पीले अथवा सफेद वस्त्र धारण करें, काले बिल्कुल नहीं.

– गणेश जी की प्रतिमा अगर घर मैं स्थापित करते हैं तो वह बहुत बड़ी नहीं होनी चाहिए.

– अगर स्वयं नदी की मिट्टी से प्रतिमा बनाएं तो उसका फल सर्वश्रेष्ठ होगा.

– बिना चन्द्रमा को अर्घ्य दिए हुए व्रत का समापन न करें , नज़र नीची रखकर अर्घ्य दें.

– गणेश जी को कभी भी तुलसी दल न चढाएं.

– क्रोध न करें,वाणी पर नियंत्रण रखें और सात्विकता बनाये रखें.

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