प्रसंग रामायण का है,जिसमें रावण व मंदोदरी के संबंध से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. कैसे मंदोदरी ने अपने कुमार्ग पर चल रहे पति के हित की बात सोचते हुए उसे ठीक सलाह दी लेकिन रावण ने उसकी बात को मजाक में उड़ा दिया. कभी भी अपने ज़िंदगी साथी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहिए. अगर वो कोई सलाह दे जो उस समय वो हमारे विरूद्ध लगे लेकिन फिर भी उस सलाह पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
जब रावण सीता का हरण करके लंका ले आया था. तब मंदोदरी ने रावण को इसके लिए रोका था. मंदोदरी ने रावण को समझाया था कि पराई स्त्री को इस तरह किडनैपिंग करके लाना धर्म के विरूद्ध है. रावण नहीं माना. उसने मंदोदरी की बात को मजाक में उड़ा दिया. फिर राम के दूत के रुप में हनुमान लंका आए. सीता को लंका में खोजा व लंका को जला भी दिया.
जब हनुमान लंका से लौट गए. लंका को फिर व्यवस्थित किया गया. तब मंदोदरी ने पूरी लंका में अपनी गुप्तचरों को लगा दिया. लंका के लोग तरह-तरह की बातें करने लगे थे.हनुमान के बल व उनके द्वारा लंका को जलाने को लेकर लंकावासियों में बहुत भय था. सबका बोलना था कि जिसके दूत ने आकर अकेले ही इतने राक्षसों को मार दिया, लंका को जला दिया, अगर वो खुद यहां युद्ध करने आ जाए तो हमें कौन बचाएगा. अपने गुप्तचरों से इस तरह की बात सुन मंदोदरी ने रावण को फिर समझाया कि राम से दुश्मनी करना अच्छा नहीं है, सीता को लौटा देने में लंका की भलाई है.
तब रावण ने हंसते हुए बोला कि तुम औरतों का स्वभाव ही होता है, जब कोई मंगल काम होता है तो तुम डरने लगती हो. वानर व इंसान हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. मेरे नाम से ही दसों दिशाएं कांपने लगती हैं व मेरी पत्नी होकर तुम इतना डरती हो. रावण ने मंदोदरी की बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया व राम से युद्ध करके मारा गया.
आप कितने भी शक्तिशाली व बुद्धिमान क्यों ना हों, जीवनसाथी की बातों को महत्व देने से आप कई परेशानियों से बच सकते हैं. उनका भय दूसरों से नहीं होता, वो आपके लिए डरती हैं. अतः हर इंसान को अपनी जिंदगी के जरूरी निर्णय में जीवनसाथी की सलाह को शामिल करना चाहिए. एक तरफा या जिद में लिए निर्णय आपको बर्बाद कर सकते हैं.