नई दिल्ली। देश की Sugar चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया और बैंकों के लोन समेत कुल कर्ज बढ़कर 35,750 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया है। चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी, बैंकों के कर्ज निपटाने के लिए सॉफ्ट लोन और ब्याज चुकाने के लिए सीधे लोन पर ब्याज की राशि में 25 फीसदी तक की रियायत जैसे प्रावधान के बावजूद शकर मिलों पर कर्ज बढ़ा है। ऐसे में गन्ना किसानों को बकाया भुगतान की उम्मीद धूमिल हो गई है।
Sugar उद्योग से जुड़े
चीनी Sugar उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि 50 लाख टन शकर निर्यात का कोटा तय करने की जगह इसके लिए बाजार खोजना और निर्यात पक्का करना शकर मिलों और किसानों की मुश्किलें दूर करने का बेहतर तरीका हो सकता है।पिछले दो सत्रों से शकर उत्पादन बढ़ने और स्टॉक में इजाफा सरकार के लिए परेशानी की वजह बनता जा रहा है। इन दिक्कतों से निपटने के लिए किए गए अब तक के तमाम सरकारी प्रयास करीब-करीब नाकाफी साबित हुए हैं।
खास तौर पर सॉफ्ट लोन और ब्याज माफी जैसे प्रावधान सरकार को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससे शकर मिलों और गन्ना किसानों कोसीधा लाभ नहीं हो रहा है। ये प्रयास विफल होने की बड़ी वजह अत्यधिक उत्पादन है।सरकार ने दो बार न्यूनतम बिक्री मूल्य बढ़ाया, लेकिन इसका ज्यादा असर नहीं हुआ। पिछले सत्र के मुकाबले न्यूनतम बिक्री मूल्य 300 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाए जाने के फैसले पर अत्यधिक उत्पादन और जमा स्टॉक भारी पड़ा। एक तरफ गन्ने की आवक बढ़ रही है और दूसरी तरफ शकर की रिकवरी भी ज्यादा हो रही है। ऐसे में उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन खपत में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऐसे स्टॉक बढ़ता जा रहा है। जाहिर है, मिलों की पूंजी का एक बड़ा हिस्सा स्टॉक में फंस गया है।
उधारी निपटाने के दबाव में
गन्ना किसानों की बढ़ती उधारी निपटाने के दबाव में मिलों पर सहकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों का कर्ज बढ़ता जा रहा है। लोन इस कदर बढ़ गया है कि बैंक अब नया लोन देने से कतरा रहे हैं। इस वजह से किसानों की उधारी लगातार बढ़ती जा रही है। अब सरकार के पास निर्यात बढ़ाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
पिछले सत्र में शकर मिलों के लिए 20 लाख टन शकर निर्यात का कोटा तय किया गया था। लेकिन, सबसिडी और अन्य प्रयासों के बावजूद केवल 11 लाख टन का निर्यात हो पाया। चालू सत्र के लिए यह कोटा 50 लाख टन है, जो पूरा होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। शुरुआत के 5 महीनों में केवल 6 लाख टन शकर का निर्यात हो पाया है।