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सदैव अटल का वैचारिक सन्देश

नई दिल्ली का सदैव अटल स्मारक वैचारिक ऊर्जा का स्थल है। राष्ट्र को सर्वोच्च मानते हुए अटल बिहारी वाजपेयी सदैव जनसेवा के मार्ग पर चलते रहे। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने सात दशकों के सार्वजनिक जीवन में आदर्शो की स्थापना की। सदैव विचारधारा को महत्व दिया। उनका किसी से व्यक्तिगत दुराव नहीं था।

इसलिए उन्हें अजातशत्रु कहा गया। विपक्ष में रहे तो सरकार की गलत नीतियों का विरोध किया। सता में रहकर सुशासन स्थापित किया। अटल जी कर्मयोगी थे। विद्यार्थी थे, तब ज्ञान प्राप्त करने में पूरी ऊर्जा लगा दी।पत्रकारिता में गए तो उसे भी पूरी क्षमता से अंजाम दिया। राजनीति में गए तो उच्च मर्यादाओं की स्थापना कर दी। वह भारतीय राजनीति के अजातशत्रु थे। उन्होंने उस दौर में राजनीति शुरू की थी,जब जनसंघ सत्ता की लड़ाई से बहुत दूर थी। माना जाता था कि यह पार्टी विपक्ष में रहने के लिए बनी है।

इसके बाबजूद अटल जी जब बोलते थे,तब प्रधानमंत्री सहित जनसंघ के विरोधी भी ध्यान से सुनते थे। सदन संख्या बल कमजोर था,लेकिन विचार मजबूत थे। शायद यही कारण था कि जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री बताया था। सात दशक के राजनीतिक जीवन में उनका दामन बेदाग रहा। सत्ता मिली तब भी सहज रहे। सत्ता उद्देश्य नहीं बल्कि दायित्व था। विपक्ष रहते हुए भी राष्ट्र के लिए वैसा ही समर्पण रहा।

तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने उन्हें भारत का पक्ष रखने के लिए जेनेवा भेजा था। अटल जी ने अपने इस दायित्व को बखूबी निभाया। वह अपने लिए नहीं देश और समाज के लिए जिये। उनका जीवन प्रेरणादायक है। अटल जी के राजनीतिक जीवन में लखनऊ का विशेष महत्व है।

कानपुर डीएवी से शिक्षा पूर्ण करने के बाद वह लखनऊ आये थे। यहां उन्होंने राष्ट्रधर्म का सम्पादन किया। यह कार्य राष्ट्रभाव के मिशन का ही स्वरूप था। अटल जी ने इसके माध्यम से राष्ट्र व समाज की सेवा का व्रत लिया था। उनकी चुनावी राजनीति की दृष्टि से भी लखनऊ उल्लेखनीय पड़ाव था।

यहाँ से वह चुनाव में पराजित भी हुए थे, लेकिन फिर एमपी से पीएम तक का सफर भी लखनऊ से ही तय किया था। उनकी तीसरी पुण्यतिथि पर लखनऊ में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उन्‍होंने व‍िपक्ष में रहकर भी भारतीय राजनीति को प्रभावित किया। व्यक्ति से महत्वपूर्ण दल और दल से महत्वपूर्ण देश,वह इस वाक्य के पर्याय थे। जब लोकतंत्र संकट में था,तब उन्‍होंने देश को बचाया।

जब देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था,तब देश को राजनीतिक स्थिरता देने का काम किया। उनके राजनीतिक मू्ल्यों को समझना आवश्यक है। राजनीति लोक कल्याण के लिए होनी चाहिए। व्यक्तिगत कल्याण के लिए नहीं। आज से तीन वर्ष पहले अटल जी भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं रहे, पर उनका कृतित्व और कृतियां जीवन को स्पंदन दे रहीं।

उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा क‍ि अटल जी लखनऊ क्या पूरे देश के आमजन के अंतर्मन में बसे हैं।लखनऊ का सौभाग्य रहा कि अटल जी का सबल नेतृत्व एक नहीं कई। कई बार मिला है।

हर व्यक्ति के मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ी है। मुख्यमंत्री के निर्देशन पर विश्वविद्यालय में अटल जी की स्मृति में पीठ तैयार की गई। इस तरह के आयोजन होते रहेंगे।

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