आपने महाभारत ,गीता आदि अनेकों जगह पर श्रीकृष्ण को गांडीवधारी अर्जुन(Arjun) को पार्थ कहते सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं की क्यों कहते थे कृष्ण अर्जुन को पार्थ?
जाने क्यों कहते थे अर्जुन(Arjun) को “पार्थ”
हम बताते हैं कृष्ण द्वारा पार्थ सम्बोधित करने के पीछे का राज़। वास्तव में पार्थ का अर्थ है “पृथा का पुत्र”
दरअसल अर्जुन की माता अर्थात कुंती का एक अन्य नाम ‘पृथा’ था। अर्जुन का जन्म हस्तिनापुर के राजपरिवार में हुआ था और अर्जुन माता कुंती के तीसरे पुत्र थे।
अर्जुन व उनके अन्य भाइयों को पाण्डु पुत्र कहा जाता है अर्थात पाण्डु का उनकी पहली पत्नी, कुंती से उत्पन्न पुत्र।
बता दें की पाण्डु को एक शाप मिला था की वह जीवन में कभी संतान की उत्पत्ति नहीं कर सकते। यदि उन्होंने ऐसा किया तो उनकी मृत्यु निश्चित है। वास्तव में अर्जुन का जन्म इंद्र देव की कृपा से हुआ था। युधिष्ठिर और भीम के उपरान्त अर्जुन पाण्डु के तीसरे बेटे थे।
उनके दो छोटे भाई थे – नकुल और सहदेव, जो कि पांडु की दूसरी पत्नी, माद्री के जुड़वां पुत्र (कुंती द्वारा मंत्रोच्चारण के प्रभाव से उत्पन्न) थे।