भारत की सांस्कृतिक राष्ट्र चेतना का क्षेत्र अत्यंत व्यापक रहा है। दुनिया के अनेक स्थानों पर इसके प्रमाण आज भी उपलब्ध है। यह संयोग है कि राष्ट्रीय एकता दिवस पर अयोध्या में सांस्कृतिक व आध्यात्मिक कार्यक्रम हुए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में श्री रामलला का दर्शन पूजन किया। गर्भगृह स्थल पर काबुल से आए काबुल नदी के पवित्र जल को अर्पित किया। इसके अलावा अयोध्या में रामायण कॉन्क्लेव का समापन किया। इसमें भी देश विदेश के अनेक लोग सहभागी हुए।
रामकथा की वैश्विक व्याप्ति के दृष्टिगत उप्र पर्यटन विभाग द्वारा गत वर्ष से रामायण कॉन्क्लेव के आयोजन का क्रम प्रारम्भ किया था। जिसे इस वर्ष संस्कृति विभाग तथा अयोध्या शोध संस्थान द्वारा प्रदेश के सोलह प्रमुख स्थलों में श्रृंखलाबद्ध आयोजनों के माध्यम से मूर्तरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया है। रामायण कान्क्लेव के इस आयोजन में लगभग दो हजार हजार कलाकारों, सैकड़ों साहित्यकारों मानस मर्मज्ञों एवं कवियों ने रामकथा के विभिन्न पहलुओं पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, संगोष्ठी परिचर्चा एवं कवि सम्मेलन आदि में प्रतिभाग किया। प्रातःकालीन सत्र में विशिष्ट कथा वाचकों एवं रामायण पर अधिकृत विद्वानों के साथ रामायण के विभिन्न प्रसंगों पर सारगर्भित व्याख्यान एवं विचार विमर्श हुए तथा सायंकालीन सत्र में रामायण एवं रामकथा से सम्बन्धित उत्तर प्रदेश के पांच सांस्कृतिक अंचलों अवध,पूर्वांचल, बुन्देलखण्ड,ब्रज एवं पश्चिमांचल की लोक एवं शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुतियां सम्पन्न हुई।
रामलीला एवं लोक बोलियों के कवि सम्मेलनों के माध्यम से रामकथा के विभिन्न सन्दर्भों को भी प्रस्तुत किया गया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि श्रीराम का भाव हरि अनन्त,हरि कथा अनन्ता की भावना है। प्रभु श्रीराम जन-जन में हैं और सबकी आस्था के प्रतीक हैं। भगवान श्रीराम सबके हैं। हमारा समाज राममय है। लोक कथा,लोक भाषा और लोक परम्परा में श्रीराम कथा को लिपिबद्ध करने के लिए शोध करना आवश्यक है। कॉन्क्लेव के समापन के बाद दीपोत्सव कार्यक्रम प्रारम्भ हो रहा है। विभिन्न थीमों पर आधारित इस कॉन्क्लेव का उद्देश्य भगवान श्रीराम के चरित्र,मूल्यों तथा आदर्शाें को नई पीढ़ी तथा आम जनमानस तक व्यापक रूप से पहुंचाना था।
इसके पहले राजधानी लखनऊ सहित पूरे प्रदेश में लौह पुरुष बल्लभ भाई पटेल की जन्म जयंती राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाई गई। उनके प्रेरणादायक प्रसंगों का स्मरण किया गया। एक बार वह जज के सामने जिरह कर रहे थे, तब उन्हें एक टेलीग्राम मिला। उन्होने उसे देखा और चुपचाप जेब में रख लिया। जिरह जारी रही। जिरह पूरी होने के बाद उन्होंने घर जाने का फैसला लिया। उस तार में उनकी धर्मपत्नी के निधन की सूचना थी। वस्तुतः यह उनके लौहपुरुष होने का भी उदाहरण है। दृढ़ता उनके व्यक्तित्व की बड़ी विशेषता थी। जिसका प्रभाव उनके प्रत्येक कार्य में दिखाई देता था। बचपन मे फोड़े को गर्म सलाख से ठीक करने का प्रसंग भी ऐसा ही था। तब बालक वल्लभ भाई अविचलित बने रहे थे। यह प्रसंग उनके जीवन को समझने में सहायक है। आगे चलकर इसी विशेषता ने उन्हें महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और कुशल प्रशासक के रूप में प्रतिष्ठित किया।
देश को आजाद करने में उन्होने महत्वपूर्ण योगदान दिया। महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के साथ ही कांग्रेस में एक बड़ा बदलाव आया था। इसकी गतिविधियों का विस्तार सुदूर गांव तक हुआ था। लेकिन इस विचार को व्यापकता के साथ आगे बढ़ाने का श्रेय सरदार पटेल को दिया जा सकता है। उन्हें भारतीय सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की भी गहरी समझ थी। वह जानते थे कि गांवों को शामिल किए बिना स्वतन्त्रता संग्राम को पर्याप्त मजबूती नहीं दी जा सकती। महात्मा गांधी के साथ सरदार पटेल वारदोली सत्याग्रह के माध्यम से उन्होने पूरे देश को इसी बात का सन्देश दिया था। इसके बाद भारत के गांवों में भी अंग्रेजो के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी थी। देश मे हुए इस जनजागरण में सरदार पटेल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। इस बात को महात्मा गांधी भी स्वीकार करते थे। सरदार पटेल के विचारों का बहुत सम्मान किया जाता था। उनकी लोकप्रियता भी बहुत थी। स्वतन्त्रता के पहले ही उन्होने भारत को शक्तिशाली बनाने की कल्पना कर ली थी।
संविधान निर्माण में भी उनका बड़ा योगदान था। इस तथ्य को डॉ आंबेडकर भी स्वीकार करते थे। सरदार पटेल मूलाधिकारों पर बनी समिति के अध्यक्ष थे। इसमें भी उनके व्यापक ज्ञान की झलक मिलती है। उन्होने अधिकारों को दो भागों में रखने का सुझाव दिया था। एक मूलाधिकार और दूसरा नीति निदेशक तत्व। मूलाधिकार में मुख्यतः राजनीतिक, सामाजिक, नागरिक अधिकारों की व्यवस्था की गई। जबकि नीति निर्देशक तत्व में खासतौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया गया। इसमें कृषि, पशुपालन, पर्यावरण, जैसे विषय शामिल हैं। इन्हें आगे आने वाली सरकारों के मार्गदर्शक के रूप में शामिल किया गया। बाद में न्यायिक फैसलों में भी इसकी उपयोगिता स्वीकार की गई। सरदार पटेल भारत की मूल परिस्थिति को गहराई से समझते थे। वह जानते थे कि जब तक अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान महत्वपूर्ण बना रहेगा, तब तक सन्तुलित विकास होता रहेगा।
इसके अलावा गांव से शहरों की ओर पलायन नही होगा। गांव में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। आजादी के बाद भारत को एकजुट रखना बड़ी चुनौती थी। अंग्रेज जाते-जाते अपनी कुटिल चाल चल गए थे। साढ़े पांच सौ से ज्यादा देशी रियासतों को वह अपने भविष्य के निर्णय का अधिकार दे गए थे। उनका यह कुटिल आदेश एक षड्यंत्र जैसा था। वह दिखाना चाहते थे कि भारत अपने को एक नहीं रख सकेगा, देश के सामने आजाद होने के तत्काल बाद इतनी रियासतों को एक रखने की चुनौती थी।
सरदार पटेल ने बड़ी कुशलता से इस एकीकरण का कार्य सम्पन्न कराया। इसमें भी उनका लौह पुरुष वाला व्यक्तित्व दिखाई देता है। उन्होने देशी रियासतों की कई श्रेणी बनाई। सभी से बात की। अधिकांश को सहजता से शामिल किया।
कुछ के साथ कठोरता दिखानी पड़ी। सेना का सहारा लेने से भी वह पीछे नहीं हटे। मतलब देश की एकता को उन्होने सर्वोच्च माना और उसके लिए किसी भी हद तक जाने को तत्पर दिखे।
आजादी के बाद उन्हें केवल तीन वर्ष देश की सेवा का अवसर मिला। इस अवधि में ही उन्होने बेमिशाल कार्य किये। ईमानदारी और सादगी ऐसी कि निधन के बाद निजी सम्प्पति के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था। लेकिन उनके प्रति देश की श्रद्धा और सम्मान का खजाना उतना ही समृद्धशाली था। यह उनकी महानता का प्रमाण है।